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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ 'अधियछात्रा राज्ञो शौनकायन पुत्रस्य बंगपालस्य पुत्रस्य राज्ञो तेषणीपुत्रस्य भागवतस्य पुत्रेण वैहिदरी पुत्रेण आषाढ़ सेनेन कारितं ।'
। अर्थात् अधिछत्र के राजा शौनकायन के पुत्र राजा बंगपाल के पुत्र और त्रैवर्ण राजकन्या के पुत्र राजा आषाढ़सेन ने यह गुफा बनवायी।
-जैन शिलालेख संग्रह, भाग २, पृ. १३-१४ डॉ. फ्यूरर ने शुंगकाल के अक्षरों से मिलते-जुलते अक्षरों के कारण इस शिलालेख का काल द्वितीय या प्रथम ईसवी पूर्व निश्चित किया है। इस शिलालेख के तथ्य ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । एक तो इस शिलालेख से यह तथ्य प्रकट होता है कि राजा आषाढ़सेन ने इस गुफा का निर्माण कराया। दूसरा इसमें अहिच्छत्र. जो उत्तर पांचाल के प्रतापी राजाओं की राजधानी थी, की राजवंशावली दी गयी है।
एक दूसरा शिलालेख इस प्रकार है२-राज्ञो गोपालीपुत्रस बहसतिमित्रस मातुलेन गोपालिया
वैहिदरी पूत्रेन आसाढसेनेन लेनं कारितं उवाकस (?) दसमें सवछरे कश्शपीनां अरहं (ता) न...........
अर्थात् गोपाली के पुत्र राजा वहसतिमित्र (बृहस्पतिमित्र ) के मामा तथा गोपाली वैहिदरी अर्थात् वैहिदर राजकन्या के पुत्र आषाढ़सेन ने कश्यपगोत्रीय अरिहन्तो...दसवें वर्ष में एक गुफा का निर्माण कराया।
, -जैन शिलालेख संग्रह, भाग २ ___ यह शिखालेख भी द्वितीय या प्रथम ईसवी पूर्व का माना गया है। बृहस्पतिमित्र नामक एक नरेश के कुछ सिक्के कौशाम्बी, अहिच्छत्र, मथुरा आदि स्थानों पर मिले हैं।
इस पहाड़ी के नीचे ही यमुना नदी बहती है। यहाँ का प्राकृतिक दृश्य अत्यन्त आकर्षक है। ध्यान-सामायिक के लिए उपयुक्त स्थान है। किवदन्ती
मूलनायक प्रतिमाके सम्बन्धमें एक किंवदन्ती प्रचलित है कि लगभग डेढ़-पौने दो सौ वर्ष पहले कौशाम्बीके पुजारीको स्वप्न हुआ कि मन्दिरके द्वार पर जो कुँआ है, उसमें भगवान् पद्मप्रभु की प्रतिमा है। उसे निकालकर मन्दिरमें विराजमान करो। प्रातः होते ही पुजारीने स्वप्नकी चर्चा की। चर्चा प्रयाग तक पहुँची। बहुत-से लोग एकत्रित हुए । कुँएसे प्रतिमा निकाली गयी। कहा जाता है कि खोदते समय भामण्डलमें फावड़ा लग गया, जिससे दूधकी धार बह निकली। लोगों ने जब बहत विनम्र स्तुति की, तब वह शान्त हुई। वही प्रतिमा पभोसाके मन्दिरमें लाकर विराजमान कर दी गयी। दैवी अतिशय
मूलनायक प्रतिमा अत्यन्त मनोज्ञ और अतिशय सम्पन्न है। जैसा अद्भुत आश्चर्य इस प्रतिमामें है, वैसा सम्भवतः अन्यत्र कहीं देखने में नहीं आया। प्रतिमा यद्यपि बादामी पाषाण की है, किन्तु सूर्योदयके पश्चात् इसका रंग बदलने लगता है। ज्यों-ज्यों सूर्य आगे बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों प्रतिमाका रंग लाल होता जाता है। लगभग बारह बजे प्रतिमा लोहित वर्णकी हो जाती