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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १२५ गुप्तयुगमें प्रतिमाओंमें अलंकरण और सुरुचिसम्पन्नतामें जो वृद्धि हुई, वह यहाँ प्राप्त इस युगकी प्रतिमाओंमें देखनेको मिलती है। राजघाटसे प्राप्त एक जैन तीर्थंकर प्रतिमाका शिरोभाग यहाँ रखा हुआ है। यह एक शिलाफलकमें उत्कीर्ण है। सिरके ऊपर आकाशचारी देव हाथोंमें पारिजात पुष्पोंकी मालाएँ लिये प्रदर्शित हैं। शिरके पृष्ठभागमें अशोक वृक्षका भव्य अंकन है। भव्य केश गुच्छक, अर्धोन्मीलित दृष्टि, वीतराग छवि, मन्दस्मित आदि सारा वैशिष्ट्य इस शिरोभागमें परिलक्षित है, जो इस युगकी अन्य तीर्थंकर प्रतिमाओंमें मिलता है। रचना-शैलीसे इसका काल छठी शताब्दी निश्चित किया गया है। संग्रहालयमें इस शीर्षका उल्लेख 'महावीर-प्रतिमाका शिरोभाग' इस रूपमें किया गया है, किन्तु किस लांछन या चिह्नके आधारपर यह निर्णय किया गया, कह सकना कठिन है । साधारणतः पार्श्वनाथ और कभी-कभी आदिनाथ तथा सुपार्श्वनाथकी प्रतिमाओंके शिरोभागको देखकर प्रतिमाका परिचय मिल जाता है, किन्तु शेष तीर्थंकर माओंके शिरोभाग तो प्रायः समान होते हैं। इसलिए केवल शिरोभागसे उस तीर्थंकर-प्रतिमाका सम्बन्ध किस तीर्थंकरके साथ है, यह स्पष्ट ज्ञात नहीं हो पाता। अतः यह शीर्षभाग महावीर प्रतिमाका है, यह नहीं कहा जा सकता। ___एक शिलाफलकपर, जो ४ फुट ५१ इंच ऊँचा और ३३ फुट चौड़ा है, कमलासनपर तीर्थकर प्रतिमा है। पादपीठके मध्यमें धर्मचक्र तथा उसके दोनों ओर सिंह अंकित हैं। इसके कुछ ऊपर यक्ष-यक्षी हैं तथा उनके ऊपरी भागमें दो तीर्थंकर प्रतिमाएँ अंकित हैं । शिरके पीछे भामण्डल और ऊपर छत्रत्रय सुशोभित हैं। उसके दोनों ओर आकाशचारी देव पुष्पमाल लिये हुए दिखाई पड़ते हैं। भगवान्की छातीपर श्रीवत्स चिह्न अंकित है । दो सिंहोंसे इस प्रतिमाकी पहचान महावीर प्रतिमाके रूपमें की जाती है। एक पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा बलुए पाषाण खण्डपर उत्कीर्ण है। यह पाषाण लगभग डेढ़ फुट ऊँचा और एक फुट चौड़ा है। सिंहासनके स्थानपर कमलासन है। नीचे दोनों ओर भगवान्के यक्ष-यक्षी विनीत मुद्रामें खड़े हुए हैं। पीठिकाके मध्यमें धर्मचक्र है, जिसके दोनों ओर सिंहाकृतिका बनी हुई हैं। दोनों ओर. चमरवाहक खड़े हैं। वक्षके मध्यमें श्रीवत्स चिह्न है। सिरके पीछे भामण्डल तथा ऊपर त्रिछत्र हैं। दोनों ओर नभचारी देव हाथों में पुष्पमाल लिये हैं। सिंहासन पीठके निचले भागमें एक चैत्यवृक्ष के ऊपर तीर्थंकर प्रतिमा अंकित है। जिसके दोनों ओर यक्ष-यक्षी प्रदर्शित हैं। यक्षी द्विभुजी है। एक भुजासे एक बालकको गोदमें लिये हुए है तथा दूसरे हाथमें आम्रफल है। एक बालक नीचे खड़ा हुआ है। इससे ज्ञात होता है कि यह अम्बिका मूर्ति है। दक्षिण-पार्श्वमें एक लम्बोदर यक्ष-मूर्ति है जो हाथोंमें धनकी थैली लिये हुए है। यह गोमेदयक्षकी मूर्ति प्रतीत होती है। अम्बिका और गोमेद बाईसवं तीर्थंकर नेमिनाथके शासन देवता हैं । अतः इसे भगवान् नेमिनाथकी मूर्ति माना जाता है। इसके अतिरिक्त मूर्तिकी पहचानके लिए कोई लांछन या लेख नहीं है। उपर्युक्त दोनों ही शिलाफलकोंकी मूर्तियाँ छठी शताब्दी की मानी जाती हैं। राजघाटके उत्खननसे प्राप्त सप्तफणावलियुक्त एक तीर्थंकर प्रतिमा यहाँ स्थित है। यह कृष्ण शिलापटपर उत्कीर्ण है। इस फणावलीके दो फण खण्डित हो गये हैं। सिरके इधर-उधर दो गज बने हुए हैं। उनके ऊपर बैठे हुए देवेन्द्र हाथोंमें कलश लिये हुए हैं। फणावलीके ऊपर भेरी ताड़न करता हुआ एक व्यक्ति अंकित है। यह मूर्ति ११वीं शताब्दीकी अनुमानित की गयी है। पंच फणावलीसे यह सुपार्श्वनाथकी मूर्ति प्रतीत होती है। कलाभवनके संग्रहालयमें भी कुछ जैन प्रतिमाएँ उपलब्ध हैं। उनमें से एक खड्गासन
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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