SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १३९ में हैं । चाहचन्द मुहल्लेमें जैन धर्मशाला है। धर्मशालाके पीछे जैन विद्यालय है। इसमें छोटे बच्चे पढ़ते हैं। प्रयाग म्युजियममें जैन पुरातत्त्व यह म्युजियम इलाहाबाद म्युनिस्पल कार्पोरेशनके अन्तर्गत चल रहा है। इसमें जैन पुरातन कलाकृतियोंका सुन्दर संग्रह है। ये कलाकृतियाँ कौशाम्बी, पभौसा, गया, जसो आदि विभिन्न स्थानोंसे प्राप्त हुई हैं। प्राचीनता और कला दोनों ही दृष्टियोंसे इनका विशेष महत्त्व है । म्युजियमके कम्पाउण्डमें बहुत सी मूर्तियाँ खण्डित और अखण्डित दोनों प्रकारकी रखी हुई हैं । उनपर प्राप्तिस्थान, काल आदि कुछ भी नहीं लिखा है। लांछन भी नहीं हैं और न मूर्ति-लेख ही हैं। इसलिए यहाँ उन्हीं जैन कलाकृतियोंका संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है जो म्युजियमके कक्षमें विद्यमान हैं। चन्द्रप्रभु-दो सिंहोंके ऊपर बने हुए आसनपर पद्मासनमें विराजमान हैं। वर्ण भूरा बलुआ पाषाण, अवगाहना ३ फुट ९ इंच है। दोनों ओर चमरवाहक हैं। सिरके ऊपर पाषाण छत्र है। ऊपरकी ओर पुष्पवर्षा करते हुए दो आकाशचारी देव अंकित हैं। यह प्रतिमा कौशाम्बीसे प्राप्त हुई है। पुरातत्त्ववेत्ताओंने इसका निर्माणकाल ईसाकी छठवीं शताब्दी निश्चित किया है। सर्वतोभद्रिका-एक सर्वतोभद्रिका प्रतिमा, जिसमें चारों दिशाओंमें चार खड्गासन तीर्थंकर प्रतिमाएं हैं, कौशाम्बीसे प्राप्त हुई थी। यह घुटनोंसे खण्डित है। इसका निर्माण काल १०वीं शताब्दी है। आदिनाथ-एक शिलाफलकपर कृष्ण पाषाणकी भगवान् आदिनाथकी एक खड्गासन प्रतिमा गयासे प्राप्त हुई थी। सिरपर बालोंका जटाजूट है। चरणोंके दोनों ओर चमरवाहक हैं । इस प्रतिमाके दोनों ओर चौबीस तीर्थंकरोंकी खड्गासन मूर्तियाँ बनी हैं। इसका भी अनुमानित काल १०वीं शताब्दी बताया है। आदिनाथ-हलके लालवर्णकी पाषाण शिला पर अंकित भगवान् आदिनाथकी एक अन्य खड्गासन प्रतिमा है। इसके हाथ और पाँव खण्डित हैं। कन्धे और पीठपर जटाएँ हैं। नोचेके भागमें यक्ष-यक्षिणी हैं । इधर-उधर दो चँवरवाहक खड़े हैं तथा दोनों ओर दो-दो पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं । छत्रके ऊपर दोनों ओर २ देवियाँ और २ देवता पुष्प लिये दिखाई देते हैं । यह प्रतिमा जसोसे प्राप्त हुई थी। इसका काल १२वीं शताब्दी अनुमानित है।। जसोसे प्राप्त आदिनाथकी एक और प्रतिमा है। इसका पाषाण लाल है । पद्मासन है । इसके भी हाथ और पैर खण्डित हैं। बायीं ओर यक्ष-यक्षिणी बैठे हैं। उनके ऊपर तीन पंक्तियोंमें दो खड्गासन, दो पद्मासन और तीन खड्गासन प्रतिमाएँ है। किन्तु सभीके सिर खण्डित हैं। इसी प्रकार दायीं ओर नीचे एक पदमासन और दो खड़गासन प्रतिमाएँ हैं। तीनों ही खण्डित हैं। ऊपर भी प्रतिमाएं बनी हुई थीं, किन्तु वे तो बिलकुल मिट चुकी हैं। सम्भवतः इस फलकपर चौबीसी बनी हुई थी। इसका अनुमानित काल १२वीं शताब्दी है। यक्ष दम्पति, यक्ष गोमेद और यक्षी अम्बिका सिंहासनपर ललितासनमें आसीन हैं । दोनोंकी गोदमें एक-एक बालक है । अम्बिकाके हाथमें आम्र-फल है। बालकोंके सिर खण्डित हैं । आसनके अधोभागमें सात भक्त श्रावक बैठे हुए हैं। ऊपर भगवान् नेमिनाथकी लघु प्रतिमा है । यह मूर्ति जसोसे प्राप्त हुई थी। यह १२वीं शताब्दीकी है। शान्तिनाथ-यह पभोसासे प्राप्त हुई थी और १२वीं शताब्दीकी है। यह भूरे बलुए पाषाणकी है। पद्मासनमें स्थित है और अवगाहना दो फुट तीन इंच है। इसके दोनों ओर एक-एक
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy