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उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ सेठ खड्गसेन उदयराजका मन्दिर-उक्त मन्दिरोंके कम्पाउण्डके बाहर नवीन दिगम्बर जैन मन्दिर है, जो सेठ खड्गसेन उदयराजका बनवाया हुआ है। यह मन्दिर शिखरबद्ध और बड़ा भव्य है । मन्दिरके बाहर उद्यान है । इस मन्दिर और यहाँकी मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा संवत् १९२५ में हुई थी। यहाँकी तीन वेदियोंपर तीर्थंकर प्रतिमाएं विराजमान हैं। इनके अतिरिक्त तीन वेदियोंमें पद्मावती देवी विराजमान हैं। बायीं ओरके कक्षमें पद्मावती देवीकी श्वेत पाषाणकी ३ फुट ऊँची मूर्ति है। नीचे सीमेण्टकी अजगरकी कुण्डली बनी हुई है। इस पर पॉलिश इतनी कलात्मक ढंगसे की गयी है कि वह सजीव प्रतीत होता है। कुण्डलीके ऊपर कमलासन है, जिसपर देवी बैठी है। उसके सिरके ऊपर सीमेण्टका बना हुआ फण-मण्डप है। पद्मावतीकी इतनी सुन्दर मूर्ति अन्यत्र मिलना कठिन है।
___ मन्दिरकी वेदीपर स्वर्णका काम बहुत सुन्दर किया गया है। दीवालोंपर भित्तिचित्र बने हए हैं. जिनमें पौराणिक आख्यान चित्रित किये गये हैं। सचित्र भक्तामर स्तोत्र भी चित्रित किया गया है।
____ इस मन्दिरकी बगलमें महाराज विजयानगरम्का महल है। सेठ खड्गसेन उदयराजने महाराजसे मुकद्दमा जीतकर यह स्थान प्राप्त किया था। एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ-प्रशस्ति
___ स्याद्वाद महाविद्यालयके अकलंक पुस्तकालयमें एक हस्तलिखित ग्रन्थ है, जिसका नाम 'सामायिक नित्य प्रतिक्रमण पाठ' है। इसका लेखन-काल संवत् १६१९ है । इस प्रतिमें कुल १६ पत्र हैं। उसमें जो प्रशस्ति दी गयी है वह उपयोगी होनेके कारण यहाँ दी जा रही है
लिषतं (लिखितं ) पंडित सेवाराम त्रिपाठी कोशल देशे त्रिलोकपुर मध्ये पार्श्वनाथ चैत्यालये पठनार्थं ये उता (त्त ) रा काशी षंड ( खण्ड ) वाराणसी नगरी भेलीपुर श्री पार्श्वनाथ चैत्यालयात् पठनार्थं श्री गुणकीर्ति आचार श्री दिघवर ( दिगम्बर ) गच्छ सरोसति ( सरस्वती) मूल संघ आमनाये ( आम्नाये ) उगाम ( ? ) तसे सीसे ब्रह्म पद्मसागर सके सोवासे १६१९ मिति चइत्र ( चैत्र ) वद १० तें दिवसी सामाइक पाठ सम्पूर्ण समाप्तः ।।६।।
___इस प्रशस्तिसे दो बातोपर प्रकाश पड़ता है कि संवत् १६१९ (सन् १५६२) में त्रिलोकपुरमें पार्श्वनाथ दिगम्बर चैत्यालय था तथा भेलपूरमें पार्श्वनाथ मन्दिर विद्यमान था। यह काल मुगल सम्राट अकबरका था। हिन्दू-तीर्थ
हिन्दुओंकी मान्यतानुसार अयोध्या, मथुरा, माया ( कनखल हरिद्वार ), काशी, कांची, अवन्ति ( उज्जैन ) और द्वारका ये सात महापुरियाँ हैं। इनमें काशी मुख्य मानी गयी है। यह पुरी शंकरजीके त्रिशूलपर बसी है। 'काश्यां हि मरणान्मुक्तिः' यह हिन्दू-शास्त्रोंका वाक्य है। काशीमें मरनेसे मुक्ति प्राप्त होती है, इस विश्वासके कारण ही प्राचीन कालमें यहाँ देहोत्सर्ग करनेके लिए हिन्दू लोग आया करते थे। यह नगर शिवजीका नगर कहलाता है, अतः यहाँ शिव और उनके गणोंके अनेक मन्दिर हैं। यहाँ उनके कुल ५९ मुख्य शिवलिंग, १२ आदित्य, ५६ विनायक, ८ भैरव, ९ दुर्गा, १३ नृसिंह और १६ केशव हैं।
काशीका सम्बन्ध महाराज हरिश्चन्द्र, कबीर और तुलसीसे भी रहा है।