SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७५ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ ३. राज्ये शक्रोपमस्य क्षितिपशतपतेः स्कन्दगुप्तस्य शान्ते . ४. वर्षे त्रिंशद्दशकोत्तरकशततमें ज्येष्ठमासि प्रपन्ने ॥१॥ ५. ख्यातेऽस्मिन् ग्रामरत्ने ककुभ इति जनैस्साधुसंसर्गपूते ६. पुत्रो यस्सोमिलस्य प्रचुरगुणनिधेर्भट्टिसोमो महात्मा ७. तत्सून रुद्रसोम (:) प्रथुलमतियशा व्याघ्र इत्यन्यसंज्ञो ८. मद्रस्तस्यात्मजोऽभूद् द्विजगुरुयतिषु प्रायशः प्रीतिमान् यः ॥२॥ ९. पूण्यस्कन्धं स चक्रे जगदिदमखिलं संसरवीक्ष्य भीतो १०. श्रेयोऽर्थं भूतभूत्यै पथि नियमवतामहतामादिकतॄन् ११. पर्चेन्द्रान्स्थापयित्वा धरणिधरमयान् सन्निखातस्ततोऽयम् १२. शैलस्तम्भः सुचारुगिरिवरशिखरानोपमः कीर्तिकर्ता ।।३।। ( इस शिलालेखमें, जो कि गुप्तकालके १४१वें वर्षका है, बताया गया है कि किसी मद्र नामके व्यक्तिने, जिसकी वंशावलि यहाँ उसके प्रपितामह सोमिल तक गिनायी है, अर्हन्तों ( तीर्थकरों )में मुख्य समझे जानेवाले, अर्थात् आदिनाथ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्व और महावीर, इन पाँचोंकी प्रतिमाओंकी स्थापना करके इस स्तम्भको खड़ा किया। लेखकी ११वीं पंक्तिके 'पंचेन्द्रान्' शब्दका इन्हीं पाँच तीर्थकरोंसे मतलब है।) -इण्डियन एण्टिक्वेरी. जिल्द १०, पष्ठ १२५-१२६ । -जैन-शिलालेख संग्रह, भाग २, पृष्ठ ५९ । स्तम्भके ऊपर चौकी बनी हुई है। उसके ऊपर पाँच तीर्थंकरों-आदिनाथ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीरकी प्रतिमाएं विराजमान हैं। ___ ब्राह्मी लेखके अनुसार इस मानस्तम्भका निर्माण एवं प्रतिष्ठा जैन धर्मानुयायी मद्र नामक एक ब्राह्मणने गप्त संवत १४१ ( ई. सन ४६० )में सम्राट स्कन्दगप्तके कालमें करायी थी। ___ ग्रामीण लोग अज्ञानतावश उस मानस्तम्भको 'भीमकी छड़ी' या 'भीमसेनकी लाट' कहते है और दही-सिन्दूरसे इसकी पूजा करते हैं। इसके कारण नीचेके भी भागमें बनी हुई पार्श्वनाथप्रतिमा काफी विरूप हो गयी है। पावा (नवीन) भगवान् महावीरकी निर्वाण भूमि पावा या पावापुरी बिहार शरीफसे सात मील दक्षिणपूर्वमें और गिरियकसे दो मील उत्तरमें अवस्थित है। दिगम्बर शास्त्र तिलोयपण्णत्ति, निर्वाणकाण्ड, निर्वाण-भक्ति, हरिवंशपुराण, जयधवला, उत्तर-पुराण आदिमें महावीरका निर्वाण पावामें माना है । इन शास्त्रोंमें पावाके लिए पावा, पावानगर, पावापुर, पावानगरी, मध्यम-पावा आदि शब्दोंका प्रयोग मिलता है । श्वेताम्बर शास्त्र-कल्पसूत्र, आवश्यक-नियुक्ति, परिशिष्ट-पर्व, विविधतीर्थ-कल्प आदिमें इस नगरका नाम मज्झिमा ( मध्यम ) पावा, मध्यमा, अपापा, अपापापुरी, पावापुरी आदि दिया है। निर्वाण-भक्ति ( संस्कृत ), उत्तरपुराणमें कमलोंसे सुशोभित तालाबके बीच भगवान्के निर्वाणका उल्लेख मिलता है । विविध तीर्थकल्पमें ऐसा उल्लेख है कि उस तालाबमें अब भी सर्प किलोल करते रहते हैं। जिस स्थानपर भगवान्का निर्वाण हुआ था, वहाँ अब भी एक विशाल सरोवर है। इस तालाबके सम्बन्धमें जनतामें एक विचित्र किंवदन्ती प्रचलित है। कहा जाता है कि भगवान्के
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy