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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १२३ और काशी जनपदका अन्य बड़े-बड़े नगरोंके साथ जल और स्थलके द्वारा सम्बन्ध था। व्यापारिक केन्द्र होनेके कारण इसकी गणना भारतकी समृद्ध नगरियोंमें की जाती थी। भगवान महावीरके कालमें नौ मल्ल और नौ लिच्छवि राजाओंका वर्णन मिलता है। ये अठारह गणतन्त्र राजा भगवान महावीरके निर्वाणोत्सवके अवसरपर पावामें पहुंचे थे। इन मल्ल और लिच्छवि राजाओंका सम्बन्ध काशी और कोशलसे भी था। 'कल्पसूत्र में उल्लेख आया है-'नवमल्लई, नवलेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारसवि गणरायाणो। -कल्पसूत्र व्याख्यान ६, सूत्र १२८ । ____ 'कल्पसूत्र'की 'सन्देह विषौषधि' नामक टीकामें इसकी व्याख्या इस प्रकार की गयी है'नव मल्लई इत्यादि-काशीदेशस्य राजानो मल्लकी जातीया नवकोशलदेशस्य राजानो लेच्छकी जातीया'। अर्थात् काशी देशके राजा मल्लकी जातीय थे और कोशल देशके नौ राजा लेच्छकी जातीय थे। आशय यह है कि मल्लको ( मल्ल ) जातिके राजाओंका मूल वासस्थान काशी था और लेच्छकी ( लिच्छवि ) जातिके राजा मूलतः कोशल देशके रहनेवाले थे। काशी और कोशलके ये लोग कब किस कारण अपनी जन्मभूमि छोड़कर चले गये और जाकर उन्होंने उस अधिनायकवादी कालमें मल्ल और लिच्छवि गणतन्त्र जैसे सुदृढ़ गणराज्योंकी कैसे स्थापना की, इन विषयों पर इतिहासकारोंको अभी विस्तृत खोज करनेकी आवश्यकता है। - वैदिक साहित्यमें कोशलके किसी नगरका नाम नहीं मिलता । शतपथ ब्राह्मणके अनुसार कोशलमें ब्राह्मण सभ्यताका प्रसार कुरु-पंचालके पश्चात् तथा विदेहसे पहले हुआ। रामायण तथा हिन्दू पुराणोंके अनुसार कोशलका राजवंश इक्ष्वाकु नामके राजासे चला। इसी वंशकी शाखाओंने विशाला या वैशाली, मिथिला और कुशीनारामें राज्य किया। कोशलकी तरह विदेहका निर्देश भी प्राचीन वैदिक साहित्यमें नहीं है। दोनोंका प्रथम निर्देश शतपथ ब्राह्मण (२४१-१०) में मिलता है। इन उल्लेखोंसे प्रकट है कि कोशल अ विदेह परस्पर मित्र थे। कोशल और विदेहके साथ काशीको भी प्राधान्य उत्तर वैदिक कालमें मिला। अथर्ववेदमें प्रथम बार काशीका निर्देश मिलता है। काशीका कोशल और विदेहके साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था। काशीके एक राजा धृतराष्ट्रको शतानीक सहस्राजितने हराया था। वह अश्वमेध यज्ञ करना चाहता था। किन्तु शतानीकने उसे हरा दिया। फलतः काशीवासियोंने यज्ञ करना ही छोड़ दिया। बौद्ध महागोविन्द सुत्तन्तमें भी काशीके राजा धत्तरट्टका निर्देश किया है जो शतपथ ब्राह्मणका धृतराष्ट्र ही प्रतीत होता है। उसे महागोविन्दने भरतराज कहा है। डॉ. राय चौधरीने लिखा है-ऐसा प्रतीत होता है कि काशीके भरतवंशका स्थान राजाओंके एक नये वंशने ले लिया जिनका वंश नाम ब्रह्मदत्त था। ये ब्रह्मदत्त मूलतः विदेहके थे। उदाहरणके लिए मातिपोसक जातकमें काशिन देशको विदेह कहा है । यथा 'मुत्तोम्हि कासीराजेन विदेहेन यसस्सिना।' डॉ. राय चौधरीका विश्वास है कि विदेहके राज्यको उलटनेमें काशीके लोगोंका हाथ था क्योंकि जनकके समयमें काशीराज अजातशत्रु विदेहराज जनकसे चिढ़ता था। १. Political history of Ancient India, P. 63.
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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