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________________ प्राक्कथन जिस तीर्थ पर जायें और जिस मूतिके दर्शन करें, उसके बारेमें पहले जानकारी कर लेना जरूरी है। इससे दर्शनोंमें मन लगता है और मनमें प्रेरणा और उल्लास जागृत होता है। तीर्थ-यात्राके समय चमड़ेकी कोई वस्तु नहीं ले जानी चाहिए। जैसे-सूटकेस, बिस्तरबन्द, जूते, बैल्ट, घड़ीका फीता, पर्स आदि । अन्तमें एक निवेदन और है । भगवान् के समक्ष जाकर कोई मनौती नहीं मनानी चाहिए, कोई कामना लेकर नहीं जाना चाहिए । निष्काम भक्ति सभी संकटोंको दूर करती है। स्मरण रखना चाहिए कि भगवान्से सांसारिक प्रयोजनके लिए कामना करना भक्ति नहीं, निदान होता है। भक्ति निष्काम होती है, निदान सकाम होता है । निदान मिथ्यात्व कहलाता है और मिथ्यात्व संसार और दुःखका मूल है। विषापहार स्तोत्रमें कवि धनंजयने भगवान्के समक्ष कामना प्रकट करनेवालोंकी आँखोमें उंगली डालकर उन्हें जगाते हुए कितने सुन्दर शब्दोंमें कहा है इति स्तुति देव विधाय दैन्याद् वरं न याचे त्वमुपेक्षकोऽसि । छायातलं संश्रयतः स्वतः स्यात् कश्छायया याचितयात्मलाभः ॥ अर्थात् हे देव ! स्तुति कर चुकने पर मैं आपसे कोई वरदान नहीं मांगता। माँD क्या, आप तो वीतराग हैं। और मांग भी क्यों? कोई समझदार व्यक्ति छायावाले पेड़के नीचे बैठकर पेड़से छाया थोड़े ही मांगता है । वह तो स्वयं बिना मांगे ही मिल जाती है। ऐसे ही भगवान्की शरणमें जाकर उनसे किसी बात की कामना क्या करना । वहाँ जाकर सभी कामनाओंकी पूर्ति स्वतः हो जाती है। तीर्थ-ग्रन्थको परिकल्पना भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी बम्बईको बहुत समयसे इच्छा और योजना थी कि समस्त दिगम्बर जैन तीर्थोंका प्रामाणिक परिचय एवं इतिहास तैयार कराया जाये। सन् १९५७-५८ में तीर्थक्षेत्र कमेटीके सहयोगसे मैंने लगभग पांच सौ पृष्ठकी सामग्री तैयार भी की थी और समय-समयपर उसे तीर्थ-क्षेत्र कमेटीके कार्यालयमें भेजता भी रहता था। किन्तु उस समय उस सामग्रीका कुछ उपयोग नहीं हो सका। सन् १९७० में भगवान् महावीरके २५०० वें निर्वाण महोत्सवके उपलक्ष्यमें भारतवर्षके सम्पूर्ण दिगम्बर जैन तीर्थोके इतिहास, परम्परा और परिचय सम्बन्धी ग्रन्थके निर्माणका पुनः निश्चय किया गया । यह भी निर्णय हुआ कि .यह ग्रन्थ भारतीय ज्ञानपीठके तत्त्वावधानमें भारतवर्षीय दिगम्बर जैनतीर्थ क्षेत्र कमेटी बम्बईकी ओरसे प्रकाशित किया जाये। भगवान् महावीरके २५००वें निर्माण महोत्सवको अखिल भारतीय दिगम्बर जैन समितिके मान्य अध्यक्ष श्रीमान् साहू शान्तिप्रसादजीने, जो तीर्थक्षेत्र कमेटीके भी अध्यक्ष हैं, मुझे इस ग्रन्थके लेखन-कार्यका दायित्व लेनेके लिए प्रेरित किया और मैंने भी उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। ग्रन्थको रूपरेखा इस ग्रन्थकी रूपरेखा निम्न प्रकार निश्चित की गयी है१. इस ग्रन्थ के पाँच भाग रहेंगे, जो इस प्रकार है भाग १. उत्तर प्रदेश, दिल्ली एवं पंजाब ( पाकिस्तान ) के तीर्थ भाग २. बिहार, बंगाल और उड़ीसाके तीर्थ भाग ३. मध्य प्रदेशके तीर्थ भाग ४. राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्रके तीर्थ भाग ५. दक्षिण भारतके तीर्थ
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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