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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १८१ करनेका पर्याप्त अवसर प्राप्त हुआ और कलाविदोंने कठिन पाषाणों में सूक्ष्म ललित कलाका अंकन करनेका सफल प्रयत्न किया। जैन देवालय यहाँपर स्थित मन्दिरोंका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है___ मन्दिर नम्बर १-ऊपर जाते समय सीधे हाथकी ओर हमें पहला मन्दिर मिलता है। यह मन्दिर पूर्वाभिमुख है। यह चार-चार स्तम्भोंकी दो पंक्तियोंपर आधारित एक मण्डप के समान है। पुरातत्त्व विभागने स्तम्भोंकी प्रथम पंक्तिमें यहाँ मूर्तियाँ जड़ दी हैं। इनमें खड्गासन और पद्मासन दोनों ही अवस्थाओंकी मूर्तियाँ हैं। पश्चिमकी दीवारपर पंच परमेष्ठियोंकी मूर्तियाँ भिन्न-भिन्न अवस्थामें उकेरी हुई हैं। ___मन्दिर नम्बर २–मन्दिरके मध्यमें केवल दो स्तम्भ खड़े हुए हैं। ये स्तम्भ दीवारके अंग बन गये हैं। इस मन्दिरके पश्चिममें एक द्वार है जो पत्थरकी जालीसे बन्द है। इसके भीतर पद्मासन और खड्गासन १० मूर्तियाँ विराजमान हैं। ___ मन्दिर नम्बर ३-यह उत्तराभिमुख है। यह पूर्व-पश्चिमकी तीन और सात स्तम्भोंकी चार पंक्तियोंपर आधारित है। इसमें खुला मण्डप और मन्दिर है। आगेके भागमें दालान है। पहले यह मन्दिर दो मंजिलका था किन्तु ऊपरकी मंजिल गिर जानेसे अब यह एक मंजिलका रह गया है। इस मन्दिरके दो भाग हैं। पहले भागमें ११ खण्डित मूर्तियाँ हैं जिनमें भगवान् पार्श्वनाथकी मूर्ति अत्यन्त भव्य है । दूसरे भागमें २६ शिलाफलक हैं । उनपर मूर्तियाँ अंकित हैं। मन्दिर नम्बर ४–यह १८ स्तम्भोंपर आधारित है। इन स्तम्भोंमें से २ स्तम्भ मण्डपके अन्तर्गत हैं, १२ को दीवारमें चिन दिया गया है। शेष ४ स्तम्भ मन्दिरके बीच में स्थित हैं। दीवारोंमें भीतरकी ओर अनेक मूर्तियाँ जड़ी हुई हैं। बाहर स्तम्भमें चारों ओर तीर्थंकरों और उपाध्यायोंकी पद्मासन मूर्तियाँ अंकित हैं। दायें स्तम्भमें ये विभिन्न आसनोंमें अंकित हैं। समवसरण वेदीमें विराजमान ऋषभनाथ तथा तीर्थंकर-माता की प्रतिमा दर्शनीय है। मन्दिरके आगे दुमंजिला मण्डप है, जिसमें नीचे और ऊपरके स्तम्भोंमें चारों ओर मूर्तियाँ अंकित हैं। शेषशय्यापर लेटी तीर्थंकरकी माताका अंकन अद्भुत है। ___ मन्दिर नम्बर ५ -अत्यन्त सुन्दर सहस्रकूट चैत्यालय है। पूर्व और पश्चिमकी ओर दो द्वार हैं। दोनों द्वारोंपर सुन्दर अलंकरण हैं। उत्तर और दक्षिणके द्वारके पाषाण मोड़दार हैं। चैत्यालयमें १००८ मूर्तियाँ बनी हुई हैं। मन्दिरके द्वारपर चमरधारी यक्ष-यक्षिणी और द्वारपालकी मूर्तियाँ बनी हुई हैं । ऐसा सुन्दर सहस्रकूट चैत्यालय अन्यत्र अप्राप्य है। मन्दिर नम्बर ६-यह चार स्तम्भोंपर बना हुआ है। इसमें ७ तीर्थंकर मूर्तियाँ दीवारमें जड़ी हुई हैं। इस मन्दिरमें एक मूर्ति भगवान् पार्श्वनाथकी है, जिसके सिरपर सर्प-फण नहीं है किन्तु दोनों ओर दो विशाल सर्प बने हुए हैं। कहा जाता है कि पुरानी रीति यही है। मन्दिर नम्बर ७-चार स्तम्भोंपर आधारित यह चारों ओरसे खुला हुआ है। सीढ़ियाँ उत्तर और दक्षिणमें हैं। इसमें चरणोंके दो फलक हैं। मन्दिर नम्बर ८-यह आठ स्तम्भोंपर बना हुआ लम्बाकार मण्डप है। इसमें तीन द्वार हैं। बायीं ओरके द्वारकी चौखटके ऊपर पद्मासन तीर्थंकर मूर्ति अंकित है। मन्दिर नम्बर ९-इसके आगे एक चबूतरा है । मन्दिरका प्रवेश अलंकृत है । द्वारपर गंगा,
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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