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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ बट प्रयाग तल जैन योग धर्मो सभासह। प्रगट्यो तीर्थ प्रसिद्ध पूरत भविमण आसह । प्रयागबट दीठे थके पाप सकल जन परिहरे। बृहत् ज्ञानसागर वदति प्रयाग तीर्थ बहु सुख करे इसमें कविने बताया है कि ऋषभदेव भगवान्ने प्रयाग वटवृक्षके नीचे ध्यान लगाया था। इससे वह तीर्थके रूपमें प्रसिद्ध हो गया। वहाँ जानेपर लोगोंकी मनोकामनाएं पूरी होती थीं; ऐसा उस स्थानका अतिशय था। 'प्राचीन तीर्थमाला संग्रह' भाग १, पृ० १०-११ के अनुसार प्राचीन समयमें यहाँ ऋषभदेवके चरण विराजमान थे किन्तु सोलहवीं सदीमें राय कल्याण नामक सूबेदारने चरण हटाकर शिवलिंग स्थापित करा दिया। 'विविध तीर्थ कल्प' में लिखा है कि आचार्य अन्निकापुत्रको लोगोंने नावसे उठाकर गंगामें फेंक दिया। आचार्यको इसका कोई खेद नहीं था। किन्तु जल कायके जीवोंकी जो विराधना हो रही थी, इससे वे आत्मालोचनमें लगे। तभी श्रेणी-आरोहण करके उन्हें केवलज्ञान हो गया और अन्तकृत्केवली होकर मुक्ति-लाभ किया। देवताओंने निर्वाण महिमा (पूजा) की। आगे लिखा है 'अतएव तीर्थं प्रयाग इति जगति पप्रथे। प्रकृष्टो यागः पूजा अत्रेति प्रयाग इत्यन्वर्थः । शलाप्रीतत्वगतानुगतिकतया चाद्यापि परसमयिनः क्रकचं स्वांगे दापयन्ति तत्र। वटश्च तत्र गणशस्तुरुष्कैश्छिन्नोऽपि मुहर्महः प्ररोहति । -विविध तीर्थकल्प पृ०६८ इसके अनुसार मुसलमान बादशाहोंने यह वटवृक्ष काट दिया था किन्तु वह बार बार उग आता है। यह स्थान प्राकृतिक सुषमासे समृद्ध है। गंगा-यमुना और सरस्वतीका यह संगम स्थल है। इन तीन नदियोंकी श्वेत, नील और रक्त धाराएँ मिलकर एक दूसरेमें समाहित हो गयी हैं। यह अक्षय वट इस त्रिवेणी संगमके तटपर खड़े हुए किलेके भीतर है। इसमें तो सन्देह नहीं है कि वह मूल अक्षयवट समाप्त हो गया, किन्तु उसकी वंश-परम्पराके द्वारा अब तक एक अक्षयवट विद्यमान है। पहले पातालपुरी गुफामें कुछ पण्डे लोग एक सूखी लकड़ीको कपड़ेमें लपेटकर और उसे अक्षय वट कहकर भक्त जनताको उसका दर्शन कराते थे, अब भी कराते है। किन्तु अब, कहते हैं, अक्षय वटका पता चल गया है और अब सप्ताहमें दो दिन उसके दर्शन कराये जाते हैं। यमुना किनारेके फाटकसे यहाँ आ सकते हैं। आजकल यह उस क्षेत्र में है जो सेनाके अधिकारमें है। अतः इसके दर्शनके लिए क्षेत्रीय सैनिक अधिकारीसे आज्ञा लेनी पड़ती है। इस स्थानकी यात्रा करनेसे भगवान् ऋषभदेवकी स्मृति मनमें जाग उठती है और मन अनिर्वचनीय भक्ति-भावसे प्लावित हो उठता है। पुरातत्त्व ___यहाँ किलेमें एक प्राचीन स्तम्भ है। भगवान् ऋषभदेवकी कल्याणक भूमि होनेके कारण मौर्य सम्राट सम्प्रतिने इसका निर्माण कराया था। उस स्तम्भको भूलसे अशोक स्तम्भ कहने लगे हैं। इसके ऊपर प्रियदर्शी (सम्प्रतिकी उपाधि ), उसकी रानी, सम्राट् समुद्रगुप्त, वीरबल और जहाँगीरके लेख भी खुदे हुए हैं ।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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