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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ निर्वाणके समय यहाँ भारी जन-समूह एकत्रित हुआ था। प्रत्येक व्यक्तिने इस पवित्र भूमिकी एकएक चुटकी मिट्टी उठाकर अपने भालमें श्रद्धापूर्वक लगायी थी। तभीसे यह तालाब बन गया है।
यह भी कहा जाता है कि यह सरोवर पहले चौरासी बीधेमें फैला हुआ था। आजकल यह चौथाई मील लम्बा और इतना ही चौड़ा है। सरोवर अत्यन्त प्राचीन प्रतीत होता है। इसके मध्य- .. में श्वेत संगमरमरका जैनमन्दिर है जिसे जल-मन्दिर कहते हैं। इसमें भगवान्के पावन चरण विराजमान हैं। मन्दिर तक जानेके लिए तालाबमें उत्तरकी ओर एक पुल बना हुआ है। जिस टापूपर यह मन्दिर बना हुआ है, वह १०४ वर्ग गज है।
किन्तु कुछ लोगोंका विश्वास है कि भगवान् महावीरका निर्वाण जिस पावामें हुआ था, वह पावा यह नहीं है जो वर्तमानमें मानी जा रही है। ऐसे लोगोंमें कुछ इतिहासकार और विद्वान् भी हैं। उनके मुख्य तर्क ये हैं
१–भगवान् महावीरका निर्वाण मल्लोंकी पावामें हुआ था। वर्तमान पावापुरी मल्लोंकी पावा नहीं थी।
२-महात्मा बुद्धने अपना अन्तिम भोजन पावाके कर्मारपुत्र चुन्दके घर किया था। उन्होंने सूकर मद्दव खाया। खाकर वे अस्वस्थ हो गये और वहाँसे वह कुशीनारा पहुँचे। पावा और कुशीनारा दोनों ही मल्लोंके प्रदेश थे।
३-मल्लोंकी यह पावा कहाँ थी, इसके सम्बन्धमें विद्वानोंमें मतभेद है। कुछ लोग पडरौनाको प्राचीन पावा मानते हैं। पडरौना कशीनारासे उत्तर-पूर्वकी ओर १९ कि. मी. है। कुछ विद्वान पपउरको पावा मानते हैं। पपउर छपरा जिलेमें सिवानसे पूर्वकी ओर ५ कि. मी. है। तीसरे वे विद्वान् हैं जो फाजिलनगर-सठियाँवको पावा मानते हैं। यह देवरियासे कुशीनारा होते हुए, लगभग ५६ कि. मी. है। इसके चारों ओर कपिलवस्तुसे लेकर कुशीनारा, पडरौना, फाजिलनगर, सठियांव, सरेया. कक्करपाटी, नन्दवा, दनाहा, आसमानपुर डीह, मीरबिहार, फरमटिया और गांगी टिकार तक प्राचीन भवनों, मन्दिरों और स्तूपोंके ध्वंसावशेष बिखरे पड़े हैं।
इन अवशेषोंकी यात्रा भारत सरकारकी ओरसे मि. कनिंघम, वैगलर, कार्लाइल आदिने सन १८७५ या उसके आसपास की थी। इन विद्वानोंके यात्रा-विवरण सरकारकी ओरसे प्रकाशित हो चुके हैं ।
एक अन्य रिपोर्ट ( Archeological Survey Report, 1905 ) में डॉ. वोगेलने बताया है कि कुशीनगर और सठियांव आदिमें कोई इमारत मौर्यकालके बादकी नहीं है, सब इसके पहले की हैं।
कनिंघमने अपनी १८६१-६२ की रिपोर्ट में और बादमें 'Ancient Geography of India' में पडरौनाको पावा माना है।
कार्लाइलका मत है कि पावा वैशाली-कुशीनारा मार्गपर अवस्थित थी। अतः वह कुशीनारासे दक्षिण-पूर्वमें होनी चाहिए, जबकि पडरौना उत्तर और उत्तर-पूर्व में १२ मील दूर है। वह
?. ( a ) Report of tours in the Gangetic Provinces from Badaon to Bihar in 1875
76 and 1877-78 by Alexander Cunningham, Vol. XI. - (b ) Report of a tour in the Gorakhpur District in 1875-76 and 1876-77 by
A.C. L. Carlleyle, Vol. XVIII.