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________________ १७० भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ वर्तमान जैनमन्दिर ___ बलरामपुरसे बहराइच जानेवाली सड़क किनारे नवीन दिगम्बर जैनमन्दिर बना हुआ है। मन्दिर शिखरबद्ध है। मन्दिरके बाहर तीन ओर बरामदे हैं। एक हालमें एक वेदी बनी हुई है। भगवान् सम्भवनाथकी श्वेत वर्ण पद्मासन पौने चार फुट अवगाहनावाली भव्य प्रतिमा विराजमान है। इसकी प्रतिष्ठा सन् १९६६में की गयी थी। मूलनायकके अतिरिक्त २ सम्भवनाथकी, १ महावीर स्वामीकी तथा १ सिद्ध भगवान्की धातु प्रतिमाएं भी विराजमान हैं। भगवान्के चरण युगल भी अंकित हैं। मन्दिर उद्यानके दायें बाजूमें है। सामने यहीं जैन-धर्मशाला भी है। काकन्दी मार्ग-पूर्वी उत्तर प्रदेशके देवरिया जिले में 'खुखुन्दू' नामका एक क़स्बा है। यह नूनखार रेलवे स्टेशनसे दक्षिण-पश्चिमकी ओर ३ कि. मी. दूर है। सड़क मार्गसे देवरिया-सलेमपुर सड़कसे १ मील कच्चे मार्गसे जाना पड़ता है। मेन रोड लखनऊ-आसाम टाइवे हैं। पश्चिमसे आनेवालोंको देवरिया और पूर्वसे आनेवाले यात्रियोंको सलेमपूर उतरना चाहिए। दोनों ही स्थानोंसे यह १४-१४ कि. मी. है। इस कस्बेके पास ही कई प्राचीन तालाब और तीस टीले हैं। जहाँ प्राचीन मन्दिरों और भवनोंके भग्नावशेष लगभग एक मीलमें बिखरे पड़े हैं। ये ही टीले प्राचीन कालीन काकन्दी कहलाते हैं। काकन्दीका ही नाम पश्चाद्वर्ती कालमें किष्किन्धापुर हो गया था। और फिर वह भी बदलते-बदलते खुखुन्दू हो गया है। इस गाँवमें थाना, पोस्ट आफिस, स्कूल, कालेज हैं। जैन तीर्थ-जैन परम्परामें अत्यन्त प्राचीन कालसे काकन्दीका नाम बड़ी श्रद्धासे लिया जाता है। यहाँ नौवें तीर्थकर भगवान पूष्पदन्तके गर्भ और जन्म कल्याणक हुए थे। इसी नगरके पुष्पक वनमें उनका दीक्षाकल्याणक हुआ था। यह पुष्पक वन ही कभी किसी कालमें ककुभग्राम कहलाने लगा और एक अलग तीर्थधाम बन गया। पश्चात् दुर्धर्ष कालप्रवाहमें पड़कर न काकन्दी बची और न ककुभग्राम । दोनों ही नगर खण्डहर बन गये। मीलोंमें फैले हुए इन खण्डहरोंकी छातीमें इन प्राचीन तीर्थोकी कला, उनकी संस्कृति और इतिहास छिपा पड़ा है। जैनसाहित्यमें काकन्दीका भगवान् पुष्पदन्तके साथ सम्बन्ध बतानेवाले अनेक उल्लेख मिलते हैं। तिलोयपण्णत्तिमें इस सम्बन्धमें निम्नलिखित उल्लेख आया है रामा सुग्गीवेहि काकंदीए य पुप्फयंत जिणो। . मग्गसिर पाडिवाए सिदाए मूलम्मि संजणिददे ।।४।५३४।। अर्थात् रामा माता और सुग्रीव पिताके यहाँ काकन्दी नगरीमें मंगसिर शुक्लाको मूल नक्षत्र में भगवान् पुष्पदन्तका जन्म हुआ। भगवान्के जन्मके कारण इन्द्रों और देवोंने महाराज सुग्रीवके राजभवनोंमें और नगरमें पन्द्रह माह तक रत्नवृष्टि को। भगवान्के गर्भ और जन्मकल्याणकका महोत्सव किया। एक दिन उल्कापात देखकर भगवान्को एकाएक सांसारिक असारताका बोध हुआ। उन्होंने जीवनको क्षणभंगुर जानकर इस मनुष्य देहके द्वारा आत्मकल्याण करनेकी भावनासे मनि-दीक्षा ले ली। उस समय भी इन्द्र और देव भगवान्का दीक्षाकल्याणक मनानेके लिए यहाँ भक्तिभावनासे आये। 'तिलोयपण्णत्ति' में इस सम्बन्धमें निम्नलिखित विवरण उपलब्ध होता है
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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