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________________ ०१०८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ इस मन्दिरमें भगवान् विमलनाथकी मूलनायक प्रतिमा है। इसका वर्ण खाकी, अवगाहना दो फुट, पाषाणकी पद्मासन मुद्रामें है। छातीपर श्रीवत्स और हथेलीपर श्रीवृक्षका चिह्न है। पहले यह मन्दिरके गर्भ भागमें थी। वहाँसे उठाकर अब इसे ऊपर संगमरमरकी नयी वेदीमें विराजमान कर दिया है। प्रतिमापर लेख है किन्तु पढ़ा नहीं जाता है, काफी घिस गया है। भक्त जनता इसे चतुर्थ कालकी मानती है, किन्तु इसकी बनावट शैली और पाषाण आदिका सूक्ष्म निरीक्षण करनेपर तथा श्रीवत्ससे लगता है कि यह गुप्तकालीन है। प्रतिमाका भावांकन अत्यन्त सजीव है। मद्राकी सहज मुसकान भी समूचे परिवेशमें उभरते हुए विरागको दबा नहीं पायो । हा, विरागमें मुसकान और भी अधिक प्रभावक हो गयी है, मानो वह कह रही है कि संसार और भोगोंका परित्याग मेरे लिए हँसी-खेल है । मैं लिप्त ही कब हुआ था इनमें ? - यह प्रतिमा गंगामें से निकाली गयी थी। पानीमें पड़े रहनेसे इसके मुख, पेट और छातीपर दाग पड़ गये हैं। मुख्य वेदीपर ५ पाषाणकी और १३ धातुकी प्रतिमाएं हैं। एक पाषाण-प्रतिमा जिसका वर्ण भूरा है, अवगाहना १५ इंच है। यह पद्मासन मुद्रामें है और काफी प्राचीन प्रतीत होती है । इसपर कोई लांछन या चिह्न नहीं है। परम्परासे इसे भगवान् अनन्तनाथकी प्रतिमा कहा जाता है। ___दो पाषाण-प्रतिमाएँ आठ-आठ इंचकी हैं। एक भूरे पाषाणकी है और दूसरी कृष्ण पाषाणकी । लेख और लांछन बिलकुल घिस चुके हैं । एक प्रतिमा महावीर स्वामीकी और दूसरी ऋषभदेवकी कही जाती है। एक अन्य पाषाण-प्रतिमा सं. २००८ की है। बायीं ओरकी वेदीमें बादामी या खाकी वर्णकी एक पद्मासन-प्रतिमा है। इसकी अवगाहना एक फुट दस इंच है। इसके ऊपर लेख या लांछन कुछ नहीं है। परम्परासे यह महावीर स्वामीकी कही जाती है। इस वेदीपर दो प्रतिमाएं वि. संवत् १५४८ की और तीसरी कृष्ण वर्ण प्रतिमा वि. संवत् १९६० की है। दायीं ओर बरामदेमें एक चबूतरे पर चार चरण-युगल स्थापित हैं । सहनके पास बरामदेमें भी एक वेदी है, जिसमें श्वेत पाषाणकी एक पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसका प्रतिष्ठा-काल वीर संवत् २४८८ है। बायीं ओरके बरामदेमें एक सर्वतोभद्रिका प्रतिमा रखी हुई है। बीचमें-से इसके दो भाग हो गये हैं। दोनों भागोंमें दो-दो प्रतिमाएं हैं। सभी खण्डित अवस्थामें हैं। पाषाण खण्ड इस प्रकार हुए हैं कि एक प्रतिमाकी बाँह दूसरे भागमें रह गयी है। पाषाण भूरे वर्णका है। ये प्रतिमाएं पद्मासन मुद्रामें हैं ? इनकी अवगाहना ढाई फुट है। लांछन और लेख नहीं हैं। छातीपर श्रीवत्स भी नहीं है। ऐसा लगता है कि यह प्रतिमा कुषाण-कालको है। मथुराम प्राप्त सर्वतोभद्रिका प्रतिमाओंसे इसकी रचना-शैलीमें बहुत साम्य दिखाई पड़ता है। उक्त प्रतिमाके बगल में एक और खण्डित प्रतिमा रखी हुई है। यह खड़गासन मुद्रामें है। घुटनोंसे चरणों तकका भाग नहीं है। इसका वर्तमान आकार छह इंचका है। यह भी सर्वतोभद्रिका प्रतिमाकी तरह प्राचीन लगती है। मन्दिरका शिखर विशाल है। उसमें एक लम्बा-चौड़ा सहन है, जिसके तीन ओर दालान हैं और एक ओर गर्भगृह है।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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