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________________ २० भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ उदाहरण के रूपमें यदि सर्दीमें यात्रा करनी हो तो ओढ़ने विछानेके रईवाले कपड़े ( मद्दा और रजाई ) तथा पहनने के गर्म कपड़े अवश्य अपने साथमें रखने चाहिए। उत्तर प्रदेशमें ग्रीष्म ऋतुमें गर्मी अधिक पड़ती है और सर्दी के मौसम में अधिक सर्दी पड़ती है। विशेषतः गुजरात, मद्रास आदि प्रान्तोंके यात्रियोंको उत्तर प्रदेशके तीथोंकी यात्रा करते समय इस बातको ध्यान में रखना चाहिए। कपड़ोंके अलावा स्टोव, आवश्यक बर्तन और कुछ दिनोंके लिए दाल, मसाला, आटा आदि भी साथ में ले जाना चाहिए । उत्तर प्रदेशके तीर्थों में उत्तराखण्डके अतिरिक्त प्रायः सभी तीर्थ मैदानी इलाके में हैं । और इनकी यात्रा किसी भी मौसममें की जा सकती है। जिन दिनों अधिक गर्मी पड़ती और वर्षा होती है, उन्हें बचाना चाहिए - जिससे असुविधा अधिक न हो । तीर्थ क्षेत्रपर पहुँचने पर यह ध्यान रखना चाहिए कि तीर्थक्षेत्र पवित्र होते हैं। उनकी पवित्रताको किसी प्रकार आन्तरिक और बाह्य रूपसे क्षति नहीं पहुँचनी चाहिए । ज्ञानार्णवमें आचार्य शुभचन्द्रने कहा है “जनसंसर्गवाक्चित्तपरिस्पन्दमनोभ्रमाः । उत्तरोत्तरबीजानि ज्ञानिजनमतस्त्यजेत् ॥” अर्थात् अधिक मनुष्यों का जहाँ संसर्ग होता है, वहाँ मन और वाणी में चंचलता आ जाती है और मनमें विभ्रम उत्पन्न हो जाते हैं । यही सारे अनर्थीकी जड़ है । अतः ज्ञानी पुरुषोंको अधिक जन-संसर्ग छोड़ देना चाहिए । यदि शास्त्र-प्रवचन, तत्त्व-चर्चा, प्रभु-पूजन, कीर्तन, सामायिक प्रतिक्रमण या विधान-प्रतिष्ठोत्सव आदि धार्मिक प्रसंग हों तो जन-संसर्ग अनर्थका कारण नहीं है, क्योंकि वहाँ सभीका एक ही उद्देश्य होता है और वह है-धर्म-साधना किन्तु जहाँ जनसमूहका उद्देश्य धर्म-साधना न होकर सांसारिक प्रयोजन हो, वहाँ जन-संसर्ग संसार-परम्पराका ही कारण होता है । तीर्थ क्षेत्रों पर जो जनसमूह एकत्रित होता है, उसका उद्देश्य धर्म-सायन होता है। यदि उस समूहमें कुछ तत्व ऐसे हों जो सांसारिक चर्चाओं और अशुभ रागवर्द्धक कार्योंमें रस लेते हों तो तीर्थों पर जाकर ऐसे तत्वोंके सम्पर्क यथासम्भव बचनेका प्रयत्न करना चाहिए तथा अपने चित्तकी शान्ति और शुद्धि बढ़ानेका ही उपाय करना चाहिए । यही आन्तरिक शुद्धि कहलाती है । बाह्य शुचिता का प्रयोजन बाहरी शुद्धि है। तीर्थ क्षेत्रोंपर जाकर गन्दगी नहीं करनी चाहिए । मलमूत्र यथास्थान ही करना चाहिए। बच्चोंको भी यथास्थान ही बैठाना चाहिए। दीवालों पर अश्लील वाक्य नहीं लिखने चाहिए | कूड़ा, राख यथास्थान डालना चाहिए। रसोई यथास्थान करनी चाहिए। सारांश यह है कि तीचों पर बाहरी सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। स्त्रियोंको एक बातका विशेष ध्यान रखना चाहिए। मासिक धर्म के समय उन्हें मन्दिर, धर्म-सभा, शास्त्र-प्रवचन, प्रतिष्ठा मण्डप आदिमें नहीं जाना चाहिए। कई बार इससे बड़े अनर्थ और उपद्रव हो जाते हैं। जब तीर्थ क्षेत्र के दर्शनके लिए जायें, तब स्वच्छ धुला हुआ ( सफेद या केशरिया ) धोती- दुपट्टा पहन कर और सामग्री लेकर जाना चाहिए। जहाँ तक हो, पूजनकी सामग्री घरसे ले जाना चाहिए। यदि मन्दिरकी सामग्री लें तो उसकी न्योछावर अवश्य दे देनी चाहिए। जहाँसे मन्दिरका शिखर या मन्दिर दिखाई देने लगे, वहीं 'दुष्टाष्टक' अथवा कोई स्तोत्र बोलते जाना चाहिए। क्षेत्रके ऊपर यात्रा करते समय या तो स्तोत्र पढ़ते जाना चाहिए अथवा अन्य लोगोंके साथ धर्म-वात और धर्म-वर्चा करते जाना चाहिए । क्षेत्र पर और मन्दिरमें विनयका पूरा ध्यान रखना चाहिए। सामग्री यथास्थान सावधानीपूर्वक चढ़ानी चाहिए उसे जमीनमें, पैरोंमें नहीं गिरानी चाहिए। गम्बोदक भूमि पर न गिरे, इसका ध्यान रखना आव श्यक है। गन्धोदक कटि भागसे नीचे नहीं लगाना चाहिए। पूजनके समय सिरको ढकना और केशरका तिलक लगाना आवश्यक है ।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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