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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थं
देव, राजा और प्रजा सबका यहाँ आगमन हुआ था और यह नगरी तब विश्वके आकर्षणका केन्द्र बन गयी थी । तबसे यह नगरी लोकविश्रुत तीर्थंके रूपमें प्रसिद्ध हो गयी । प्रसिद्ध जैन शास्त्र 'तिलोयपण्णत्ति' में भगवान् पद्मप्रभुकी कल्याणक भूमिके रूपमें कौशाम्बीका उल्लेख इस प्रकार आया है
अस्सजुद किण्ह तेरसिदिणम्मि पउमप्पहो अचित्तासु । धरण सुसीमाएको विपुरवरे जादो || ४|५३१ ॥
अर्थात् तीर्थंकर पद्मप्रभु ने कोशाम्बी पुरीमें पिता धरण और माता सुसीमासे आसोज कृष्णा त्रयोदशी के दिन चित्रा नक्षत्रमें जन्म लिया ।
इसका समर्थन आ. रविषेणकृत 'पद्मपुराण' ९८२१४५, आ. जटासिंहनन्दीकृत ' वराङ्गचरित' २७८२, तथा आ. गुणभद्रकृत 'उत्तर पुराण' ५२।१८ में भी किया गया है ।
उस समय कौशाम्बी अत्यन्त समृद्ध महानगरी थी । आज तो वह खण्डहरोंके रूपमें पड़ी हुई है। कहते हैं, वर्तमान पाली, सिंहबल, कोसम, पभोसा ये सब गाँव पहले कौशाम्बीके अन्तर्गत थे । वास्तव में कौशाम्बीमें भगवान् के गर्भ और जन्म कल्याणक हुए थे और पभोसामें जो कौशाम्बी का उद्यान था, दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक हुए थे । अतः ये दोनों ही स्थान तीर्थक्षेत्र हैं । आजकल इस वनका नाम अरथवन है |
भगवान् के दीक्षा- कल्याणकका विवरण 'तिलोय पण्णत्ति' में इस प्रकार मिलता है
चैत्ता हि तेरस अवरण्हे कत्तियस्स णिक्कंतो ।
हो जिणो दिए खवणो मणोहरुज्जाणे ||४१६४९ ||
अर्थात् पद्मप्रभु जिनेन्द्र कार्तिक कृष्णा त्रयोदशीके अपराह्न समयमें चित्रा नक्षत्रमें मनोहर उद्यान में तृतीय भक्त के साथ दीक्षित हुए ।
आपने दीक्षा लेकर दो दिनका उपवास किया। दो दिनके पश्चात् आप वर्धमान नगरमें पारणा के निमित्त पधारे । राजा सोमदत्तने भगवान्को आहार- दान देकर असीम पुण्यका बन्ध किया। देवताओंने पंचाश्चर्य किये। भगवान् घोर तप करने लगे । दोक्षाके छह माह पश्चात् भगवान् विहार करते हुए पुन: दीक्षा वनमें पधारे। वहाँ आप ध्यान लगाकर बैठ गये और उसी मनोहर उद्यानमें उन्हें केवलज्ञान प्रकट हो गया । आचार्य यतिवृषभ 'तिलोयपण्णत्ति' ग्रन्थ में भगवान्के ज्ञानकल्याणकका विवरण प्रस्तुत करते हुए कहते हैं
वसाह सुक्कदसमी, चेत्तारिक्से मणोहरुज्जाणे । अवरहे उप्पण्णं परमप्पह जिणवदिस्स || ४|६८३|
अर्थात् पद्मप्रभ जिनेश्वरको वैशाख शुक्ला दशमीके अपराह्न कालमें चित्रा नक्षत्रके रहते मनोहर उद्यानमें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ।
उसी समय इन्द्रों और देवोंने आकर उनकी पूजा की। कुबेरने समवसरणकी रचना की और भगवान् ने इसी वनमें-पभोसागिरिमें धर्मचक्र प्रवर्तन किया ।
इसके बाद यहाँ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना उस समय घटित हुई, जब भगवान् महावीर केवलज्ञान प्राप्ति से पूर्व यहाँ पधारे। वे पारणाके लिए नगरमें पधारे । संयोगवश उस समय भारतके सर्वाधिक शक्तिशाली गणराज्य वैशालीके अधिपति चेटककी पुत्री कुमारी चन्दना (चन्दनबाला) दुर्भाग्यके चक्रमें पड़कर सेठ वृषभसेनकी सेठानी द्वारा बन्धनमें पड़ी हुई थी । झूठे सापत्न्य द्वेषसे सेठानीने उसे जंजीरोंमें बाँध रखा था । चन्दनाने ज्यों ही प्रभु महावीरको देखा त्यों ही उसके