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________________ १५८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ मान है। अवगाहना २ फुट ९ इंच है। यह प्रतिमा वि० संवत् २००९ में प्रतिष्ठित हुई थी। सके बायीं ओर भगवान् अजितनाथ और दायीं ओर भगवान् सुमतिनाथकी प्रतिमाएं विराजमान हैं । इनके अतिरिक्त इस वेदीमें १८ धातु प्रतिमाएं और १ पाषाण प्रतिमा है। ___ इन मूर्तियोंमें सबसे प्राचीन मूर्ति भगवान् अजितनाथकी है। इसके पादपीठपर वि० सं० १५४८ का अभिलेख है। इसकी अवगाहना १८ इंच है। .. इस वेदीके निकटस्थ दूसरी वेदीमें तीन प्रतिमाएं हैं। तीनोंपर कोई लांछन नहीं है। परम्परागत अनुश्रुतिके अनुसार मुख्य प्रतिमा भगवान् अभिनन्दन नाथकी कही जाती है। इसके मूर्तिलेखके अनुसार इसकी प्रतिष्ठा संवत् १२२४ आषाढ़ सुदी ८ को हुई थी। एक कृष्ण वर्णकी वि० सं० १६२६ की साढ़े नौ इंच ऊँची प्रतिमा है। इस वेदीसे आगे सहनमें एक टोंक बनी हुई है। इसमें भगवान् सुमतिनाथके चरण बने हुए हैं। चरणोंका वर्ण सिलैटी है। इन चरणोंपर लेख अभिलिखित है, जिसके अनुसार इन चरणोंका जीर्णोद्धार वि० संवत् १७८१ कार्तिक सुदी १३ को ला० केशरीमल अग्रवाल दिल्ली निवासीने कराया जो नवाब आसफूटौलाके खजांची थे। वि० संवत् १९५६ में दिगम्बर जैन पंचायत, लखनऊकी सम्मतिसे पुनः इसका जोर्णोद्धार किया गया। ____ तीसरी वेदी भगवान् आदिनाथकी है । श्वेत संगमरमरकी ९ फुट उत्तुंग भगवान् आदिनाथकी मनोज्ञ खड्गासन प्रतिमा विराजमान है। इसके दोनों ओर मुनि भरत और मुनि बाहुबलीकी ५ फुट ६ इंच अवगाहनावाली कायोत्सर्ग मुद्रावाली प्रतिमाएं आसीन हैं। इन तीनों प्रतिमाओंकी प्रतिष्ठा वि० सं० २००९ में हुई है। ____ अन्तिम वेदीमें मुख्य प्रतिमा भगवान् पार्श्वनाथ की है। यह १५ इंच अवगाहनावाली है। दूसरी प्रतिमा ९ इंच ऊँचो भगवान् चन्द्रप्रभकी है। चरण चौकीपर लांछन लेख है। दोनों ही वि० संवत् १५४८ की हैं। इस मन्दिरके ऊपर विशाल शिखर है । अनन्तनाथकी टोंक-कटरा महल्लासे इस टोंकके लिए पक्का मार्ग है। कुछ दूर तक कच्चा मार्ग है। यह सरयनदीके तटपर अवस्थित है। एक कमरे में चबूतरेपर भगवान् अनन्तनाथके चरण बने हए हैं। चरणोंका माप साढे सात इंच है। कमरेके ऊपर शिखर है। इस कमरेके तोन ओर बरामदे बने हुए हैं। एक कमरेमें पक्का कुँआ है। चारों ओर कम्पाउण्ड है। चरणोंका जीर्णोद्धार लाला केशरीमलजी अग्रवाल दिल्लीने कराया था। इस टोंकके बाहर टीले हैं और एक नाला है। पुरातत्त्व विभागकी ओरसे यहाँ खुदाई हुई थी। कनिंघमने उपलब्ध प्रमाणोंके आधार पर इसे जैन टीला . अभिनन्दननाथकी टोंक-यह टोंक कटरा स्कूलके पास है। चरण मार्वलके हैं। टोंकके ऊपर शिखर है। चारों ओर कम्पाउण्ड है। चरणोंपर वि. सं. १७८१ में लाला केशरीमलजी द्वारा और १९५६ में दिगम्बर जैन पंचायत लखनऊकी सम्मतिसे जीर्णोद्धार होनेकी बात उत्कीर्ण है। ऐसा ही लेख सभी टोंकों के चरणोंपर लिखा हुआ है। शीतलनाथको टोंक-पूर्वोक्त टोंकके पास ही यह टोंक बनी हुई है । इसमें साढ़े चार इंच लम्बे चरण विराजमान हैं, जो किन्हीं शीतलनाथ नामक मुनिके हैं। इनकी स्थापना वि. संवत् १७०४ में हुई थी। टोंकके चारों ओर चहारदीवारी है और ऊपर शिखर बना हुआ है । - - - - - -
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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