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उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
१४१ मूर्ति-कलाके विकासको दृष्टिसे स्वर्णयुग कहा जाता है। इस कालकी मूर्तियाँ पर्याप्त विकसित अवस्थामें पायी जाती हैं। अंग-सौष्ठव, केश-विन्यास और शरीरके उभारोंमें रेखाओंका सूक्ष्म अंकन कुषाण कालीन प्रतिमाओंमें मिलता है।
उपर्युक्त विवरणसे हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि जहाँ जैनोंने स्तम्भ निर्मित कराया और जहाँ प्राचीन जैन मन्दिर था, वहीं प्राचीन वट-वृक्ष था, वहीं भगवान्के दोनों कल्याणक मनाये गये और त्रिवेणी संगमका निकटवर्ती प्रदेश, जहाँ किला पड़ा हुआ है, जैन तीर्थ था। राजनीतिक इतिवृत्त
प्रयाग प्राचीन कालमें काफी समय तक कोशल राज्यके अन्तर्गत रहा। पश्चात् यह पाटलिपुत्र साम्राज्यका एक अंग बन गया। सम्भवतः राजनीतिक इकाईके रूपमें प्रयागका स्वतन्त्र अस्तित्व कभी नहीं रहा, किन्तु शासनकी सुविधाके दृष्टिकोणसे इसका महत्त्व अवश्य रहा है । शाहंशाह अकबरने अपने राज्यको बारह सूबोंमें विभाजित किया था, जिनमें प्रयाग भी एक सूबा था। शासनकी दृष्टिसे उसने संगमपर एक मजबूत किला भी बनवाया। वह यहाँ बहुत समय तक रहा भी और उसीने प्रयागका नाम बदलकर इलाहाबाद कर दिया। हिन्दू तीर्थ
__ हिन्दू भी प्रयागको अपना तीर्थ मानते हैं । त्रिवेणी संगममें स्नान करनेको वे बड़ा पुण्यप्रद -मानते हैं। हर छह वर्ष पीछे अर्ध कुम्भ और बारह वर्ष पीछे कुम्भ होता है। उस समय लाखों यात्री यहाँ स्नान करने आते हैं।
कौशाम्बी स्थिति
इलाहाबादसे दक्षिण-पश्चिममें यमुनाके उत्तरी तटपर ६० कि.मी. दूर कौसम नामक एक छोटा-सा ग्राम है। वहाँ जानेके लिए इलाहाबादसे मोटर मिलती है। इलाहाबादसे सराय अकिल तक ४२ कि.मी. तक पक्की सड़क है। वहाँसे कौशाम्बीका रेस्ट हाउस कच्चे मार्गसे १८ कि. मी. है। यहाँ तक बस जाती है। रेस्ट हाउससे ४ कि. मी. कच्चा मार्ग है। इलाहाबादसे ३७ कि. मी. दूर मेन लाइनपर भरवारी स्टेशन है। यहाँसे यह क्षेत्र दक्षिणकी ओर ३२ कि.मी. है। यहाँसे मोटर, इक्का द्वारा जा सकते हैं। आजकल प्राचीन वैभवशाली कौशाम्बीके स्थान पर गढ़वा कोशल इनाम और कोसम खिराज नामक छोटे-छोटे गाँव हैं । जो जमुनाके तट पर अवस्थित हैं। क्षेत्रसे गढ़वा इनाम गाँव १ कि. मी. है। वहाँसे १० कि. मी. जलमार्ग द्वारा पभोसा गिरि है, जहाँपर भगवान् पद्मप्रभुकी भव्य मूर्ति है। कौशाम्बीकी स्थापना चन्द्रवंशी राजा कुशाम्बुने की थी। इसका पोस्ट ऑफ़िस कौशाम्बी है। यहाँ एक प्राचीन किला भी था। कहते हैं, इसे पाण्डवोंने बनवाया था। यह आजकल खण्डहर पड़ा हुआ है। इस किलेके कारण इस स्थानका नाम भी कौशाम्बी गढ़ हो गया है। तीर्थक्षेत्र
इस नगरीकी प्रसिद्धि छठवें तीर्थंकर भगवान् पद्मप्रभु के कारण हुई है। भगवान् पद्मप्रभुके गर्भ, जन्म, तप और ज्ञानकल्याणक यहीं पर हुए थे। इन कल्याणकोंको मनानेके लिए इन्द्र और