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________________ १८२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ यमुना तथा अन्य देवी-देवताओंका अंकन है। मन्दिरमें वेदीपर १२ शिला-फलकोंपर विभिन्न मूर्तियाँ अंकित हैं। मन्दिर नम्बर १०-यह चार स्तम्भोंपर आधारित गुमटीनुमा मण्डपके रूपमें बना हुआ है। इसके मध्यमें एक पंक्तिमें तीन चतुष्कोण स्तम्भ हैं। इनमें प्रत्येककी गुमटी खण्डित है। स्तम्भ ६ फुट ऊँचे हैं। जीर्णोद्धारके समय दो स्तम्भोंमें दो ताम्रपत्र मिले थे। इन तीनों स्तम्भोंके चारों ओर देव-कुलिकाओंमें तीर्थंकरों, साधु-साध्वियों और श्रावकोंकी मूर्तियाँ और शिलालेख हैं। मन्दिर नम्बर ११-यह दो मंजिलका पंचायतन शैलीका मन्दिर है। आठ स्तम्भोंपर इसका मण्डप बना हुआ है। प्रवेश-द्वार सुन्दर एवं अलंकृत है। इसमें एक महामण्डप है। दीवालोंमें १२ स्तम्भ चिने हुए हैं। ४ स्तम्भ बीचमें हैं । गर्भगृहमें तीन तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं । दूसरे खण्डपर भी द्वार अलंकृत है। उसपर मूर्तियाँ बनी हुई हैं। यहाँ २५ शिलाफलक हैं, जिनमें १८ पर खड्गासन और ७ पर पद्मासन तीर्थंकर मूर्तियाँ बनी हुई हैं। गर्भगृहमें वेदीपर ५ मूर्तियाँ विराजमान हैं। इनमें श्वेत संगमरमरकी १ मूर्ति नयी है। गर्भगृह दक्षिणकी ओर है। दूसरी मंजिलका गर्भगृह इसीके ऊपर है। इस मन्दिरके सामने मण्डपमें भगवान् ऋषभदेवके पुत्र बाहुबलोकी ११वीं शताब्दीकी मूर्ति है । दक्षिण भारतमें पायी जानेवाली गोम्मटेश्वर बाहुबलीकी मूर्तिसे इस मूर्ति में कुछ विशेषता भी है। इस मूर्तिपर वामी, कुक्कूट, सर्प और लताओंके अतिरिक्त बिच्छू, छिपकली आदि भी अंकित किये गये हैं। देवयुगल लताओंको हटाते हुए दिखाये हैं जो कि दक्षिणकी मूर्तियोंमें देखनेको नहीं मिलते। बाहबली स्वामीकी ऐसी ही एक मति चन्देरीमें भी मिलती है। मन्दिर नम्बर १२-यह मन्दिर देवगढ़के सभी मन्दिरोंमें महत्त्वपूर्ण है और मुख्य मन्दिर माना जाता है। यह पश्चिमाभिमुख है। पहले अर्धमण्डप बना हुआ है। फिर मण्डप आता है जो ६-६ खम्भोंकी ६ पंक्तियोंपर आधारित है। बरामदेमें बायीं ओर १८ शिलाफलक हैं। दोपर पद्मासन और शेषपर खड्गासन मूर्तियाँ हैं । यह बरामदा ४२ फुट ३ इंच वर्गका है। इस मन्दिरमें भगवान शान्तिनाथकी मलनायक प्रतिमा विराजमान है, जो १२ फूट ऊँची खड़गासन है। यह प्रतिमा अत्यन्न चित्ताकर्षक और अतिशय सम्पन्न है। इसके सम्बन्धमें अनुश्रुति है कि पहले इस प्रतिमाके सिरपर पाषाणका छत्र एक अंगुलके फासलेपर था किन्तु अब वह दो हाथके फासलेपर है। मन्दिरकी उत्तरी दालानमें एक महत्त्वपूर्ण शिलालेख है। इसमें ज्ञानशिला लिखा हुआ है। यह १८ भाषाओं और लिपियोंमें लिखा हुआ है। इसे साखानामदी नामक व्यक्ति ने लिखाया था। भगवान् ऋषभदेवकी पुत्री ब्राह्मीने जिन १८ लिपियोंका आविष्कार किया था। वे सभी लिपियाँ इसमें लिखी हुई हैं। इसमें मौर्यकालको ब्राह्मी और द्राविड़ी भाषाएँ भी हैं। अर्धमण्डपके एक स्तम्भपर गुर्जर प्रतिहारवंशी राजा भोजका संवत् ९१९ का एक शिलालेख है। इस मन्दिरका प्रवेश-द्वार और शिखर बड़े भव्य और कलापूर्ण हैं। गर्भगृहके प्रवेश-द्वारके ऊपरके शिलाफलकोंमें भगवान्की माताके सोलह स्वप्नों एवं नवग्रहोंका अनूठा अंकन है। ___ इसके प्रदक्षिणा-पथकी बहिभित्तियोंपर जैन शासनदेवियोंकी सुन्दर मूर्तियाँ बनी हुई हैं। प्रदक्षिणामें ५४ शिलाफलक हैं। इनमें से ६ पर पद्मासन और शेषपर खड्गासन मूर्तियाँ अंकित
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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