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उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
१६३ त्रिलोकपुर मार्ग
श्री नेमिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र त्रिलोकपुर तहसील फतहपुर जिला बाराबंकीमें स्थित है। अयोध्यासे बाराबंकी सड़क मार्ग द्वारा १६७ कि. मी. है। बाराबंकीसे बिन्दौरा नहर १९ कि.. मी. पक्का मार्ग है। सड़कसे बायीं ओरको कच्चे रास्तेमें उतरकर लगभग ६ कि. मी. पैदल है । उत्तरपूर्व रेलवेकी छोटी लाइनके बिन्दौरा स्टेशनसे ५ कि. मी. पड़ता है । मार्ग कच्चा है। यहाँ जैनोंके लगभग २० घर हैं। जैन मन्दिर
यहाँ दो दिगम्बर जैनमन्दिर हैं। एक भगवान् नेमिनाथका मन्दिर जो अतिशय क्षेत्र कहलाता है तथा दूसरा पार्श्वनाथ मन्दिर ।
नेमिनाथ मन्दिर में 'मूलनायक भगवान् नेमिनाथकी श्मामवर्ण पद्मासन प्रतिमा है। इसकी अवगाहना २२ इंच है और यह कसौटीके पाषाणकी है। पादपीठपर अभिलेख है। अभिलेखके बीचमें शंख चिह्न अंकित है। अभिलेखके अनुसार इस मूर्तिका प्रतिष्ठा-काल वि. संवत् ११९७ फाल्गुन वदी ६ है। ____ मूर्तिमें अद्भुत आकर्षण है । इसके अतिशयों और चमत्कारोंको लेकर जनतामें नाना किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। कहते हैं, कभी-कभी रातमें झांझ और खड़तालकी सम्मिलित ध्वनि होती है। बाजोंके इस प्रकारके शब्द अनेक लोगोंने सुने हैं। इसी प्रकार अनन्त चतुर्दशी, दीपावली और कार्तिक शु. ६ को, जिस दिन रथयात्रा होती है, मन्दिरमें चारों ओर सुगन्ध मिलती है। कभीकभी वेदीपर हरी लोंग और रुपये मिलते थे। वे रुपये अबतक स्थानीय एक जैन बन्धुके पास सुरक्षित हैं।
पहले यह मन्दिर कच्चा था। जब इसका जीर्णोद्धार करके पक्का बनाया जा रहा था, उस समय यहाँ बहुत चमत्कार हुए।
अनेक लोग यहाँ मनौती मनाने आते हैं।
इस प्रतिमाकी प्राप्तिका भी एक इतिहास है । यह स्थानीय तालाबमें पड़ी हुई थी। एक अजैन बन्धुको यह मिल गयी। वह बड़ा प्रसन्न हुआ। जब उसे यह ज्ञात हुआ कि यह जैन प्रतिमा है, तब उसने उसे जैनोंको दे दी और मन्दिर बनानेका आग्रह किया। जैन बन्धओंने मिलकर यह मन्दिर बनवाया और वह मूर्ति वेदीमें विराजमान कर दी। तभीसे वह इसी मन्दिरमें विराजमान है। इस प्रतिमाकी कुछ अपनी विशेषताएं हैं, जिनमें एक है प्रतिमाका भाव परिवर्तन । प्रातः भगवान्के मुखपर बालकके समान भोलापन टपकता है। मध्याह्नमें यौवनके अनुरूप तेज झरता है । सन्ध्याके बाद मुखपर प्रौढ़ और बुजुर्गकी तरह गम्भीरता प्रतीत होती है।
- मन्दिरके ऊपर विशाल शिखर है। गर्भगृहके अतिरिक्त एक सभामण्डप बना हुआ है । मन्दिरसे बाहर एक ओर एक दालान बना है। एक पक्का कुआँ है । मुख्य द्वारकी दीवाल कच्ची बनी हुई है।
पार्श्वनाथ मन्दिर गाँवके एक कोनेपर बना हुआ है। इस मन्दिरमें भी केवल १ वेदी है। मूलनायक पार्श्वनाथकी प्रतिमा श्वेत वर्ण, पद्मासन २० इंच ऊँची है। यह वि. संवत् १५४८ में प्रतिष्ठित हुई थी।