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उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
१२१ इसके लिए उन्होंने दही, दूध, घृत, चावल, चने, तेल, ताम्बूल, पुष्प आदि कितनी ही वस्तुओंका हठपूर्वक त्याग कर दिया। चैतके महीनेमें यह नियम लिया था कि जब तक बनारसके पार्श्वनाथकी यात्रा नहीं कर लूँगा, तब तक इन वस्तुओंका उपयोग नहीं करूँगा। इस नियमको छह-सात महीने हो गये । कार्तिकी पूर्णमासीके गंगास्नानके लिए बहुत-से शिवभक्त और पार्श्वनाथकी पूजाके लिए जिनभक्त बनारस जा रहे थे। उन लोगोंके साथ बनारसीदास भी गये। 'अर्धकथानक में उन्होंने इसका बड़े रोचक ढंगसे वर्णन किया है
"कासी नगरीमें गये, प्रथम नहाये गंग। पूजा पास सुपास की, कीनी मन धर रंग ॥२३२।। जे जे खन की बस्त सब, ते ते मोल मंगाइ। नेवज ज्यों आगे धरे, पूजे प्रभु के पाइ ॥२३३।। दिन दस रहे बनारसी, नगर बनारस माहि।
पूजा कारन घोहरे, नित प्रभात उठि जाहिं ॥२३४॥ इस प्रकार बनारसीदासने वाराणसी नगरीकी दस दिवसीय यात्रा बड़े भक्ति-भावसे की। यक्षों और नागोंकी पूजा
प्राचीन भारतीय साहित्यसे पता चलता है कि प्राचीन भारतमें नाग-पूजा प्रचलित थी। नाग नामक एक जाति भी थी और नागका आशय सर्पसे भी है। किन्तु नागजातिके नाग हमारे समान ही मानव थे। उनके नाम इस प्रकारके होते थे, जिससे उन्हें सर्प समझ लिया जाता है। हिन्दू पुराणोंमें नाग जातिके प्रधान पुरुषोंमें शेष, वासुकि, तक्षक, शंख, श्वेत, महापद्म, कम्बल, अश्वतर, एलापत्र, नाग, कर्कोटक, धनंजय बतलाये गये हैं। यह प्राचीन भारतकी एक सभ्य और सुन्दर जाति थी। नागजातिका एक विशिष्ट वर्ग भारतीय इतिहासमें 'भारशिवनाग'के नामसे प्रसिद्ध है। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ० काशीप्रसाद जायसवालने मंजुश्री मूलकल्प (श्लोक ७४।५२) नामक बौद्ध ग्रन्थके आधारपर नागोंको वैश्य बताया है।
___ नाग जातिका आदि उद्गम या इतिहास क्या है, यह अभी अन्धकारमें है किन्तु इस जातिका अस्तित्व रामायण और महाभारत कालमें भी मिलता है। रामके पुत्र कुशका विवाह एक नाग-कन्यासे हुआ था। शूरसेन प्रदेशके अधिपति शूरकी माता और उग्रसेनकी रानी नाग जातिकी थी। अर्जुनकी दो रानियाँ चित्रांगदा और उलूपी भी नाग कन्याएँ थीं। कुरुक्षेत्रके निकट खाण्डववनमें तक्षक नामक एक नाग सरदार रहता था। महाभारतसे पता चलता हैं कि जब अर्जुन और श्रीकृष्णने बस्ती बसानेके लिए उस वनको जलाया था, तब उसमें रहनेवाले बहुत-से प्राणी जल मरे थे। उस समय तक्षक कहीं बाहर था। वह बच गया। किन्तु तबसे ही पाण्डवोंका विरोधी हो गया। उसने अवसर मिलते ही अर्जुनके पौत्र परीक्षितको छद्म वेषमें मार डाला था। तब परीक्षितके पुत्र जनमेजयने नागोंका विध्वंस किया। --इतिहाससे सिद्ध होता है कि नागोंका एक प्राचीन केन्द्र विदिशा था। ईसा की द्वितीय शताब्दीमें नागोंकी एक शाखाने पद्मावती (वर्तमान पदम पवाया, मध्यप्रदेश) में अपना राज्य जमा लिया। दूसरी शाखाने कान्तिपुरी ( वर्तमान कान्तित, जिला मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश ) को अपनी राजधानी बनाया। यह स्थान वाराणसीके निकट है। यह पता नहीं चलता कि नाग सरदार भवनागका शासन वाराणसीपर भी था या नहीं। नागोंकी तीसरी शाखाने मथुरापर अधिकार कर लिया।