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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १८३ हैं। इनमें १५ पर अभिलेख हैं। इनमें जो बड़ी मूर्ति है, उसके दोनों ओर एक-एक चमरवाहक और एक-एक अम्बिकाकी मूर्ति है। इस मन्दिरके बरामदेमें जो २४ शासनदेवियों (यक्षियों)की मूर्तियां पाषाणमें उत्कीर्ण हैं ऐसी सुन्दर यक्षी-मूर्तियाँ अन्यत्र कहीं नहीं मिलती। प्रत्येक मूर्ति के नीचे उसका नाम भी लिखा . हुआ है। मन्दिरके बरामदेमें एक चार फुट ऊँची मूर्ति है जो चीनी शिल्प-कलाकी प्रतीक है। यहाँ पहले २० भुजी चक्रेश्वरी और पद्मावतीको मूर्तियाँ थीं, जिन्हें साहू संग्रहालयमें पहुंचा दिया गया है। इस मन्दिरकी दीवारोंका जोर्णोद्धार, ऐसा लगता है कि एक हजार वर्ष पहले हुआ हो। बहत-से भारतीय और भारतीयेतर विद्वानोंने भिन्न-भिन्न प्रकारसे इस मन्दिरकी विशेषताओंका वर्णन किया है। इस मन्दिरका कोट आगरानिवासी सेठ पद्मचन्दजीने बनवाया था, जिसमें ११ से १५ नम्बर तकके मन्दिर हैं। इसकी दीवारमें अनेक मूर्तियाँ, जो इधर-उधर पड़ी हुई थीं, लगा दी गयी हैं। इससे अधिक हानि नहीं हो सकी। मन्दिर नम्बर १३-यह उत्तराभिमुख है। इसके मण्डपमें २० शिलापट्टोंपर तीर्थकर मूर्तियाँ हैं। गर्भगृहमें चार वेदियोंपर सात शिलापट्ट और आठ तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं। यहाँ जो मूर्तियाँ हैं, उनमें केश-कला की विभिन्न शैलियाँ दर्शनीय हैं। देवगढ़के मन्दिरोंमें जो १८ प्रकारकी केश-कलाके नमूने प्राप्त होते हैं, कहा जाता है कि ये अन्यत्र कहीं भी प्राप्त नहीं हैं । यहाँसे ही इस कलाको विदेशोंमें ले जाया गया है। एक फलकके दोनों ओर खड्गासन मूर्तियाँ हैं। ___मन्दिर नम्बर १४–आठ स्तम्भोंपर मण्डप है। फिर गर्भगृह है। इसमें दो कमरे हैं। दायें कमरेमें छह शिलापट्टोंपर ६ खड्गासन मूर्तियाँ हैं । बायें कमरेमें सात शिलाफलकोंपर मूर्तियाँ हैं। कुल ४ मूर्तियोंपर लेख हैं। मन्दिर नम्बर १५-यह पश्चिमाभिमुख है। आठ स्तम्भोंपर अर्धमण्डप बना हुआ है। यहाँ ५ शिलापट्ट हैं। ४ शिलापट्टोंपर तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं तथा एकपर शिलालेख है। द्वारकी चौखट कलापूर्ण है। महामण्डपमें १६ स्तम्भ हैं। यहाँ १८ शिलाफलक हैं। ६ छोटी वेदियोंपर हैं। दोपर एकएक पंक्तिका लेख है। चारों दिशाओंमें एक-एक गर्भगृह है। अर्धमण्डप पश्चिममें हैं। इसमें २ वेदियाँ हैं। उत्तरके गर्भगहमें ३ मर्तियाँ और मूर्तिखण्ड हैं। पूर्वी गर्भगहमें द्वारपर गंगा-यमना और द्वारके भीतर एक पद्मासन प्रतिमा तथा उसके दोनों ओर खड्गासन प्रतिमा है। भगवान् नेमिनाथकी मूर्ति अत्यन्त भव्य है । इसके दायीं ओर पार्श्वनाथ-मूर्ति है। दक्षिणी गर्भगृहमें बाहरी ओर दो खड्गासन मूर्तियाँ हैं । भीतर अनेक मूर्ति-खण्ड हैं। मन्दिर नम्बर १६–चार स्तम्भोंपर मण्डप बना है। एक महामण्डप है जिसमें ६-६ खम्भोंकी ३ पंक्तियाँ हैं। महामण्डपमें २५ विशाल शिलापट्ट हैं। ८ पर पद्मासन और १६ पर खड्गासन तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं । एक शिलापट्टपर अम्बिकाकी मूर्ति है। मन्दिर नम्बर १७-मण्डप ८ स्तम्भोंपर खड़ा है। यहाँ ३ शिलापट्रोपर खड़गासन मूर्तियाँ हैं । महामण्डपमें ३१ शिलाफलक हैं। २२ पर खड्गासन और ९ पर पद्मासन मूर्तियाँ हैं। मन्दिर नम्बर १८-यह दक्षिणाभिमुख है। इस मन्दिरकी शैली खजुराहोसे मिलती है। चबूतरेपर २ स्तम्भ खड़े हैं । मण्डप ८ खम्भोंपर आधारित है। मण्डपमें ३ फलकोंपर पद्मासन और ४ पर खड्गासन मूर्तियाँ बनी हुई हैं।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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