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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १६९ और दक्षिण की ओर द्वार हैं । दीवार का आसार साढ़े तीन फुट है। गर्भगृह के बाहर चबूतरा है। उसके आगे नीचाई में दो आँगन हैं। ऐसा लगता है कि यह मन्दिर तीन कटनियोंपर बना था। इसका पूर्वी भाग कंकरीले फर्शवाला समचतुर्भुज आँगन है जो पूर्वसे पश्चिम ५९ फुट और उत्तरसे दक्षिण ४९ फुट चौड़ा है। इसके चारों ओर ईंटोंकी दीवार है। इसमें मध्यकालीन मन्दिरोंकी शैलीको गढ़ी हुई छोटी ईंटें लगी हैं। दीवारके अन्दरूनी भागमें वेदियां बनी हुई हैं। खुदाईके समय यहाँ बहुत-सी जैनमूर्तियाँ मिली थीं। कहा जाता है, यहाँ चौबीस तीर्थंकरोंकी मूर्तियाँ थीं। इस मन्दिरके उत्तर-पश्चिमी कमरेमें प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेवकी एक मूर्ति मिली थी। एक शिलापट्टपर पद्मासन मुद्रामें भगवान् विराजमान हैं। पीठासनके दोनों ओर सामने दो सिंह बैठे हुए हैं। मध्यमें ऋषभदेवका लांछन वृषभ है। प्रतिमाके दोनों ओर दो यक्ष खड़े हैं। उनके ऊपर तीन छत्र सुशोभित हैं। यह मूर्ति बड़ी भव्य है और लगभग एक हजार वर्ष प्राचीन है। शिलापट्टपर तेईस तीर्थंकरोंको भी मूर्तियाँ उकेरी हुई हैं। ___ कई मूर्तियोंके आसनपर शिलालेख उत्कीर्ण हैं। इन लेखों के अनुसार प्रतिमाओंका प्रतिष्ठा काल वि. संवत् ११३३, १२३४ है। इनके अलावा यहाँ चैत्यवक्ष. शासन देवियोंकी मतियाँ आदि पुरातत्त्व अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। ये सब प्रायः मध्यकालीन कलाके उत्कृष्ट नमूने हैं । सोभनाथ मन्दिरके बाहर पुरातत्त्व विभागकी ओरसे जो परिचय पट्ट लगा हुआ है, उसपर इसका परिचय इस प्रकार लिखा है "यह एक जैनमन्दिर है। सोभनाथ भगवान् सम्भवनाथका अपभ्रंश ज्ञात होता है । सम्भवनाथ तीसरे जैन तीर्थंकर थे और उनकी जन्मभूमि श्रावस्ती थी। यहाँसे कितने ही जैन आचार्यों ( तीर्थंकरों की प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं। इस मन्दिरके किसी विशेष भागकी कोई निश्चित तिथि तय नहीं की जा सकती है। इसके ऊपरका गुम्बद, जो उत्तरकालीन भारतीय अफगान शैलीका है, प्राचीन जैनमन्दिरके शिखरके स्थानपर बनाया गया है।" कनिंघम आदि पुरातत्त्ववेत्ताओं की मान्यता है कि इस मन्दिरके आसपास १८ जैनमन्दिर थे। इन अवशेषोंपर पेड़ और झाड़ियाँ उग आयी हैं। चारों ओरका जंगल अवशेषोंपर ही है। कुछ लोगोंका विश्वास है कि भगवान् चन्द्रप्रभुका जन्मस्थान यहीं था और वह इन ध्वस्त मन्दिरोंमें से कोई एक था। सोभनाथ मन्दिरके निकट ही दो टीले हैं, एकका नाम है पक्की कुटी और दूसरेका नाम है कच्ची कुटी। दोनों टीलोंपर धनुषाकार दीवार बनी हुई है। दोनों ही टीलेका सूक्ष्म अवलोकन करनेपर प्रतीत होता है कि यहाँपर अवश्य ही स्तूप रहे होंगे। बौद्धतीर्थ सहेट भाग बौद्धतीर्थ रहा है । महात्मा बुद्धके निवासके लिए सेठ सुदत्तने राजा प्रसेनजितके पुत्र राजकुमार जेतसे उसका उद्यान 'जेतवन' अठारह करोड़ मुद्रामें खरीदकर एक विहारका निर्माण कराया था। सेठानी विशाखाने भी 'पूर्वाराम' नामका एक संघाराम बनवाया था। सम्राट अशोकने एक स्तूपका निर्माण कराया था। महात्मा बुद्धने यहाँ कई चातुर्मास किये थे। इन सब कारणोंसे बौद्ध लोग भी इसे अपना तीर्थ मानते हैं। देश-विदेशके बौद्ध यहाँ यात्रा करने आते हैं। यहाँ बौद्धों के तीन नवीन मन्दिर भी बन चुके हैं। वैशाखी पूर्णिमाको उनका मेला भी भरता है। २२
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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