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________________ १०९ उत्तरप्रदेशक दिगम्बर जैन तीर्थ मन्दिरके सामने ही एक जैन धर्मशाला है, जिसमें छह कमरे हैं। एक दोमंजिली जैन धर्मशाला बस्तीके दूसरे सिरेपर बनी हुई है। यह बहुत विशाल है। इसमें पक्की पाण्डुक शिला बनी हुई है, जो मेलेके अवसरपर भगवान्के अभिषेकके लिए काममें आती है। पौराणिक इतिहास कम्पिला भारतको अत्यन्त प्राचीन सांस्कृतिक नगरी है। प्राचीन भारतमें भगवान् ऋषभदेवने ५२ जनपदोंकी रचना की थी। भगवान् महावीरसे पूर्वसे १६ महाजनपदोंका भी उल्लेख जैन और बौद्ध साहित्यमें मिलता है। उन दोनोंमें पंचाल जनपद भी था। महाभारत युद्धसे पूर्व सम्पूर्ण पंचाल जनपदपर राजा द्रुपदका आधिपत्य था। उनकी स्त्रीका नाम भोगवती ( हरिवंश पुराण ४५।१२० ) अथवा दृढ़रथा ( उत्तर पुराण ७२२२६२ ) था। द्रौपदी उनकी अनुपम सुन्दरी पुत्री थी। बादमें यह अर्जुनको विवाही गयी। उस समय अखण्ड पंचालकी राजधानी कम्पिला थी। इस कालमें राजमहलसे गंगा नदी तक एक कलापूर्ण सुरंग बनायी गयी, जिसमें ८० बड़े द्वार और ६४ छोटे द्वार थे। कहते हैं, उसमें एक ऐसी मशीन लगी हुई थी जिसमें एक कीला ठोकते ही सभी द्वार स्वतः बन्द हो जाते थे। अनन्तर उत्तर पंचालपर द्रोणाचार्यका आधिपत्य हो गया था। दक्षिण पंचाल द्रुपदके शासनमें रहा। उत्तर पंचालकी राजधानी अहिच्छत्र थी और दक्षिणकी कम्पिला। पंचालको इन दोनों भागोंमें गंगा विभाजित करती थी। उस समय कम्पिला राज्यकी सीमा गंगासे लेकर दक्षिणमें चर्मण्वती (चम्बल) तक थी। पंचालके दोनों भागोंकी राजधानियोंमें कम्पिला अधिक प्राचीन है। ___ साहित्यमें इस नगरीके कई नाम मिलते हैं-कम्पिला, काम्पिल्य। कहीं-कहीं इसका नाम भोगपुर और माकन्दी भी आया है। कम्पिला प्राचीनकालमें अत्यन्त समृद्ध और विशाल नगरी थी। इसकी विशालताका अनुमान इसीसे किया जा सकता है कि 'काशिकावृत्ति' में कम्पिला और संकाश्यको एक नगरके दो भाग बताया है। इसी प्रकार 'बृहज्जातक' की महीधर-टीकामें कपित्थिकको कम्पिलाका सन्निवेश बताया है। चीनी यात्री फाह्यानने संकाश्यको और उसके पश्चात् ह्वेन्त्सांगने कपित्थिकको कम्पिलाका सन्निवेश बताया है। अर्थात् कम्पिला और संकाश्य दोनों मिलकर एक नगर बनाते थे। अथवा संकाश्य और कपित्थिक कम्पिलाके सन्निवेश थे। आज तो संकिशा (संकाश्य ) और कैथिया ( कपित्थिक ) कम्पिलासे बीस-बाईस मील दूर हैं। प्रसिद्ध स्थान अथवा केन्द्र होनेके कारण यहाँ अनेक महत्त्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक घटनाएँ घटी हैं। तीर्थंकरोंके कल्याणकों और विहारके अतिरिक्त यहाँ हरिषेण चक्रवर्ती भी हुए, जिनके पिता पद्मनाभने नगरके मनोहर उद्यानमें अनन्तवीर्य जिनेन्द्रसे मुनि-दीक्षा ली और दीक्षावनमें ही तपस्या कर केवलज्ञान प्राप्त किया। आचार्य रविषेणने हरिषेण चक्रवर्तीके सम्बन्धमें लिखा है कि-"काम्पिल्य नगरमें इक्ष्वाकुवंशी राजा हरिकेतु और रानी वप्राके हरिषेण नामका दसवाँ प्रसिद्ध चक्रवर्ती हुआ। उसने अपने राज्यकी समस्त पृथ्वीको जिन-प्रतिमाओंसे अलंकृत किया था तथा भगवान् मुनि सुव्रतनाथके तीर्थमें सिद्धपद प्राप्त किया था। १. भगवती सूत्र । २. अंगुत्तर निकाय, विनयपिटक । ३. पद्मपुराण २०११८६-८७ ।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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