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________________ १२६ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ प्रतिमा है। दोनों ओर यक्ष-यक्षी खडे हैं। वक्ष पर श्रीवत्स अंकित है। इस प्रतिमा पर कोई लांछन या लेख नहीं है। अलंकरण भी प्रायः नहीं है। इन कारणोंसे इसे प्रथम शतीमें निर्मित माना जाता है। एक शिलाफलकपर चौबीसी अंकित है। मध्यमें पद्मासन ऋषभदेव विराजमान हैं। केशोंकी लटें कन्धोंपर लहरा रही हैं। पादपीठपर वृषभका लांछन है। भगवान्के दोनों पाश्ॉमें शासन देवता चक्रेश्वरी और गोमखका अंकन किया गया है। दोनों ही द्विभजी हैं और अलंकरण धारण किये हुए हैं। चक्रेश्वरीके एक हाथमें चक्र तथा दूसरे में सम्भवतः बिजौरा है। भगवान्के मस्तकके ऊपर त्रिछत्र और दोनों ओर सवाहन गज हैं। त्रिछत्रके ऊपर दो पंक्तियोंमें पद्मासन और कायोत्सर्गासनमें तेईस तीर्थंकरोंकी मूर्तियाँ हैं। पीठिकाके नीचेकी ओर उपासकोंका अंकन किया गया है। ___इस मूर्तिका कलाईसे नीचेका भाग और बाँया पैर खण्डित है। यह फलक खजुराहोसे प्राप्त हुआ था। इसका आनुमानिक काल ११वीं शताब्दी बताया जाता है। यहाँपर एक सर्वतोभद्रिका प्रतिमा भी है। चारों दिशाओंमें चार खड्गासन तीर्थंकर प्रतिमाएँ हैं। इनके अतिरिक्त प्रत्येक दिशामें प्रत्येक कोनेपर दो पद्मासन प्रतिमाएँ अंकित हैं। इस प्रकार कुल १२ प्रतिमाएँ अंकित हैं। इन प्रतिमाओंमें न लांछन अंकित है, न श्रीवत्स ही अंकित है। खड़ी प्रतिमाओंकी भुजाओंका भाग खण्डित है। यह मूर्ति कहाँसे प्राप्त हुई थी, ज्ञात नहीं हुआ। तीर्थक्षेत्रकी वर्तमान स्थिति भदैनीघाट-भगवान् सूपार्श्वनाथका जन्मस्थान वर्तमान भदैनी घाट माना जाता है। . यहाँ आजकल स्याद्वाद महाविद्यालय नामक प्रसिद्ध शिक्षा संस्था है। इसके भवनके ऊपर भगवान् सुपार्श्वनाथका मन्दिर है। यह गंगा तटपर अवस्थित है। दृश्य अत्यन्त सुन्दर है। मन्दिर छोटा ही है। किन्तु शिखरबद्ध है । इसका निर्माण लाला प्रभुदासजी आरावालोंने कराया था। वेदीमें भगवान् सुपार्श्वनाथकी श्वेतपाषाणको संवत् १९१३ में प्रतिष्ठित पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसकी अवगाहना १५ इंच है। इस मूलनायक प्रतिमाके अतिरिक्त पाँच श्वेत पाषाणकी और एक कृष्ण पाषाणकी तथा एक सर्वतोभद्रिका प्रतिमा विराजमान हैं। गर्भगृहके द्वारपर दायें-बायें पार्श्वमें मातंग यक्ष और काली ( मानवी) यक्षी बनी हुई हैं। यक्षका वाहन सिंह है और यक्षी वृषभारूढा है। गर्भगृहके बाहरके कमरे में एक खाली वेदी है। एक आलेमें चरण बने हैं। मन्दिरके दोनों ओर खुली छत है । मन्दिरका शिखर बहुत सुन्दर बना हुआ है। भदैनी घाटसे दक्षिणकी ओर दो घाट छोड़कर बाबा छेदीलालजी का घाट है। पूर्वजोंका कहना है कि इस घाटके निर्माणसे पहले यहाँ भगवान् सुपार्श्वनाथके चरण-चिह्न स्थापित थे। भगवान्के गर्भकल्याणककी तिथि भाद्रपद शुक्ला ६ है। उस समय गंगामें बाढ़ आयी होती है। अतः बड़ी उम्रके व्यक्ति पानीमें जाकर चरण-चिह्नकी पूजा किया करते थे। काशीके रईस बाबा छेदीलालजीने इस जगह घाट बनवाकर मन्दिरका निर्माण कराया और वि० सं० १९५२ में उसकी प्रतिष्ठा करायी। धार्मिक द्वेषके कारण बगलमें ही स्थित मन्दिरके अधिकारियोंने मुकद्दमेबाजी चालू कर दी। जरासे कोनेके लिए वर्षों तक मुकद्दमा चला और छेदीलालजीकी जीत हुई।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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