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उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ उदयन भी भगवान् महावीरका समकालीन था। वह अपने समयमें सारे देशमें रूप और गुणोंमें सारे राजकुमारोंकी ईर्ष्या और कुमारियोंकी कामनाका एक मात्र आधार बन गया था। यह कहा जाता है कि उस समय की प्रमुख पाँच महानगरियोंमें उदयनके चित्र राजप्रासादोंसे लेकर नागरिकों और वारांगनाओंके सायं कक्षमें सब कहीं सम्मोहनके साधन बने हुए थे। वह वीणावादन में अत्यन्त निपुण था। जब वह अपनी प्रसिद्ध घोषवती वीणाके तारोंपर उंगलियाँ चलाता था तो सुनने वाले अपना होश गँवा बैठते थे। अपनी इसी वीणाकी बदौलत वह अवन्तिनरेश चण्डप्रद्योतकी पुत्री वासवदत्तासे प्रणय विवाह करने में सफल हुआ था। बादमें राजनीतिक कारणोंसे मगधकी राजकुमारी पद्मावती तथा अन्य दो राजकुमारियोंका भी विवाह उसके साथ हुआ था। किन्तु वासवदत्ताके प्रति उसका जो अनुराग था, उसको लेकर अनंग, हर्ष, कात्यायन, वररुचि, गुणाढ्य, श्री हर्षदेव, क्षेमेन्द्र देव आदि अनेक कवियोंने काव्य रचना की है। महाकवि भासने उदयन-वासवदत्ताके कथानकको लेकर तीन नाटकोंकी रचना की है।
उदयनने कौशाम्बीको कलाका केन्द्र बना दिया था। उस समयके जन-जीवनमें सौन्दर्य और सुरुचिकी भावनाका परिष्कार हुआ था। उसके समकालीन नरेशोंमें इतिहास प्रसिद्ध प्रसेनजित, चण्डप्रद्योत, श्रेणिक विम्बिसार, अजातशत्रु, हस्तिपाल, जितशत्रु, दधिवाहन आदि मुख्य थे जिन्होंने तत्कालीन भारतके इतिहासका निर्माण किया। - इस नगरीमें कई बार महात्मा बुद्ध भी पधारे थे किन्तु जैनधर्मकी अपेक्षा बौद्ध धर्मका प्रचार उस समय यहाँ कम ही हुआ था। भगवान् महावीरके प्रभावक व्यक्तित्वकी ओर ही यहाँ की जनता अधिक आकृष्ट हुई। उदयन भी महावीरका भक्त था। महात्मा बुद्ध उदयनके समय जब कौशाम्बी पधारे, तब उदयन उनके पास एक बार भी दर्शनार्थ नहीं आया। सम्भवतः इससे क्षुब्ध होकर बौद्ध ग्रन्थकारोंने उदयनके चरित्रको कुछ निम्न ढंगका चित्रित करनेका प्रयत्न किया है किन्तु जैन कथासाहित्यमें उदयनका चरित्र-चित्रण भद्र शब्दों में किया गया है।
उदयनकी मृत्यु स्वाभाविक ढंगसे नहीं हुई। वह अपना अधिकांश समय जैनधर्मकी क्रियाओं में धर्माराधन में व्यतीत किया करता था। एक बार उसने एक कर्मचारीको किसी अपराधपर पृथक् कर दिया । उस कर्मचारीने उदयनसे इसका बदला लेनेकी प्रतिज्ञा की । वह अवन्ति पहुंचा। वहाँ केवल प्रतिशोधके लिए ही वह जैन मुनि बन गया । कुछ समय बाद वह अपने गुरु के साथ कौशाम्बी आया। पर्युषण पर्वके दिनोंमें एक दिन उदयनने उपवास किया और वह रातमें धर्मागारमें ही सोया। वहींपर वह वंचक साधु और गुरु भी ठहरे हुए थे। रात्रिमें जब राजा गहरी नींदमें सो रहा था , उस समय वह धूर्त चुपचाप उठकर राजाके पास पहुंचा और एक चाकू ( अथवा कटार ) से राजाकी हत्या करके कटार वहीं फेक कर भाग गया। गुरु की नींद खुली। उन्होंने देखा - राजा निर्जीव पड़ा है , चारों ओर रक्त बह रहा है और शिष्य लापता है। वे सारी स्थिति समझ गये। उन्होंने सोचा कि एक जैन साध राजाका हत्यारा है, इस अपवादको सुनने देखने के लिए मैं जीवित नहीं रहना चाहता। उन्होंने उसी कटारसे आत्मघात कर लिया।
उदयनको कोई सन्तान नहीं थी। तब वासवदत्ताने अपना भतीजा गोद ले लिया। उसका राज्याभिषेक किया गया। कुछ वर्ष बाद उसने अवन्ती पर भी अधिकार कर लिया। इसके कुछ वर्षों बाद मगधसम्राट् नन्दिवर्धनने उससे वत्स राज्य छीन लिया।
१. भरतेश्वर बाहुबली वृत्ति, पृ० ३२५ ।