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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १४९ दो गन्धर्व पुष्पमाला लिये हुए हैं। भगवान् की जटाएँ कन्धे तक पड़ी हुई हैं। मूर्ति खण्डित है। किन्तु गुप्त काल की प्रतीत होती है। एक सर्वतोभद्रिका प्रतिमा है, वह भी खण्डित है। धर्मशाला के निकट पहाड़ी है । पहाड़ी छोटी-सी है। पहाड़ी पर जाने के लिए सीढ़ियों की कुल संख्या १६८ है । ऊपर जाकर समतल चबूतरा मिलता है। वहाँ एक कमरा है जो मन्दिर का काम देता है। पहले यहाँ मन्दिर था। किन्तु भाद्रपद वदी ९ वीर सं. २४५७ को यकायक पर्वत टूट कर मन्दिर के ऊपर गिर पड़ा, जिससे मन्दिर तो समाप्त हो गया। किन्तु प्रतिमाएँ बाल-बाल बच गयीं । प्रतिमाएँ निकालकर वर्तमान कमरे में विराजमान कर दी गयीं। कहते हैं पहले पहाड़ पर तीन मन्दिर, मानस्तम्भ और भद्रारक ललितकीर्ति की गद्दी थी। उल्कापात होने से ये सब नष्ट हो गये। प्रतिमाएँ भी नष्ट हो गयीं। उनके नष्ट होने पर इलाहाबाद के लाला छज्जूमल ने संवत् १८८१ में यह मन्दिर बनवाया था। इस प्रकार का शिलालेख यहाँ मिलता है। इस कमरे में एक गज ऊँचे चबूतरे पर सब प्रतिमाएँ विराजमान हैं। इनमें मूलनायक भगवान् पद्मप्रभु की प्रतिमा हलके बादामी वर्ण की पद्मासन मुद्रा में है। अवगाहना ढाई फुट है। प्रतिमा चतुर्थकाल की है, ऐसी मान्यता है। प्रतिमा पर गूढ लास्य और वीतराग शान्ति का सामंजस्य अत्यन्त प्रभावक है। किन्त पाषाण और कलाका परीक्षण करने पर यह ईसा पूर्व प्रथम द्वितीय शताब्दी की प्रतीत होती है। इसके बायीं ओर भगवान् नेमिनाथ की भूरे वर्ण की पद्मासन २ फुट ७ इंच अवगाहना वाली प्रतिमा है। पादपीठ पर शंख का चिह्न अंकित है। नीचे बायीं ओर गोमेद यक्ष और दायीं ओर अम्बिका देवी यक्षी है । यक्ष सुखासन में आसीन है। उसके तीन मुख और चार भुजाएँ हैं जिनमें मुद्गर, दण्ड, फल और वज्र हैं। यक्षी की गोद में प्रियंकर पुत्र है। इनसे ऊपर दोनों ओर चमरधारी हैं । उनसे ऊपर दो पद्मासन अरहन्त प्रतिमाएँ बनी हुई हैं। शिरोभाग में दो गज दिखाई पड़ते हैं । ऊपर दो खड्गासन अरहन्त प्रतिमाएं बनी हुई हैं । एक देवी पुष्पमाल लिये और एक देव तीन छत्र लिये हुए है। दूसरी ओर भी ऐसी ही रचना है। यह मूर्ति संवत् १५०८ की है। जैसा कि इसके लेख से प्रकट है। इससे आगे बायीं ओर वि. संवत् १९५२ की कृष्ण वर्ण की एक मूर्ति स्थित है। एक पद्मासन मूर्ति है जो १५ इंच की है। नीचे के भाग में चमरवाहक हैं और ऊपरी भाग में पुष्पमाल लिये हुए देवियाँ हैं। सिर पर विछत्र बने हैं । एक भूरे वर्ण की पद्मासन प्रतिमा है। शिरोभाग में बायीं ओर हाथ में पुष्पमाल लिये हुए देव दिखाई पड़ता है। दूसरी ओर का भाग खण्डित है। सबसे अन्त में मतियों के चार भग्न खण्ड रखे हए हैं। दायीं ओर एक शिलाफलक पर 'पंचबालयति की प्रतिमा वि. संवत् १४०८ की है। इसकी अवगाहना २ फुट ५ इंच है। बीच में मूलनायक और उसके दोनों ओर दो तीर्थंकर प्रतिमाएँ हैं। सिर के पीछे भामण्डल और ऊपर त्रिछत्र हैं। उससे ऊपर पुष्पमाल लिये दो गगनचारिणी देवियाँ दीख पड़ती हैं। श्वेत पाषाण की वि. संवत् १८८१ की एक प्रतिमा और एक चरण-युगल विराजमान हैं। ___ एक पद्मासन प्रतिमा ११ इंच अवगाहना की है। दोनों ओर चमरवाहक खड़े हैं। ऊपर गगनचारिणी देवियाँ पुष्पवर्षा करती हुई दिखाई पड़ती हैं। मन्दिर के ऊपर पहाड़ की एक विशाल शिला में उकेरी हुई चार प्रतिमाएं दिखाई पड़ती हैं जो ध्यानमग्न मुनियों की हैं । ऊपर दो गुफाएं भी है, जिनमें निम्नलिखित शिलालेख हैं
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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