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उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
१४७ बने हुए हैं। यक्ष हाथ जोड़े हुए है तथा यक्षिणी हाथ में माला लिये दिखलाई पड़ती है। मूर्ति के पादपीठ पर कमल लांछन बना हुआ है।
यह मूर्ति भूगर्भ से निकली थी। ___ इस मूर्ति के आगे चरण विराजमान है । चरणोंकी लम्बाई ८ इंच है। दोनों चरणों के बीच में कमल बना हुआ है। इससे ये पद्मप्रभु भगवान्के चरण-चिह्न माने जाते हैं। चरणों पर लेख उत्कीर्ण है। किन्तु वह धुंधला पड़ गया है। संवत् ५६७ अवश्य पढ़ने में आता है।
बायीं ओर कमरेमें सर्वतोभद्रिका प्रतिमा विराजमान है। श्वेत पाषाणकी खड्गासन प्रतिमाकी अवगाहना २ फुट ८ इंच है। चारों ओर हाथीका चिह्न बना हुआ है। मूर्तियोंके ऊपर 'श्री अजितनाथाय नमः' लिखा हुआ है। मूर्तियोंके आसन फलक पर लेख भी उत्कीर्ण है। यह मूर्ति आधुनिक है।
गर्भगृहके बाहर एक आलेमें क्षेत्रपालकी स्थापना की गयी है । मन्दिरका प्रबन्ध बा. सुबोध कुमारजी सुपुत्र बाबू निर्मलकुमार जी आराके परिवारकी ओरसे होता है।
धर्मशालाके बरामदेमें बच्चोंकी पाठशाला लगती है। वार्षिक मेला
यहाँ पर प्रतिवर्ष मिति फागुन कृष्णा ४ को भगवान् पद्मप्रभुका निर्वाणोत्सव बड़े समारोहके साथ मनाया जाता है । इस अवसरपर निर्वाण लाडू चढ़ाया जाता है। काफी भीड़ हो जाती है।
पभोसा स्थिति
___पभोसा क्षेत्र के लिए कौशाम्बो से मार्ग कच्चा है । इक्के जा सकते हैं । कौशाम्बी से यमुना नदी में नावों में जाने से केवल १० कि. मी. पडता है और यह सुविधाजनक भी है। कौशाम्बी से पाली होते हुए पैदल मार्ग से यह स्थान ८ कि. मी. है। पभोसा यमुना तट पर अवस्थित है। यह इलाहाबाद जिले के अन्तर्गत मंझनपुर तहसील में है। इसका पोस्ट-आफिस पश्चिम सरीरा और सब-पोस्ट-आफिस गुराजू है। तीर्थक्षेत्र
छठे तीर्थकर भगवान् पद्मप्रभु अपने राजमहलों के द्वार पर बँधे हुए हाथी को देखकर विचारमग्न हो गये। उन्हें अपने पूर्व भवों का स्मरण हो आया। उन्हें संसार की दशा को देखकर वैराग्य हो गया और कौशाम्बीके मनोहर उद्यान (पभोसा ) में जाकर कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी के दिन दीक्षा ले ली । देवों और इन्द्रों ने भगवान् का दीक्षाकल्याणक महोत्सव मनाया।
भगवान् दीक्षा लेकर तपस्या में लीन हो गये। लगभग छह माह के घोर तप के बाद उन्हें चैत्र शुक्ला पूर्णमासी को उसी मनोहर उद्यान में केवलज्ञान प्राप्त हुआ। देवों और इन्द्रों ने आकर
का महोत्सव मनाया। यहीं पर भगवान् का प्रथम समवसरण लगा और भगवान के चरणों में बैठकर और उनका उपदेश सुनकर असंख्य प्राणियोंको आत्म-कल्याण की प्रेरणा मिली।
जिस स्थान पर भगवान् पद्मप्रभु के दीक्षा और ज्ञानकल्याणक मनाये गये, वह स्थान पभोसा है। इसीलिए यह कल्याणक तीर्थ माना जाता है ।