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उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
१०७ यौवन अवस्था प्राप्त होनेपर पिताने विमलनाथका विवाह कर दिया और राज्याभिषेक कर मुनिदीक्षा धारण कर ली। विमलनाथ राज्य-शासन करने लगे। एक दिन वे प्रकृतिको शोभा देख रहे थे। शरद् ऋतुका सुहावना मौसम था। आकाशमें कहीं-कहीं बादल थे। किन्तु कुछ देर बाद उन्होंने देखा, बादल विलीन हो गये। इस साधारण-सी घटनाने विमलप्रभुको बहुत प्रभावित किया। वे सोचने लगे-संसारमें सब भौतिक पदार्थ और रूप क्षणभंगुर हैं। इससे उन्हें आत्म-कल्याणकी प्रेरणा मिली और कम्पिलाके बाह्य उद्यान में जाकर उ
ले ली। 'तिलोयपण्णत्ति'में इस सम्बन्धमें उल्लेख है
माघस्स सिद चउत्थी अवरण्हे तह सहेदुगम्मि वणे । ___ उत्तरभद्दपदाणं विमलो णिक्कमइ तदिय उववासे ।।४।६५६
अर्थात् विमलनाथ स्वामीने माघ शुक्ला चतुर्थीको अपराह्ण कालमें उत्तर भाद्रपद-नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें तृतीय उपवासके साथ दीक्षा ग्रहण की।
यह सहेतुक वन कम्पिलाका बाह्य उद्यान या वन था। देवों और इन्द्रोंने यहाँ आकर भगवान का दीक्षा-कल्याणक महोत्सव मनाया।
पश्चात् स्वामी विमलनाथ अन्य क्षेत्रोंमें विहार करते रहे। तीन वर्ष पश्चात् वे अपने दीक्षा-वनमें पधारे और दो दिनके उपवासका नियम लेकर ध्यानारूढ़ हो गये और वहीं उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। 'तिलोयपण्णत्ति'में इससे सम्बन्धित विवरण निम्न भाँति है
पुस्से सिद दसमीए अवरण्हे तह य उत्तरासाढे ।
विमलजिणिदे जादं अणतणाणं सहेदुगम्मि वणे ।। ४।६९० अर्थात् , जिनेन्द्र विमलनाथके पौष शुक्ला दशमीको अपराह्न कालमें उत्तराषाढ़ा नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें अनन्तज्ञान ( केवलज्ञान ) उत्पन्न हुआ।
कम्पिला में एक अघातिया टीला है। यह अनुश्रुति है कि यहींपर भगवान् विमलनाथने घातिया रहित होकर अर्थात् घातिया कर्मों का नाश कर केवलज्ञान प्राप्त किया था। यह टोला किसी प्राचीन जैनमन्दिरका ध्वंसावशेष है। खुदाई होनेपर यहाँ कभी-कभी जैन-मूर्तियाँ मिल जाती हैं।
इस प्रकार कम्पिलामें भगवान् विमलनाथके गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान-ये चार कल्याणक हुए थे। अतः यह स्थान उनके समयसे ही तीर्थक्षेत्र माना जाता है।
पंचाल जनपदमें भगवान आदिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीरके विहारका उल्लेख मिलता है। यहाँ इन तीर्थंकरोंका समवसरण आया था। प्राचीन मन्दिर
इस तीर्थक्षेत्रको मान्यता अति प्राचीन कालसे है। इसलिए प्रागैतिहासिक कालमें यहाँ भगवान् विमलनाथका कोई मन्दिर अवश्य रहा होगा। चैत्य-निर्माणकी परम्परा अत्यन्त प्राचीन है, किन्तु प्रागैतिहासिक कालका कोई मन्दिर वर्तमानमें उपलब्ध नहीं है। सम्भव है, अगर यहां ऐसा मन्दिर कभी रहा हो तो वह नष्ट हो गया होगा। फिर भी वर्तमानमें एक बहुत प्राचीन मन्दिर बस्तीके बीच पश्चिमोत्तर भागमें विद्यमान है। इसका निर्माण-काल विक्रम सं. ५४९ (ईसवी सन् ४९२) बताया जाता है। अर्थात् यह मन्दिर लगभग डेढ़ हजार वर्ष प्राचीन है। यह मन्दिर धरातलसे लगभग १० फुट ऊँची चौकीपर बनाया गया है।