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________________ उत्तरप्रदेश के दिगम्बर जैन तीर्थ १५९ अजितनाथको टोंक—यह टोंक बेगमपुरा मुहल्ले में है । चरण मार्वलके हैं । इस गुमटी में काफी खुली जगह है । ऊपर शिखर है । जीर्णोद्धार सम्बन्धी लेख लिखा हुआ है । आदिनाथकी टोंक - बक्सरिया टोला, पुराना थाना मुहल्ला में स्थित यह टोंक १६ सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर की मंजिलपर बनी हुई है। कहा जाता है कि भगवान् आदिनाथकी पवित्र जन्मभूमि यहीं थी। इस टोंकका भी बड़ा अद्भुत इतिहास बताया जाता है । कहते हैं, भगवान् आदिनाथके जन्मस्थानपर बने हुए जैन मन्दिरको तुड़वाकर नवाबी शासन में मसजिद बनवायी जा रही थी । शाही खजांची लाला केशरीमलजी अग्रवाल दिल्लीवालोंने यहाँके नवाब फैजउद्दीनसे फरियाद की— 'हुजूर ! यह स्थान तो भगवान् आदिनाथका जन्मस्थान है । अतः यहाँ तो उनका मन्दिर होना चाहिए।' इसपर नवाबने उनसे प्रमाण माँगा । तब उन्होंने जवाब दिया- 'अमुक स्थानपर खुदवाकर देख लिया जाये । वहाँ घीका एक चौमुखा दीपक, स्वस्तिक और नारियल मिलेंगे ।' नवाब हुक्म से वह स्थान खोदा गया तो ये चीजें उसी प्रकार मिलीं । नवाबने प्रभावित होकर मसजिदका काम रुकवा दिया और जैनोंको अपना मन्दिर पुनः बनानेकी आज्ञा दे दी। जैनको इससे बड़ा हर्ष हुआ । उन्होंने वहाँ मूर्ति के स्थानपर केवल चरण ही विराजमान किये। सम्भव है, उन्होंने सुरक्षा की दृष्टिसे ही ऐसा किया था । इस टोंक और उससे सटे हुए भग्नावशेषोंके देखनेसे ऐसा प्रतीत होता है कि उस कालमें यह प्राचीन जैन मन्दिर बहुत विशाल था । जितने क्षेत्रमें मसजिदके खण्डहर बिखरे पड़े हैं, वह समस्त क्षेत्र जैन मन्दिरका था । किन्तु नवाबने मसजिदका कार्य रोककर जैनोंको अपना मन्दिर पुनः निर्माण करनेकी आज्ञा दे दी तो जैनोंने मसजिदके निर्मित भागको छोड़कर मन्दिरके थोड़े-से स्थानपर टोंक बना ली और उसमें प्रतिमाकी बजाय भगवान् के चरण विराजमान कर लिये । यह टोंक लाला केशरीमलजी ने बनवायी थी । हनुमानगढ़ी - अयोध्याका एक प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर है। इसके सम्बन्धमें यह किंवदन्ती प्रचलित है कि पहले यह एक विशाल जैन मन्दिर था । इसमें एक बहुत बड़ा घण्टा लगा हुआ था । कहा जाता है, उसकी आवाज गोंडा तक सुनाई पड़ती थी । अब तो इस मन्दिरमें हनुमानको माता अंजनीकी मूर्ति बनी हुई है । रायगंज मुहल्ला में भी एक विशाल मन्दिर कुछ वर्ष पहले निर्मित हुआ है । बीचमें मन्दिर हुआ है। उसके सामने काफी बड़े भू-भागमें पुष्प वाटिका बनी हुई है। बाहर बहुत ऊँचा फाटक है। उसके दोनों ओर धर्मशाला है । मन्दिर और उद्यानको घेरे हुए ऊँचा प्राकार है । प्राकारके भीतर एक पक्का कुआँ बना है । फाटकके बाहर भी एक पक्का कुआँ है । फाटक आ एक कम्पाउण्ड है । मन्दिर में २८ फुट अवगाहनावाली भगवान् ऋषभदेवकी कायोत्सर्गासन प्रतिमा विराजमान है । प्रतिमा श्वेत पाषाणकी है किन्तु तीन स्थानोंपर काली धारी पड़ी हुई है। प्रतिमा क चौकीपर विराजमान है । इस प्रतिमाके दायें-बायें दो-दो ऊँची वेदियाँ हैं, जिनमें एक वेदोपर भगवान् अजितनाथ और अभिनन्दननाथ तथा दूसरी वेदीपर सुमतिनाथ और अनन्तनाथकी पाँचपाँच फुट ऊँची मूर्तियाँ खड्गासन मुद्रामें विराजमान हैं। एक वेदीपर भगवान् चन्द्रप्रभकी प्रतिमा विराजमान है । इन मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा आचार्यरत्न श्री देशभूषणजी महाराजकी प्रेरणासे सन् १९६५ में भव्य समारोह के साथ हुई थी ।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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