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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ तो प्राचीन वैशाली-कुशीनारा मार्गपर भी नहीं है। उनके मतसे फाजिलनगर-सठियांव पुरानी पावा होनी चाहिए। अब इसी मतको अधिकांश विद्वानोंका समर्थन प्राप्त हो चुका है और फाजिलनगरसठियाँवको ही प्राचीन पावा मान लिया गया है। . "लंकाकी बौद्ध अनुश्रुतियोंके अनुसार पावा कुशीनारासे १२ मील दूर गण्डक नदीकी ओर होनी चाहिए । अर्थात् कुशोनारासे पूर्व या दक्षिण-पूर्वमें । सिंहली अनुश्रुति पावा और कुशीनाराके बीचमें एक नदी भी बताती है, जो ककुत्था कहलाती थी। यहीं बुद्धने स्नान और जल-पान किया था। सम्भवतः इसी नदीका नाम वर्तमानमें घागी है। यह कसियासे पूर्व, दक्षिणपूर्वकी ओर ६ मील दूर है।" 'बुद्ध और महाकाश्यप क्रमशः मगध और वैशालीसे कुशीनारा जाते हुए पावामें ठहरे थे।' फाजिलनगरमें एक भग्न स्पूप है। फाजिलनगर और सठियांव पावाके अवशेषोंपर बने हैं, ऐसा लगता है। भग्न स्तूपसे लगभग डेढ़ फर्लाग उत्तर-पूर्वमें नदी है जो सोनुआ, सोनावा या सोनारा कहलाती है । कुछ दक्षिणकी ओर बढ़नेपर इसीका नाम कुकू पड़ गया है। सठियांवके दक्षिणमें १० मील परे एक घाट अथवा कुकू घाटी है। इस नदीके किनारे इससे मिलते-जुलते नाम पाये जाते हैं, जैसे कर्कुटा, खुरहुरिया, कुटेया। लंका और बर्माकी अनुश्रुतियोंमें इस नदीका नाम ककुत्था या ककुरवा बताया है । यह पावा और कुशीनाराके बीच बहती थी। वर्तमानमें सठियांवसे डेढ़ मील पश्चिमकी ओर प्राचीन नदीके चिह्न मिलते हैं जो अन्हेया, सोनिया और सोनाका कही जाती है। सम्भवतः इसी नदीमें बद्धने स्नान और जल-पान किया था। अन्हेयाके दो मील पश्चिममें एक बड़ी नदी बहती है जो घागी कहलाती है। पडरौनासे १० मील दूर उत्तर-पश्चिममें सिंघा गाँवके पास एक झील है। उसीमें-से घागी, अन्हेया और सोनाका नदी निकली हैं । वस्तुतः घागी बड़ी नदी है । इसकी पश्चिमकी शाखा अन्हेया है और पूर्वकी शाखा सोनावा है। घागीका अर्थ है कुक्कुट। कुक्कुट और ककुत्था पर्यायवाची शब्द हैं। पावाके खण्डहर ही अब सठियाँव डीह कहलाते हैं। इन्हीं टीलोंपर सठियाँव गाँव बसा है। फाजिलनगर और सठियाँव दोनों एक प्राचीन गाँवके दो भाग हैं। सठियांव डीहके पश्चिममें एक बड़ा तालाब है जो ११०० फुट लम्बा और ५५० फुट चौड़ा है। इसके आसपास छोटे-बड़े कई तालाब हैं । सठियाँव का बड़ा डीह उत्तरमें है जो १७०० फुट लम्बी एक सड़कसे जुड़ता है, जो कसिया-फाजिलनगर सड़क से मिलती है । इसके पासमें ही फाजिलनगर-पटकावली सड़क जाती है। सारा सठियाँव डीह प्राचीन नगरके ही अवशेष हैं। डीहपर सघन वृक्ष खड़े हुए हैं। इसके दक्षिणी भागमें लगभग तीन चौथाई भागमें ईंटें बिखरी पड़ी हैं। ईंटोंके ऊँचे-ऊँचे ढेर भी जहाँतहाँ मिलते हैं । सम्भवतः ये स्तूपोंके अवशेष हैं। एक टीलेपर लोगोंने देवीका थान बना लिया है। एक पेड़के सहारे देवीकी मूर्ति खड़ी है। यहाँ जो ईंटें मिलती हैं, उनमें कुछ ११ इंच लम्बी, कुछ १३ और १४ इंच लम्बी हैं। खुदाईमें १५ इंचकी भी ईंटें मिली हैं। फाजिलनगरमें थाना और पोस्ट-आफ़िस है। ये भी ईंटोंके टीलेपर बने हैं । इसके आसपास भी बहुत-से टीले हैं । मुख्य सड़कसे उत्तरकी ओर ३५० फुटकी दूरीपर एक बड़ा टीला है। विश्वास किया जाता है, यह टीला किसी स्तूपका अवशेष है। टीलेके ऊपर स्तूपकी ऊँचाई ३५ फुट है। स्तूपका ऊपरी भाग ४० से ४४ फुटके घेरेमें है । सम्भव है, बुद्धकी अस्थिभस्मके ऊपर बना हुआ स्तूप यही हो । यहाँ मन्दिर या विहारके भी कुछ चिह्न मिले हैं। एक ध्वस्त भवन भी है। इन दोनों २३
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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