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उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
१६१ यह २ कि. मी. है। स्टेशन से लगभग डेढ़ कि. मी. तक सड़क पक्की है, शेष कच्चा रास्ता है। रौनाही छोटा-सा गाँव है। गाँव के बीच में सरय के निकट दो मन्दिर दिगम्बर समाज के हैं। जैन धर्मशाला भी है। एक श्वेताम्बर मन्दिर गाँव के बाहर बना हुआ है। फैजाबाद से सिटी बस तथा अन्य बसें रौनाही तक बराबर मिलती हैं। रौनाही के चौराहे पर उतरकर पैदल या रिक्शे द्वारा मन्दिर तक जा सकते हैं। तीर्थक्षेत्र
यह स्थान पन्द्रहवें तीर्थंकर भगवान् धर्मनाथकी जन्मभूमि है । 'तिलोयपण्णत्ति' में आचार्य यतिवृषभ इस सम्बन्धमें इस प्रकार उल्लेख करते हैं
रयणपुरे धम्मजिणो भाणु गरिदेण सुव्वदाए य।।
माघसिद वेरसीए जादो पुस्सम्मि णक्खत्ते ।।४५४०।। ___अर्थात् रतनपुरमें धर्मनाथ जिनेश्वर महाराज भानु और महारानी सुव्रतासे माघ शुक्ला १३ को पुष्य नक्षत्र में उत्पन्न हुए।
इसी प्रकार रविषेण कृत पद्मपुराण ९८।१४४, जयसिंहनन्दी कृत वरांगचरित २७४८४, गुणभद्र कृत उत्तरपुराण ६१।१३ में भी भगवान् धर्मनाथ का जन्म रतनपुर में बताया है।
इस नगरमें भगवान्के चार कल्याणक हुए थे-गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान । केवलज्ञान होनेके पश्चात् भगवान्का प्रथम समवसरण यहीं लगा था और प्रथम दिव्यध्वनि यहीं खिरी थी। उन्होंने यहींपर धर्म-चक्र प्रवर्तन किया था।
अनुश्रुति
____ आचार्य जिनप्रभ सूरिने 'विविधतीर्थकल्प' नामक ग्रन्थमें रत्नपुरको रत्नवाहपुर कहा है और इसी नामका कल्प भी दिया है। इसमें उन्होंने एक रोचक अनुश्रुतिका विवरण दिया है जो इस नगरसे सम्बन्धित है । वह अनुश्रुति इस प्रकार है
इस नगरमें एक कुम्भकार रहता था। उसका एक पुत्र था, जिसे क्रीड़ाका शौक था। वह कुछ काम नहीं करता था, केवल जुआ आदि खेलोंमें लगा रहता था। वहाँ एक नागकुमार देव खेलका शौकीन होनेके कारण मनुष्यका रूप धारण करके आ जाता और कुम्हारके पुत्रके साथ खेला करता । कुम्भकार अपने पुत्रसे मिट्टी खोदने तथा अन्य कामोंको करनेके लिए उसपर अधिक सख्ती करने लगता तो उसे बाध्य होकर काम करना पड़ता था। इसलिए खेलमें नागा पड़ने लगा। एक दिन नागकुमारने उससे पूछा-तुम पहले तो नियमित रूपसे खेलने आते थे, अब नागा क्यों होता है ? कुम्हार-पुत्र बोला-'क्या बताऊँ, पेटके लिए काम करना पड़ता है। न करूँ तो पिता डाँटते हैं।' नागकुमारने सोचकर उत्तर दिया, "तुम चिन्ता न करो। मैं साँपका रूप बनाकर लेट जाया करूँगा। तुम फावड़े से मेरी पूँछ काट दिया करना। वह सोने की हो जायेगी। --
कुम्हार-पुत्र प्रतिदिन ऐसा ही करने लगा। उसे हर रोज सोना प्राप्त होने लगा। सोनेको लाकर वह अपने पिताको दे देता था। पिता उससे पूछता–'तुम रोज-रोज सोना कहाँसे लाया करते हो।' किन्तु वह उत्तर न देकर टाल जाता था। एक दिन उसके पिताने उसे उत्तर देनेके लिए बाध्य किया तो उसने सत्य बात बता दी। कुम्हारके मनमें लोभ पैदा हो गया। वह बोला-'आज अपने साथ मुझे ले चलना। तू तो मूर्ख है जो थोड़ी-सी पूंछ काटता है। जितना
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