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भारत के दिगम्बर जैन तीर्थं
कलागारोंको खण्डहर बना दिया । अब वे केवल पुरातत्त्वान्वेषकोंके अन्वेषण के लिए मिट्टी में दबे पड़े हैं।
पुरातत्त्व - यहाँ भग्नावशेषोंके तीस टीलें हैं, जो मीलोंमें बिखरे हुए हैं । स्थानीय लोग इन्हें 'देउरा' कहते हैं । 'देउरा' शब्द जैनदेवालयोंके लिए ही प्रायः प्रयुक्त होता है । यहाँ उत्खननके फलस्वरूप जो पुरातत्त्व सामग्री उपलब्ध हुई है, उसमें तीन टीलोंपर कुछ हिन्दू मूर्तियाँ भी मिली हैं जो बहुत आधुनिक हैं। शेष जितनी भी सामग्रियाँ उपलब्ध हुई हैं, सभी जैन हैं । और वह भी गुप्तकालकी या उसके पूर्व की हैं। बौद्धधर्म से सम्बन्धित कोई सामग्री यहाँ नहीं प्राप्त हुई
खुदाई के फलस्वरूप श्री आदिनाथ, शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ और भगवान् महावीरकी मूर्तियों, तीर्थंकरोंके सेवक यक्ष, सिद्धार्थ यक्ष, चैत्यवृक्ष और स्तूपोंके भग्न भाग मिले हैं। चैत्यवृक्षोंका सम्बन्ध केवल जैनधर्मसे ही है । दम्पति कभी-कभी जिनके साथ दो बालक होते हैं, एक वृक्षके
बैठे हुए होते हैं । उनके ऊपर जैन - प्रतिमा रहती है । यह दम्पति प्रायः गोमेद यक्ष और अम्बिका यक्षिणी होते हैं, जो सुखासन से बैठे होते हैं । प्रत्येक तीर्थंकर के सेवक एक यक्ष और एक यक्षिणी होते हैं । जिन्हें शासन देवता कहते हैं । उनके रूप, वाहन, मुद्रा आदि के सम्बन्धमें जैनशास्त्रों में विस्तृत विवरण मिलता है । यहाँपर भी कई चैत्यवृक्ष मण्डित शिलापट, गोमुख आदि यक्षों और यक्षियोंकी मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। टीला नं. ११ की खुदाई करनेपर ८९ फीट चौकोर फर्श मिला, जिसमें फूलदार ईंटें लगी हुई हैं । कनिंघमने इसे जैनमन्दिर बताया है ।
निश्चय ही यह स्थान अनेक शताब्दियों तक जैन संस्कृतिका केन्द्र रहा है । अतः यहाँ विपुल परिमाण में जैन पुरातत्त्व मिलता है । ऐतिहासिक दृष्टिसे यह सामग्री ईसा पूर्व से लेकर गुप्तकाल Sarat है । अभी तक सब टीलोंकी खुदाई नहीं हो पायी और जिन टीलोंकी खुदाई हुई है, यह भी अधिक गहराई तक नहीं हुई । यदि सब टीलों की गहराई तक खुदाई की जाये तो कला, संस्कृति और इतिहासके अनेक रहस्योंपर प्रकाश पड़ सकेगा ।
जैन मन्दिर - खुखुन्दू कस्बेके एक छोरपर खेतोंके बीचमें दिगम्बर जैन मन्दिर बना हुआ है । भगवान् पुष्पदन्तका जन्म यहीं हुआ था, ऐसा विश्वास किया जाता है । वर्तमान में यद्यपि मन्दिर बहुत बड़ा नहीं है किन्तु उसकी स्थिति अच्छी है । मन्दिरमें केवल एक ही वेदी है । यह चार स्तम्भों पर मण्डपनुमा बनी हुई है । एक शिलाफलकमें भगवान् नेमिनाथकी कृष्ण पाषाण
पद्मासन प्रतिमा विराजमान है । अवगाहना २ फुट ३ इंच है। पादपीठके मध्य में शंखका लांछन अंकित है । इधर-उधर शासन देवता खड़े हैं। दोनों ओर इन्द्र बने हुए हैं, जिनके हाथमें वज्र है। उनके ऊपर दो-दो देव-देवियाँ हैं । ऊपर गजारूढ़ देव पुष्पवर्षा कर रहे हैं। सिरके ऊपर त्रिछत्र और अलंकरण हैं । यही मूलनायक प्रतिमा है ।
इसके अतिरिक्त एक श्वेत पाषाणकी पद्मासन पुष्पदन्त भगवान्की ११ इंच ऊँची प्रतिमा विराजमान है । यह वि. संवत् १५४८ की है । धातुकी एक चौबीसी है जो वि. संवत् १५५६ की है । धातुकी एक अन्य प्रतिमा भगवान् पार्श्वनाथकी ९ इंच अवगाहनावाली है । भूगर्भ से ८ इंचकी भूरे पाषाणकी एक देवीमूर्ति प्राप्त हुई थी जो यहाँ रखी हुई है । देवीके बगल में बच्चा है । इससे लगता है कि यह अम्बिका देवीकी मूर्ति है । इसके दायीं ओर यक्ष- मूर्तिका अंकन है जो सम्भवतः सर्वा (गोमेद ) यक्षकी है ।
भगवान् नेमिनाथ ओर अम्बिकाकी उपरोक्त मूर्तियाँ गुप्तकाल या उससे भी पूर्वको प्रतीत
होती हैं ।