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________________ १२८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ । • एक दूसरे आलेमें श्वेताम्बर सम्प्रदायकी दो धातु और एक पाषाण-प्रतिमा है तथा एक चरण-युगल विराजमान है। एक मेजपर श्वेताम्बर सम्प्रदायकी श्वेत मूर्ति रखी है। दिगम्बर जैन मन्दिर उक्त मन्दिरके बगलमें दायीं ओर दिगम्बर जैन मन्दिर है। इसके लिए इस संयुक्त मन्दिर--- में-से भी रास्ता है और उसका पृथक् द्वार भी है। इस मन्दिरमें तीन वेदिया है। मुख्य वेदीमें मूलनायक प्रतिमा भगवान् पार्श्वनाथकी है। यह श्वेतपाषाणकी पद्मासनमें है। अवगाहना १५ इंच है । मूर्ति-लेखके अनुसार यह वि. सं. १६६४ की है। इस वेदीमें कूल २६ प्रतिमाएँ विराजमान हैं, जिनमें २२ पाषाणकी और ४ धातकी हैं। इनमें वि. संवत् १०२८ और १२२८ से लेकर संवत् १५४८,१६६४ और १९५२ तककी प्रतिष्ठित प्रतिमाएँ हैं। वि. संवत् १०२८वाली प्रतिमा भगवान् चन्द्रप्रभुको श्वेत पाषाणकी पद्मासन ११ इंच की है। दायीं ओरकी वेदीमें बायीं ओरसे-कृष्ण पाषाणके फलकपर भगवान् शान्तिनाथकी कायोत्सर्ग मुद्रामें ३। फुट ऊंची प्रतिमा है । इसके परिकरमें नीचे ९ भक्तजन बैठे हुए हैं। दायीं ओर भगवान्का गरुड़ यक्ष और महामानसी (कन्दर्पा ) यक्षिणी है। दोनों ही द्विभुजी हैं। यक्षके एक हाथमें फल और दूसरे हाथमें वज्र है। यक्षके ऊपरकी ओर गोदमें एक बालकको लिये हए यक्षी खड़ी है। इसके ऊपरकी ओर इन्द्र पारिजात पुष्प लिये हुए खड़ा है। उसके बगलमें खड्गासन अर्हन्त प्रतिमा है। उसके ऊपर भी एक और खड्गासन अर्हन्त प्रतिमा है। उनके ऊपरकी ओर गज है, जिसके ऊपर कलश लिये हुए इन्द्र बैठा हुआ है। फिर आकाशचारी देव-देवियाँ कमल-पुष्प लिये दीख पड़ती हैं। छत्रत्रयीके ऊपर वाद्ययन्त्र बजाता हुआ एक पुरुष दिखाई देता है। बायीं ओरकी रचना भी इसी प्रकारकी है। अन्तर इतना है कि इस ओर एक मनुष्यके कन्धेपर एक स्त्री बैठी हुई है। इस वेदीमें मुख्य प्रतिमा भगवान् पार्श्वनाथकी है। यह कृष्ण वर्ण, पद्मासन और २ फुट १० इंच अवगाहनाकी है। एक मति कृष्ण पाषाणकी पद्मासनमें १८ इंच ऊँची है। इस मंतिके ऊपर कोई लांछन और लेख नहीं है । यह उत्तर मध्यकालकी प्रतीत होती है । इस वेदीमें कुल १७ प्रतिमाएँ हैं जिनमें ९ पाषाणकी और ८ धातुकी हैं। इनमें वि. संवत् १५५५ की कई प्रतिमाएं हैं। . बायीं वेदीमें मूलनायक चन्द्रप्रभ भगवान्की श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा है। यह १५ इंच ऊँची है । यह वि. संवत् १९९० की प्रतिष्ठित है। इस वेदीमें चार चौबीसी मूर्तियाँ हैं । प्रत्येक एक शिलाफलकमें उकेरी हुई हैं। वर्ण साधारण हरित है। लगता है, पाषाण बहुमूल्य है। श्वेत पाषाणकी एक खड्गासन मूर्ति भी है। उसमें लेख और लांछन नहीं है। इस वेदीमें पद्मावती देवीकी श्वेत पाषाणको सवा फुट ऊँची प्रतिमा विराजमान है। यहाँ ३-४ वर्ष पूर्व एक रोचक घटना घटित हुई थी। प्रातः जब पुजारी अभिषेकके लिए आया तो उसने देखा कि चन्द्रप्रभ भगवानके ऊपर एक विशालकाय चितकबरा सर्प फण फैलाये हए बैठा है। पूजारी जब अभिषेकके लिए आगे बढ़ा तो सर्प हट गया। अभिषेकके पश्चात् वह पुनः आकर बैठ गया। उसे देखने हजारों व्यक्ति आये। उसके चित्र भी लिये गये। फिर वह देखतेदेखते ही पता नहीं कहाँ चला गया। इन मन्दिरोंके बगल में एक समाधिस्थल बना हुआ है, जिसपर दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायोंका समान अधिकार है।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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