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काशी (वाराणसी)
जैन तीर्थ
काशी ( वाराणसी ) जैनोंका प्रसिद्ध तीर्थ है। तीर्थक्षेत्रके रूपमें इसकी प्रसिद्धि सातवें तीर्थंकर भगवान् सुपाश्वनाथके कालसे ही हो गयी थी। जब यहाँ उसके गर्भ, जन्म,तप और केवलज्ञान कल्याणक मनाये गये उस समय काशीके नरेश महाराज सुप्रतिष्ठ थे। पृथ्वी उनकी महारानी थी। ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशीके दिन सुपार्श्वकुमार उनके गर्भसे उत्पन्न हुए। 'तिलोयपण्णत्ति' ग्रन्थमें उनके जन्मके सम्बन्धमें लिखा है
वाराणसीए पुडवी सुपइठेहि सुपास देवो य।
जेठुस्स सुक्कवार सिदिणम्मि जादो विसाहाए । ४।५३२ अर्थात् सुपार्श्वदेव वाराणसी नगरीमें माता पृथ्वी और पिता सुप्रतिष्ठसे ज्येष्ठ शुक्ला १२ के दिन विशाखा नक्षत्रमें उत्पन्न हुए। - इसके पश्चात् तेईसवें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथके गर्भ, जन्म और दीक्षा कल्याणक इसी प्रकार धूमधाम और उल्लासके साथ मनाये गये। .. तिलोयपण्णत्ति' में उनके जन्मके सम्बन्धमें इस प्रकार विवरण मिलता है
हयसेण वम्मिलाहिं जादो हि वाणारसीए पासजिणो।
पूसस्स बहुल एक्कारसिए रिक्खे विसाहाए । ४।५४८ ।। अर्थात्, भगवान् पार्श्वनाथ वाराणसी नगरीमें पिता अश्वसेन और माता वम्मिला (वामा) से पौष कृष्णा एकादशीके दिन विशाखा नक्षत्रमें उत्पन्न हुए।
पाश्र्वनाथका जन्म
काशी देशमें वाराणसी नामक एक नगरी थी। महाराज अश्वसेन वहाँके राजा थे।वामादेवी उनकी महारानी थीं। वे काश्यपगोत्री उग्रवंशी थे। वैशाख कृष्णा द्वितीयाको शुभ नक्षत्रमें पार्श्वनाथका जीव, जो वैजयन्त नामक स्वर्गमें देव था, आयु पूर्ण होनेपर वामादेवीके गर्भ में आया। इन्द्रकी आज्ञासे यक्षपति कुबेरने गर्भावतरणके छह माह पूर्वसे रत्नवर्षा प्रारम्भ कर दी। रत्नवर्षाका यह कार्य भगवान्के जन्म होने तक चलता रहा। इन्द्र और देवोंने वाराणसी नगरीमें पहुंचकर त्रिलोकीनाथ भगवान्का गर्भ कल्याणक उत्सव बड़ी भक्तिके साथ मनाया। भगवान्के पुण्य प्रभावसे महाराज अश्वसेनके प्रासादोंमें, नगरमें और काशी राज्यमें सुख-समृद्धि में निरन्तर वृद्धि होने लगी।
१. उत्तरपुराण ७३।७५ के अनुसार महारानीका नाम ब्राह्मी था। आचार्य पद्मकीति कृत 'पासणाह चरिउ'
में उन्हें कुशस्थल नरेश शक्रवर्माकी पुत्री बताया है। 'पासणाह चरिउ' के अनुसार उत्तरपुराणमें प्राणत । वादिराजसूरि कृत पार्श्वनाथ चरितमें आनत स्वर्ग ।