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________________ उत्तरप्रदेश के दिगम्बर जैन तीर्थ अपनी कन्या नहीं देना चाहते थे, किन्तु उस प्रबल प्रतापी नरेशको असन्तुष्ट भी नहीं कर सकते थे । अतः उन्होंने एक दासी-पुत्रीके साथ उसका विवाह कर दिया। इसी दासी-पुत्रीसे विदूरथ का जन्म हुआ था। एक बार विदूरथ युवराज अवस्थामें अपनी ननसाल कपिलवस्तु गया। वहाँ उसे शाक्योंके मायाचारका पता चल गया। उसने शाक्यसंघको नष्ट करनेकी प्रतिज्ञा की। घरपर आकर उसने अपने पितासे यह बात कही। इस प्रसंगपर दोनोंमें मतभेद हो गया। नौबत यहाँ तक आ पहुंची कि विदूरथने पिताको राज्यच्युत कर दिया। प्रसेनजित महारानी मल्लिकाको लेकर राजनीतिक शरण लेने राजगृह पहुँचे। किन्तु नगरके बाहर ही दोनों की मृत्यु हो गयी। विदूरथ अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार शाक्यसंघपर आक्रमण करने तीन बार गया। किन्तु बुद्धने तीनों बार उसे रोक दिया। चौथी बार बुद्धका विहार अन्यत्र हो गया था, उस समय विदूरथ ने शाक्यसंघ का विनाश कर दिया। जब उसकी सेना लौटकर एक नदीके किनारे पड़ाव डाले हुए थी, तभी जोरों की ओलावृष्टि हुई, नदीमें बाढ़ आ गयी और सब बह गये। भगवान् महावीरने जब दीक्षा ली, उससे प्रायः आठ माह पहले कुणाला ( कोशल ) देशमें भयंकर बाढ़ आयी। उसमें श्रावस्तीको बहुत क्षति पहुँची। बौद्ध अनुश्रुति है कि अनाथ पिण्डद सेठ सुदत्त की अठारह करोड़ मुद्रा अचिरावतीके किनारे गड़ी हुई थी। वे भी इस बाढ़में बह गयीं। श्वेताम्बर आगमोंके अनुसार यह बाढ़ कुरुण और उत्कुरुण नामक दो मुनियोंके शापका परिणाम थी। किन्तु कुछ समय बाद यह नगरी पुनः धनधान्यसे परिपूर्ण हो गयी। जैनशास्त्रोंके अनुसार इस नगरमें ऐसे सेठ भी थे, जिनके भवनोंपर स्वर्णमण्डित शिखर थे और उनपर छप्पन ध्वजाएं फहराती थीं। जो इस बातकी प्रतीक थीं कि उस सेठके पास इतने करोड़ स्वर्णमुद्राएं हैं। वास्तवमें अपनी भौगोलिक स्थितिके कारण श्रावस्ती अत्यन्त समृद्ध नगरी थी। इसका व्यापारिक सम्बन्ध सुदूर देशोंसे था। यहाँसे एक बड़ी सड़क दक्षिणके प्रसिद्ध नगर प्रतिष्ठान ( पैठण, जि. औरंगाबाद ) तक जाती थी। इसपर साकेत, कोशाम्बी, विदिशा, गोनर्द, उज्जयिनी, माहिष्मती आदि नगर थे। एक दूसरी सड़क यहाँसे राजगृही तक जाती थी। इस मार्गपर सेतव्य, कपिलवस्तु, कुशीनारा, पावा, हस्तिग्राम, मण्डग्राम, वैशाली, पाटलिपुत्र और नालन्दा पड़ते थे। तीसरा मार्ग गंगाके किनारे-किनारे जाता था। अचिरावती नदीसे गंगा और यमुनामें नौकाओं द्वारा माल एक स्थानसे दूसरे स्थान तक पहुंचाया जाता था। ऐसे उल्लेख भी मिलते हैं कि विदेहसे गान्धार, मगधसे सौवीर, मरुकच्छसे समुद्रके रास्ते दक्षिण-पूर्वके देशोंसे व्यापार होता था। स्वातन्त्र्य सेनानी सुहृद्ध्वज -- -- _ श्रावस्तीकी यह समृद्धि और स्वतन्त्रता १२-१३वीं शताब्दी तक ही सुरक्षित रह सकी और उसकी सुरक्षाका अन्तिम सफल प्रयत्न श्रावस्ती-नरेश सुहृद्ध्वज या सुहलदेवने किया। १. Early history of India, by Verient Smith-The Hindu History of India, by A. K. Mazumdar. २. Life in Ancient India, p. 256.
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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