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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १०१ यहाँकी उत्तराभिधाना बावड़ीके जलमें स्नान करनेसे कुष्ठ रोग दूर हो जाता है। इसी प्रकार वहाँके कुएँका जल भी बहुत आरोग्यप्रद बताया है। यहाँके उपवनमें अनेक बहुमूल्य औषधियाँ उत्पन्न होती हैं। जैसे-जयन्ती, नागदमनी, सहदेवी, अपराजिता, सकली, स्वर्णशिला, मूसली, सोमली, रविभक्ता, निर्विषी, मोरशिखा, विशल्या आदि। पुरातत्त्व एवं इतिहास यह नगरी भारतकी प्राचीनतम नगरियोंमें से एक है। भगवान् ऋषभदेवने जिन ५२ जनपदों की रचना की थी, उसमें एक पंचाल भी था । परवर्तीकालमें पंचाल जनपद दो भागोंमें विभक्त हो गया-उत्तर पंचाल और दक्षिण पंचाल । पहले सम्पूर्ण पंचालकी ही राजधानी अहिच्छत्र थी, किन्तु विभाजन होने पर उत्तर पंचालकी राजधानी अहिच्छत्र रही और दक्षिण पंचालकी कम्पिला। जैन साहित्यमें पंचालके प्रायः इन दो भागोंका उल्लेख मिलता है। महाभारत कालमें अहिच्छत्रके शासक द्रोण थे और कम्पिलाके द्रुपद। कहीं-कहीं इस नगरीका नाम संख्यावती और अहिच्छत्रा भी मिलता है । कौशाम्बीके निकट पभोसा क्षेत्रकी गुफामें स्थित एक शिलालेखमें इसका नाम अधिचक्रा भी मिला है। वैदिक साहित्यमें इन नामोंके अतिरिक्त परिचक्रा, छत्रवती और अहिक्षेत्र भी मिलते हैं। सम्भवतः विभिन्न कालोंमें ये विभिन्न नाम प्रचलित रहे हैं । किन्तु दूसरी शताब्दीसे लगभग छठी शताब्दी तक अहिच्छत्रा नाम अधिक प्रचलित रहा। यहाँकी खुदाईमें दूसरी शताब्दीकी एक यक्ष-प्रतिमा तथा मिट्टीकी गुप्तकालीन मोहर मिली थी। उन दोनोंपर अहिच्छत्रा नाम मिलता है। नगरीका यह 'अहिच्छत्रा' नाम सर्प द्वारा छत्र लगानेके कारण पड़ा, इसमें जैन, वैदिक और बौद्ध तीनों ही धर्म सहमत हैं। किन्तु इस सम्बन्धमें जो कथानक दिये हैं, उनमें जैन कथानक अनेक कारणोंसे अधिक प्रामाणिक प्रतीत होता है। भगवान् पार्श्वनाथ ऐतिहासिक महापुरुष थे। उनका प्रभाव तत्कालीन सम्पूर्ण भारत-विशेषतः उत्तर और पूर्व भारतमें अत्यधिक था। वैदिक साहित्य भी उनके प्रभावसे अछूता नहीं रहा। उनके प्रभावके कारण वैदिक ऋषियोंकी चिन्तनधारा बदल गयी। उनके चिन्तन की दिशा हिंसामूलक यज्ञों और क्रियाकाण्डोंसे हटकर अध्यात्मवादी उपनिषदोंकी रचनाकी ओर मुड़ गयी। भगवान् पार्श्वनाथ सम्बन्धी उपर्युक्त घटनाकी गूंज उस कालमें दक्षिण भारत तक पहुंची थी। इस बातका समर्थन कल्लुरगुड्डु (जिला सीमौगा, मैसूर प्रान्त-सन् ११२१ ) में उपलब्ध उस शिलालेखसे भी होता है जिसमें गंग वंशावली दी गयी है। उसमें उल्लेख है कि जब भगवान् पार्श्वनाथको अहिच्छत्रमें केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई थी, उस समय यहाँ प्रियबन्धु राजा राज्य करता था। वह भगवान पार्श्वनाथके दर्शन करने अहिच्छेत्र गया। १. हरिवंशकेतु नेमी-1 श्वर-तीर्थं वर्तिसुत्तमिरे गंग कुळां वर-भानु पुट्टिदंभा-। सुर-तेजं विष्णुगुप्त नेम्बनृपाळम् ॥ आ-धराधिनाथं साम्राज्य-पदवियं कैकोण्डहिच्छत्र-पुरदोलु सुखमिर्दु नेमितीर्थंकर परमदेव-निर्वाणकाळदोल ऐन्द्रध्वजवेम्ब पूजेयं माड़े देवेन्द्रनोसेदु । अनुपमदरावतमं । मनोनुरागदोळे विष्णुगुप्तंगित्तम् । जिन-पूजेयिन्दे मुक्तियः । ननयमं पडेगुमेन्दोडुळिदुदु पिरिदे ।।......
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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