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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थं १३७ पार्श्वनाथ मन्दिर यहाँ चाहचन्द मुहल्ला सरावगियानमें एक उन्नत शिखरसे सुशोभित पार्श्वनाथ पंचायती मन्दिर है । ऐसा कहा जाता है कि इस मन्दिरका निर्माण नौवीं शताब्दीमें हुआ था । इस प्रकार यह मन्दिर ११०० वर्ष प्राचीन है । यद्यपि समय-समयपर मन्दिरका जीर्णोद्धार होता रहा है, अतः प्राचीनताके चिह्न पाना कठिन है । फिर भी परम्परागत अनुश्रुति इसी प्रकार की है । लगभग १५०-२०० वर्ष पूर्व किलेकी खुदाईमें कुछ जैन तीर्थंकरों और यक्ष-यक्षिणियोंकी मूर्तियाँ निकली थीं । जैन समाजने सरकारसे ये मूर्तियां लेकर उस मन्दिर तथा पंचायती दिगम्बर जैन मन्दिरमें विराजमान कर दी हैं । ये मूर्तियां न केवल पुरातत्त्वकी दृष्टिसे ही, अपितु कलाक दृष्टिसे भी बड़ी मूल्यवान् हैं । तीर्थंकर प्रतिमाएँ चतुर्थ कालकी कही जाती हैं । इनमें मध्यमें विराजमान मूलनायक प्रतिमा भगवान् पार्श्वनाथकी है । इसकी अवगाहना साढ़े चार फुटकी है । वर्ण सिलैटी है । इसका पाषाण रवादार है । दोनों ओर यक्ष-यक्षिणी हैं। ऊपर फण है । फणके अगल-बगल में पुष्पमालधारिणी विद्याधरियाँ तथा ऊपर दो ऐरावत हाथी हैं। हाथियों पर दो-दो देव हाथ जोड़े हुए बैठे हैं। किंवदन्ती है कि यह प्रतिमा किलेमें खुदाई करते समय निकली थी । हिन्दुओंने इसे अपने भगवान् की मूर्ति कहकर ले जाना चाहा । किन्तु जब जैनोंको इसका पता चला तो हिन्दू लोग इसे लेने नहीं आये | अधिकारीने भी यह शर्त लगा दी कि यदि यह जैनोंकी प्रतिमा है तो इसे एक ही व्यक्ति उठाकर ले जाये । तब एक धार्मिक सज्जन रात भर सामायिक करते रहे और सुबह भगवान्‌की पूजा करनेके बाद मूर्ति लेने पहुँचे । शुद्ध भावसे भगवान्का स्मरण करके जब उन्होंने इसे उठाया तो यह आसानीसे उठ गयी। किलेके बाहरसे वे उसे गाड़ी में रखकर ले आये और इस मन्दिर में लाकर विराजमान कर दिया। प्रतिमा काफी विशाल और वजनदार है और साधारणतः एक आदमी इसे किसी प्रकार उठा नहीं सकता । Tai ओरसे एक शिलाफलकपर भगवान् आदिनाथकी खड्गासन प्रतिमा है जिसकी अवगाहना १ फुट ९ इंच है । यक्ष-यक्षिणी अंजलिबद्ध मुद्रामें स्थित हैं । मूर्तिके दोनों ओर चमरवाहक हैं । कन्धेपर जटाएँ लहरा रही हैं। दोनों ओर दो-दो तीर्थंकर मूर्तियाँ पद्मासनमें विराजमान हैं। छत्रके दोनों ओर पुष्पमालाधारिणी दो देवियाँ हैं । दूसरी प्रतिमा - एक शिलापट्टपर पंचबालयतिकी खड्गासन प्रतिमा अंकित है । यक्षयक्षिणी, चमरवाहक और भक्तजन खड़े हैं। ऊपरकी ओर मालाधारिणी दो देवियोंका अंकन है। भगवान् पार्श्वनाथ की एक फणावलिमण्डित प्रतिमा है । परिकरमें यक्ष-यक्षिणी दोनों ओर विनयमुद्रा में खड़े हैं । चमरवाहक हाथोंमें चमर लिये हुए हैं। ऊपर दो देव और दो देवियाँ पुष्पमाल लिये हैं । इनसे ऊपर दोनों ओर गजराज हैं; जिनपर सौधर्मं और ऐशान इन्द्र करबद्ध मुद्रा में आसीन हैं । छत्रसे ऊपरकी ओर एक देव दुन्दुभि बजाते हुए दिखाई पड़ता है । इससे आगे भगवान् आदिनाथकी खड्गासन प्रतिमा है । चमरवाहक हाथोंमें चमर लिये खड़े हैं। यक्ष-यक्षिणी हैं जो खण्डित हैं। ऊपरकी ओर दो देवियाँ पुष्पमालाएँ लिये हैं । बायीं ओरकी वेदीमें श्वेत पाषाणकी अम्बिकादेवीकी मूर्ति है । अवगाहना १ फुट ३ इंच है। दो बालक अंकित हैं। एक गोदमें है, दूसरा बगलमें खड़ा है । देवीके शीर्ष पर भगवान् नेमि - नाथ विराजमान हैं । भगवान्‌ के चारों ओर भव्य अलंकरण है । इस प्रतिमा के पीठासन पर १८
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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