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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
ज्यादा काटेगा, उतना ज्यादा सोना मिलेगा।' . उस दिन कुम्हार अपने लड़केके साथ गया। जब नागकुमार साँप बन गया तो कुम्हारने फावड़ेसे उसके दो टुकड़े कर दिये । नागकुमारको बड़ा क्रोध आया। उसने कुम्हार-पुत्रको डाँटते हुए कहा-'तुमने रहस्य खोलकर मेरे साथ विश्वासघात किया है। अब उसका परिणाम भी भोगो।' यों कहकर उसने पूत्र और पिता दोनोंको काट लिया। वे दोनों तत्काल मर गये ।
तबसे लेकर चाक द्वारा आजीविका करनेवाला कोई कुम्हार इस गाँवमें नहीं रहता। इस गाँवके लोग बरतन-भाण्ड दूसरे गाँवसे लाते हैं। अब भी वहाँ नागमति से वेष्टित भगवान् धर्मनाथकी पूजा की जाती है। और जब वर्षा नहीं होती, तब अजैन ग्रामीण लोग धर्मनाथको धर्मराज मानकर दूधसे उनका अभिषेक करते हैं। उनकी मान्यता है कि ऐसा करनेसे तत्काल वर्षा होने लगती है। वर्तमान मन्दिर
यहाँ बस्तीमें दो दिगम्बर जैनमन्दिर हैं। एक मन्दिरमें मूर्तियाँ हैं। कहा जाता है कि यहाँ भगवान् धर्मनाथका जन्मकल्याणक हुआ था। मूलनायक भगवान् धर्मनाथ की श्वेत पाषाणकी ३ फुट उत्तुंग पद्मासन प्रतिमा है। नीचे आसनपर वज्रका लांछन अंकित है। मूर्ति-लेख भी है, जिसके अनुसार इसकी प्रतिष्ठा वि. संवत् २००७ में हुई थी।
बादामी वर्णकी १ फुट अवगाहनावाली भगवान् महावीरकी पद्मासन प्रतिमा वी. नि. संवत् २४६३ की है। एक धातु प्रतिमा धर्मनाथ स्वामीकी है। अवगाहना १ फुट है। एक धातु प्रतिमा भगवान पार्श्वनाथकी है। अवगाहना लगभग ८ इंच है। यह अभिलिखित है। अभिलेखके अनुसार इसकी प्रतिष्ठा वि. संवत् ११९० में की गयी थी। इस प्रकार यह प्रतिमा लगभग साढ़े आठ सौ वर्ष प्राचीन है।
एक अठपहलू पीतलकी प्लेटमें भगवान्के चरण अंकित हैं ।
मन्दिरके सामने धर्मशाला है, जिसमें ५ कमरे बने हुए हैं। मन्दिरका एक मकान है, जिसमें मन्दिरका माली रहता है। धर्मशालाके पीछे लगभग १००० वर्गगज जमीन भी मन्दिरकी है।
इस मन्दिरसे कुछ चलकर दुसरा मन्दिर है। यहाँ भगवान धर्मनाथका गर्भकल्याणक होना बताया जाता है। इसमें मन्दिरकी छतपर शिखर बना हुआ है, जिसमें एक ओर शिखरकी दीवालमें आला-सा बना हुआ है। उसमें संगमरमर निर्मित भगवानके चरण विराजमान हैं। इन्हें वि. सं. २००९ में विराजमान किया गया था।
चरणोंके ऊपर दीवालमें एक शिलालेख लगा हआ है, जिसमें एक पंक्तिका यह लेख है-'श्री धर्मतीर्थके कर्ता श्री धर्मनाथ स्वामीका गर्भकल्याणक है रत्नपुर नगरी श्री।' ___इस मन्दिरकी रचना-शैलीसे, वर्तमानमें इसे टोंक कहनेके बावजूद, ऐसा लगता है कि यह पहले मन्दिर रहा होगा। मन्दिरके गर्भगृहका द्वार चिन दिया गया है और ऊपर शिखरमें ही स्थान निकालकर चरण विराजमान कर दिये गये हैं।
नगरके बाहर एक ही कम्पाउण्डमें श्वेताम्बर समाजके दो मन्दिर तथा चारों कोनोंपर चार टोंकें हैं।