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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ के हेमकच्छ नरेश सूर्यवंशी दशरथके साथ, पाँचवीं पुत्री चेलिनी मगधनरेश शिशुनागवंशी बिंबसार श्रेणिकके साथ विवाही गयी।
इस प्रकार वत्सराज शतानीक सांसारिक सम्बन्धके कारण महावीर भगवानके मौसा थे और मुगावती उनकी मौसी थी। अतः उनका इस राजवंशसे रक्त सम्बन्ध था। किन्तु इससे . अधिक उनके पतितपावन व्यक्तित्वके कारण यह राजवंश उनका अनन्य भक्त था।
वत्स देशके राजाओंके सम्बन्धमें कहा जाता है कि वे शिक्षित और सुसंस्कृत थे। इनकी राजवंशावली इस प्रकार बतायी जाती है।
१. सुतीर्थ २. रच ३. चित्राक्ष ४. सुखीलाल-सहस्रानीक ५. परन्तप शतानीक और जयन्ती पत्री ६. उदयन और एक पुत्री ७. मेधाविन् अथवा मणिप्रभ ८. दण्डपाणि ९. क्षेमक शतानीककी बहन जयन्ती कट्टर जैन धर्मानुयायी थी और महावीर की भक्त थी।
शतानीक बड़ा वीर था। उसने एक बार चम्पानगरीपर आक्रमण करके उसे जीत लिया और उसे अपने राज्यमें मिला लिया। ललित कलाओंमें उसकी बड़ी रुचि थी। उसके यहाँ एक कुशल चित्रकार था। किसी कारणवश राजाने उसे निकाल दिया। इससे चित्रकारके मनमें प्रतिशोधकी भावना जागृत हुई। वह सीधा अवन्तीनरेश चण्डप्रद्योतके राजदरबार में पहुंचा और उसे मृगावती रानीका चित्र दिखाया। प्रद्योत चित्र देखते ही मृगावतीके ऊपर मोहित हो गया। उसने शतानीकके पास सन्देश भेजा कि या तो महारानी मृगावतोको मुझे दे दो या फिर युद्ध के लिये तैयार हो जाओ। वीर शतानीकने युद्ध पसन्द किया। अवन्तीनरेशने प्रबल वेगसे कौशाम्बीपर आक्रमण कर दिया। किन्तु शतानीककी इस युद्धके दौरान सम्भवतः विसूचिका रोगसे मृत्यु हो गयी। प्रद्योत उस समय वापिस लौट गया। ... मृगावतीने राज्यका शासन-सूत्र सम्भाल लिया। उदयनकी अवस्था उस समय ६-७ वर्षकी थी। रानी जानती थी कि प्रद्योतसे युद्ध अवश्यम्भावी है। अतः वह युद्धकी तैयारी करती रही। उसने एक मजबूत किला बनवाया। तभी प्रद्योतने मृगावतीके पास पुनः विवाहका प्रस्ताव भेजा। मृगावतीने चतुराईसे उदयनके राज्यारोहण तकका समय माँग लिया और वह किले, खाइयों और यद्धकी अन्य तैयारियोंमें डटी रही। १३-१४ वर्षकी अवस्थामें उदयनका राज्याभिषेक हुआ। प्रद्योतने पुनः कौशाम्बीपर आक्रमण कर दिया। भयानक युद्ध हुआ। अन्तमें समझौता हुआ। प्रद्योतके हाथोंसे उदयनका राज्याभिषेक हुआ। मृगावती भगवान् महावीरके पास दीक्षित हो गयी।
१. The Journal of the Orissa Bihar Research Society, Vol. I, pp. 114. २. भरतेश्वर-बाहुबली वृत्ति, ( तृतीय संस्करण ) पृष्ठ ३४१-३४३ । ..... ३. भरतेश्वर बाहुबली बृत्ति, पृ. ३२३-५ । ..