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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १५७ अनुरक्त था। एक रातको वह अपने निवासमें प्रतिमा योगमें ध्यानारूढ़ था। एक देव द्वेषवश उपसर्ग करके उसकी परीक्षा करने लगा। देव उसके स्त्री, पूत्र, धन-धान्य आदिको लेकर चल दिया, किन्तु श्रेष्ठी तनिक भी विचलित नहीं हुआ और अपने ध्यानमें मग्न रहा। अन्तमें देवको उसके समक्ष झुकना पड़ा । उसने क्षमा मांगी और उसे आकाशगामिनी विद्या देकर चला गया। एक अन्य कथानक इस प्रकार है-अयोध्याके राजा सुरतकी पटरानी महादेवी थी। एक दिन राजा महारानीके मुखमण्डल पर तिलक-विन्यास कर रहा था। इतनेमें दो परम तपस्वी मासोपवासी मनि आहारके लिए राजभवनमें पधारे। सेवकने महाराजको मुनियोंके आगमनकी सूचना दी। राजा महारानीको कहकर प्रसन्न मनसे आहार-दानके लिए गया । रानी विषय सुखमें अन्तराय समझकर जलभुन उठी। वह मुनियोंकी निन्दा करने लगी। पापके उदयसे उसके शरीरमें तत्काल कोढ़ निकल आया। राजा आहार दान देकर जब लौटा तो रानीके रूपकी यह दुर्दशा देख भोगोंसे ही विरक्त हो गया। उसने उसी समय मुनि-दीक्षा ले ली। ___ अयोध्या नगरीसे सम्बन्धित एक अन्य घटना इस प्रकार है-अयोध्यानरेश सीमंधरके पुत्रका नाम मृगध्वज था। वह बड़ा मांसलोलुपी था। नगरमें एक भैंसा फिरा करता था। वह बुलानेपर आ जाता और पैरोंमें लोटने लगता था। एक दिन मृगध्वजके कहनेसे मन्त्रीपुत्र और श्रेष्ठीपुत्रने उसकी टाँग काट ली और मांस खाया। राजाको जब भैंसेकी टाँग काटनेवालोंका पता लगा तो उन्होंने उन तीनोंको शूलीका दण्ड दिया। उन तोनों मित्रोंको ज्ञात हो गया। वे भयभीत होकर जंगलमें भाग गये और वहाँ मुनि-दोक्षा ले ली। मुनि बननेके बाद मृगध्वजकी भावना एकदम बदल गयी। उन्होंने घोर तपस्या की और घातिया कर्मों का नाश कर वे अर्हन्त परमात्मा बन गये, और अन्तमें वे मुक्त हुए। पुराण प्रसिद्ध परशुराम और कार्तवीर्यकी घटना भी यहींपर घटित हुई थी। कार्तवीर्य अयोध्याका राजा था । अयोध्याके पास जंगलमें जमदग्नि मुनिका आश्रम था। जमदग्निकी स्त्रीका नाम रेणुका था। एक दिन रेणुकाके भाई वरदत्त मुनि आये। उनका उपदेश सुनकर रेणुकाने सम्यग्दर्शन ग्रहण कर लिया। चलते समय वरदत्त मुनि अपनी बहनको कामधेनु और परशु नामक दो विद्याएं दे गये । एक दिन कार्तवीर्य हाथी पकड़नेके लिए आया। वह आश्रममें भी आया। रेणुकाने कामधेनुकी सहायतासे राजा और उसकी सेनाको स्वादिष्ठ भोजन कराया। राजा जाते समय जबर्दस्ती कामधेनुको छीन ले गया। इससे रेणुका बहुत दुखी हुई। जब उसके दोनों पुत्र श्वेतराम और महेन्द्रराम समिधा लेकर जंगलसे आये और माताको दुखी देखा तो उसने दुःखका कारण पूछा और कारण जानकर दोनों भाई परशु लेकर अयोध्या पहुँचे। कार्तवीर्यसे उनका युद्ध हुआ। श्वेतरामने परशुकी सहायतासे कार्तवीर्य और उसकी सेनाको नष्ट कर दिया और अयोध्याके राज्यपर अधिकार कर लिया। तबसे श्वेतरामका नाम परशुराम हो गया। उसने सात बार पृथ्वीको क्षत्रिय रहित किया । पश्चात् सुभूमने उसका संहार कर अयोध्या पर अधिकार कर लिय' और भरतक्षेत्रके छहों खण्डोंको जीतकर चक्रवर्ती बना। वर्तमान जैन मन्दिर ___ यह तीर्थराज है। यहाँ दो मन्दिर और पाँच टोंकें हैं। कटरा मुहल्लेमें प्राचीन दिगम्बर जैन मन्दिर है। मन्दिरके निकट एक जैनधर्मशाला है। इस मन्दिरकी मुख्य वेदीमें भगवान् आदिनाथकी श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा विराज
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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