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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
'कनिंघम तथा स्मिथने भी इसका समर्थन किया है। यह राजा जैन था। उस समय महमूद गजनवी भारतके अनेक प्रान्तोंको रौंदता हआ गजनी लौट गया। उसने अपने भानजे सैयद सालार मसऊद गाजीको अवध-विजयके लिए मुसलमानोंकी विशाल सेनाके साथ भेजा। सालार जितना बहादुर सिपहसालार था, उतना ही कूटनीतिज्ञ भी था । उसने अनेक हिन्दू राजाओंको फूट डालकर अथवा युद्ध में गायोंको आगे करके पराजित कर दिया। किन्तु जब वह बहराइचके समीप कौडियालाके मैदानमें पहुंचा तो उसे दृढ़ संकल्पी जैन नरेश सुहलदेवसे मोर्चा लेना पड़ा । इस युद्धमें सन् १०३४ में सैयद सालार और उसके सैनिक राजा महलदेवके हाथों मारे गये। इससे श्रावस्ती भी सुरक्षित रही और लगभग दो सौ वर्ष तक अवध भी मसलमानोंके आतंकसे मक्त रहा।
किन्तु इस घटनाके कुछ समय पश्चात् किसी दैवी विपत्तिके कारण श्रावस्तीका पतन हो गया। उसके बाद अलाउद्दीन खिलजीने आकर यहाँके मन्दिरों, विहारों, स्तूपों और मूर्तियोंका बुरी तरह विनाश किया। उसके कारण श्रावस्ती खण्डहरोंके रूप में परिवर्तित हो गयी और फिर कभी अपने पूर्व गौरवको प्राप्त न कर सकी। पुरातत्त्व
यह नगरी प्रारम्भसे तीर्थ-क्षेत्रके रूपमें मान्य रही है तथा खूब समृद्ध रही है। अतः यहाँ विपुल संख्यामें मन्दिरों, स्तूपों और विहारोंका निर्माण हुआ। मौर्ययुगमें सम्राट अशोकने कई स्तम्भ और समाधि स्तूप बनवाये थे। उसके पौत्र सम्राट सम्प्रतिने भगवान सम्भवनाथकी जन्मभूमिपर स्तूप और मन्दिरोंका निर्माण कराया था। इसी प्रकार वहाँके श्रेष्ठियोंने भी मन्दिरों आदिका निर्माण कराया था। किन्तु अलाउद्दीन खिलजी ( १२२६-१३१६ ) ने इन कलाकृतियों
और धर्मायतनोंका विनाश कर दिया। उसके खण्डहर सहेट-महेट ग्राममें मीलों तक बिखरे पड़े हैं। भारत सरकारकी ओरसे यहाँ सन् १८६३से पुरातत्त्ववेत्ता जनरल कनिंघम, वेनेट, होय, फागल, दयाराम साहनी, मार्शल आदिकी देखरेख में कई बार खुदाई करायी गयी। इस खुदाईके फलस्वरूप जो महत्त्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध हुई है, वह लखनऊ और कलकत्ताके म्युजियमोंमें सुरक्षित है। इस सामग्रीमें स्तूपों, मन्दिरों और विहारोंके अवशेष, मूर्तियाँ, ताम्रपत्र, अभिलिखित मुहरें आदि हैं। यह सामग्री ई. पूर्व चौथी शताब्दीसे लेकर बारहवीं शताब्दीके अन्त तककी है। एक ताम्रपत्रके अनुसार, जो कन्नौजके राजा गोविन्दचन्द्रका है, ज्ञात होता है कि सहेट प्राचीन जेतवन (बौद्ध विहार ) का स्थान है और महेट प्राचीन श्रावस्ती है। महेटके पश्चिमी भागमें जैन अवशेष प्रचुर मात्रामें मिले हैं। यह भाग इमलिया दरवाजेके निकट है। यहींपर भगवान् सम्भवनाथका जीर्ण-शीर्ण मन्दिर है जो अब सोभनाथ मन्दिर कहलाता है। सोभनाथ सम्भवनाथका ही विकृत रूप है। इस मन्दिरकी रचना-शैली इरानी छाप है। इसके नीचे प्राचीन जैनमन्दिरके अवशेष हैं। मन्दिरके ऊपर गुम्बद साबुत है। किन्तु दो तरफकी दीवारें गिर चुकी हैं। वेदीके स्थानपर एक पाँचफुटी महराबदार आलमारी बनी हुई है । गर्भगृह १०x१० फुट है। उत्तर, पूर्व
१. आर्क. सर्वे रिपोर्ट ऑफ इण्डिया, भाग २, पृ० ३१६-३२३ । २. जर्नल रायल एशियाटिक सोसाइटी, सन् १९००, पृ०१। ३. अब्दुर्रहमान चिश्तीकृत 'मिरातेमसऊदी'-सुहलदेवने उन्हें उनके पड़ाव बहराइचमें आ घेरा। यहीं
मसऊद रज्जवुल मुरज्जक २८वीं तारीख को ४२४ हिजरी में ( सन् १०३४ ई. ) अपनी सारी सेना सहित मारा गया।