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________________ १०४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ग्रामीण जनतामें प्रचलित है जिसके अनुसार अपने अज्ञातवासमें पाण्डवोंने इस नगरके एक ब्राह्मण के घर वास किया था। उस समय भीमने अपनी यह गदा वहाँ स्थापित कर दी थी। अस्तु । - यहाँ एक जैनमूर्तिका शीर्ष भी मिला था जो क्षेत्रके फाटकके बाहर विद्यमान है। पहले इस टीलेके नीचे शिवगंगा नदी बहती थी। अब तो उसकी रेखा मात्र अवशिष्ट है। . कहा जाता है, अपने वैभव-कालमें अहिच्छत्र नगर ४८ मीलकी परिधिमें था। आजके आँवला. वजीरगंज, रहदइया, जहाँ अनेकों प्राचीन मूर्तियाँ और सिक्के प्राप्त हए हैं, पहले इसी नगरमें सम्मिलित थे। इस नगरका मुख्य दरवाजा पश्चिममें वर्तमान सँपनी बताया जाता है। यहाँके भग्नावशेषोंमें १८ इंच तककी ईंटें मिलती हैं। क्षेत्र-दर्शन सड़कसे कुछ फुट ऊँची चौकी पर क्षेत्रका मुख्य द्वार है। फाटकके बायीं ओर बाहर उस भग्न मूतिके शीर्षके दर्शन होते हैं, जो किलेसे लाकर यहाँ दीवारमें एक आलेमें रख दिया गया है। भीतर एक विशाल धर्मशाला है । बीचमें एक पक्का कुआँ है। ___ बायीं ओर मन्दिरका द्वार है। द्वारमें प्रवेश करते ही क्षेत्रका कार्यालय मिलता है। फिर एक लम्बा-चौड़ा सहन है। सामने बायीं ओर एक छोटे गर्भ-गृहमें वेदी है, जिसमें तिखालवाले बाबा (भगवान् पार्श्वनाथकी प्रतिमा ) विराजमान है। पार्श्वनाथकी यह सातिशय प्रतिमा हरितपन्नाकी पद्मासन मुद्रामें विराजमान है। इसकी अवगाहना ९॥ इंच है। प्रतिमा अत्यन्त सौम्य और प्रभावक है। इस प्रतिमाके पादपीठ पर कोई लेख नहीं है। सर्पका लांछन अवश्य अंकित है और सिरपर फण-मण्डल है। वेदीके नीचे सामनेवाले भागमें दो सिंह आमने-सामने मुख किये हुए बैठे हैं। प्रतिमाके आगे सौम्य चरण स्थापित हैं जिनका आकार १ फुट ५॥ इंच है। उनपर निम्नलिखित लेख उत्कीर्ण है श्रीमलसंघे नन्द्याम्नाये बलात्कारगणे कुन्दकुन्दाचार्यान्वये दिगम्बराम्नाये अहिच्छत्रनगरे श्री पार्वजिनचरणा प्रतिष्ठापिताः । श्रीरस्तु । प्रतिमाका निर्माण-काल १०-११वीं शताब्दी अनुमान किया जाता है। इस वेदीके ऊपर लघु शिखर है। इस वेदीसे आगे दायीं ओर दूसरे कमरेकी वेदीमें मूलनायक पार्श्वनाथकी श्याम वर्ण १ फुट १० इंच अवगाहनाकी अत्यन्त मनोहर पद्मासन प्रतिमा है। प्रतिमाके सिरपर सप्त फणावलीका मण्डल है। भामण्डलके स्थानपर कमलकी सात लम्बायमान पत्तियों और कलीका अंकन जितना कलापूर्ण है, उतना ही अलंकरणमय है। इससे मूर्तिकी सज्जागत विशेषतामें अभिवृद्धि हुई है। अलंकरणका यह रूप अद्भुत और अदृष्टपूर्व है। मूर्तिके नीचे सिंहासनपीठके सामनेवाले भागमें २४ तीर्थंकर प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं। इस प्रतिमाके बायीं ओर श्वेत पाषाणकी १० इंच ऊँची पद्मासन पार्श्वनाथ प्रतिमा है। इससे आगे दायीं ओर एक गर्भगृहमें दो वेदियाँ हैं, जिनमें आधुनिक प्रतिमाएँ विराजमान हैं। उनमें विशेष उल्लेख योग्य कोई प्रतिमा नहीं है। अन्तिम पाँचवीं वेदीमें तीन प्रतिमाएँ विशेष रूपसे उल्लेखनीय हैं। लगभग २० वर्ष पहले बूंदी ( राजस्थान ) में भूगर्भसे कुछ प्रतिमाएँ प्राप्त हुई थीं। उनमें से तीन प्रतिमाएं लाकर यहाँ
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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