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मार्ग
उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ चन्द्रपुरी
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चन्द्रपुरी क्षेत्र बनारससे आगे मेन लाइनपर कादीपुर स्टेशनसे ५ कि. मी. दूर गंगाके किनारे अवस्थित है | टैक्सी और मोटर द्वारा वाराणसी - गोरखपुर रोडपर २० कि. मी. है। रेल द्वारा २४ कि. मी. पड़ता है । मुख्य सड़कसे २ कि. मी. कच्चा रास्ता जाता है । यह सिंहपुरीसे १७ कि. मी. है। यह एक छोटा-सा गाँव है जो चन्द्रौटी कहलाता है । यह वाराणसी जिलेमें है और इसका पोस्ट आफिस कैथी है । यात्रियोंके लिए सुविधा जनक यह है कि वाराणसी में मैदागिनको जैन धर्मशाला में ठहरें । वहाँसे टैक्सी या बससे जायें। टैक्सी मन्दिर तक पहुँच जाती है । बससे सड़क पर उतरकर दो कि. मी. पैदल चलना पड़ता है । पुजारी गाँवमें रहता है । जमादार दरवाजेपर ही रहता है ।
जैनतीर्थ
यह आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभु भगवान्का जन्म स्थान है। इस स्थानपर भगवान् चन्द्रप्रभके गर्भ, जन्म, तप और केवलज्ञान ये चार कल्याणक हुए थे । इसलिए यह एक अत्यन्त प्राचीन तीर्थं स्थान है ।
वर्तमान स्थिति
यहाँ दिगम्बर जैनों का एक प्राचीन मन्दिर था, जिसपर श्वेताम्बरोंने अधिकार कर लिया । तब आरा निवासी लाला प्रभुदासने यहाँ गंगाके तटपर सन् १९९३ में नवीन दिगम्बर जैन मन्दिरका निर्माण कराया । मन्दिरके लिए भगवान् चन्द्रप्रभकी दो मूर्तियोंका निर्माण भी इन्होंने कराया और उनकी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा बा० देवकुमार आरा वालोंने करायो ।
मन्दिर साधारण है तथा दूसरी मंजिल पर है। गर्भगृह एक साधारण-सा कमरा है, जो लगभग ८ × ८ फुट है। दीवाल में आलमारीनुमा वेदीमें एक साधारण पाषाणके सिंहासनपर मूलनायक भगवान् चन्द्रप्रभकी श्वेत पाषाणकी पौने दो फुट ऊँची प्रतिमा विराजमान है । इसके आगे पीतल के सिंहासनपर भगवान् पार्श्वनाथकी ८ इंच ऊँची कृष्णवर्ण प्रतिमा है ।
गर्भगृहके आगे सभामण्डप है, जो गर्भगृहसे कुछ बड़ा है। गर्भगृहके द्वारपर इधर-उधर दोनों आलोंमें यक्ष विजय और अष्टभुजी यक्षिणी ज्वालामालिनी की मूर्तियाँ रखी हुई हैं । इसी प्रकार सामग्री वाली वेदीके इधर-उधर आलेमें एकमें क्षेत्रपाल तथा दूसरेमें चरण विराजमान हैं । मन्दिरके चारों ओर धर्मशाला है । श्वेताम्बरोंके अधिकारमें जो मन्दिर है, वह दिगम्बर मन्दिरसे थोड़ी दूरपर बना हुआ है। इसका निर्माण संवत् १८६० में हुआ था ।
किंवदन्ती
इस मन्दिर निर्माता लाला प्रभुदासकी आर्थिक स्थिति साधारण थी, ऐसा कहा जाता है । एक बार भट्टारक जिनेन्द्रभूषणने उनसे कहा- तुम छह जैन मन्दिरोंका निर्माण कराओ । लाला प्रभुदासने इसपर दुखी होकर अपनी आर्थिक विवशता प्रकट को तो भट्टारकजी बोलेतुम इसकी चिन्ता मत करो, केवल स्वीकृति भर दे दो । लालाजीने अपनी स्वीकृति दे दी । देखते-देखते कुछ दिनों में ही लालाजीकी आर्थिक स्थिति सुधर गयी । तब उन्होंने चन्द्रपुरी, भदैनी,