________________
११२
भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ पौष कृष्णा एकादशीको भगवानका जन्म हआ। इन्द्रों और देवोंने वाराणसीमें आकर भगवान्को अपने ऐरावत हाथीपर सुशोभित रत्नमय सिंहासनपर विराजमान किया। बालक भगवान्को लेकर वे सुमेरु पर्वतके पाण्डुक वनमें स्थित पाण्डुकशिलापर ले गये और वहाँ क्षीरसागरके जलसे उनका अभिषेक किया। इन्द्राणीने प्रभुका शृंगार किया, वस्त्रालंकार पहनाये । तब सौधर्मेन्द्र भगवान्को लेकर अन्य इन्द्रों और देवोंके साथ वाराणसी आया और महाराज अश्वसेनके महालयमें उसने भक्ति-विह्वल होकर ताण्डव नृत्य किया। फिर सब लोग अपने-अपने स्थानों पर चले गये। पावकुमार द्वारा युद्ध - .. राजा अश्वसेन एक दिन दरबार में बैठे हुए थे। उस समय राज्यसभा में भूटान नरेश, राणा, हूण, जाट, गुर्जर, खस, तोमर, भट्ट, चट्ट, हरिवंशी, दहिया, सूर्यवंशी, मुण्डिय, मौर्य, इक्ष्वाकु वंशी, सोमवंशी, बुद्धराज, कुलिकछिन्द, पमार, राठौड़, सोलंकी, चौहान, प्रतिहार डुण्डुराज, कलचुरी, शकविजेता चन्देला, भट्टिय, चावण्ड, मल्ल, टक्क, कच्छनरेश, सिन्धुपति, कुडुक्क तथा अन्य अनेक नरेश और सामन्त यथास्थान बैठे हुए थे।
. तभी कुशस्थल ( कन्नौज़ ) से एक दूत आया। उसने समाचार दिया–'कुशस्थलके राजा शक्रवर्माने अपने बड़े पुत्र रविकीर्ति ( रविवर्मा ) का राजतिलक करके मुनि-दीक्षा ले ली है। रविवर्मा आपकी अधीनता स्वीकार करते हैं।' शक्रवर्मा महाराज अश्वसेनके श्वसूर थे। उनकी दीक्षाके समाचारसे अश्वसेनको मोहवश दुःख हुआ।
___ महाराजके स्वस्थ होनेपर दूतने पुनः निवेदन किया-“देव ! यमुनाके तटपर एक शक्तिशाली यवन नरेशका राज्य है। उसने महाराज रविकीतिसे उनकी सुन्दरी कन्या माँगी थी। न देनेपर उसने आक्रमणकी धमकी दी थी। महाराज रविकीर्तिने जब अपनी कन्या देनेसे इनकार कर दिया तो यवनराजने कुशस्थलपर बड़े वेगसे आक्रमण कर दिया है। कुशस्थल नरेश आपसे सैनिक सहायताकी प्रार्थना करते हैं।"
___ महाराज अश्वसेन अपनी विशाल सेना लेकर कुशस्थल नगरके लिए चलनेको तैयार हुए। यह समाचार पार्श्वकुमारने भी सुना। उन्होंने अपने पितासे युद्ध में जाने की अनुमति मांगी। पिताने उन्हें सहर्ष अनुमति दे दी। पार्श्वकुमार सेना लेकर कुशस्थल पहुंचे। रविवर्माने उनका प्रेम पूर्वक स्वागत किया।
दोनों ओरकी सेनाओंमें भीषण युद्ध हुआ। पार्श्वकुमारने युद्ध में यवनराजको बन्दी बना लिया। पार्श्वकूमारकी जयध्वनिसे आकाश गूंजने लगा। कुमारके अतूल बल-विक्रमको देखकर रविकीर्ति नरेश अत्यन्त प्रसन्न हुआ। उसने अपनी सुन्दरी कन्या प्रभावतीके साथ विवाहके लिए पार्श्वकुमारसे निवेदन किया। किन्तु घटनाचक्र ऐसा घूमा कि पार्श्वकुमारका विवाह नहीं हो सका।
१. आचार्य पद्मकीति द्वारा रचित 'पासणाह चरिउ' ९।७-८ । २. पार्श्वनाथ द्वारा युद्ध करने की यह घटना आचार्य पद्मकीर्ति द्वारा रचित 'पासणाह चरिउ' ( सन्धि ९
से १३ तक ) के आधारपर दी गयी है। उत्तरपुराण, तिलोयपण्णत्ति आदि अन्य दिगम्बर ग्रन्थोंमें 1इस घटनाका कोई उल्लेख नहीं प्राप्त होता ।