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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ नदी भी इस लोकमें तीर्थ मानी जाने लगी। भगीरथ गंगा नदीके तटपर उत्कृष्ट तप करके वहींसे निर्वाणको प्राप्त हुआ। जैन शास्त्रोंमें कहीं भी भगीरथके निर्वाण-स्थानका नाम नहीं मिलता, केवल गंगा-तट कह दिया गया है। दीक्षा-स्थानका नाम कैलाश अवश्य मिलता है। कारण यही है कि यह सारा हिमालय प्रदेश ही कैलाश या अष्टापद कहलाता था। अतः दुबारा नाम न देकर केवल गंगा-तट ही लिख दिया। कहीं कैलाश, कहीं अष्टापद और कहीं हिमवान् पर्वतका नाम निर्वाण-क्षेत्रों में देनेका रहस्य यही है कि वस्तुतः ये तीनों नाम पर्यायवाची रहे हैं। सम्पूर्ण हिमालय-प्रदेश ही मुनिजनोंकी पावन तपोभूमि रहा है, जहाँ असंख्य मुनियोंको केवलज्ञान और निर्वाणकी प्राप्ति हुई। डिमरी जाति ___ उपर्युक्त परिप्रेक्ष्यमें यह धारणा निराधार नहीं प्रतीत होती कि प्राचीन कालमें उत्तराखण्डके इस विस्तृत पर्वत प्रदेशमें जैन मन्दिरोंका बाहुल्य था। नीती घाटी या अलमोड़ा मार्गसे कैलाशकी ओर जानेपर मार्गमें ध्वस्त मन्दिरोंके अवशेष और जैन मूर्तियाँ अब भी मिलती हैं। सम्भवतः कुछ शताब्दियों पूर्व तक इस प्रदेशमें जैनधर्मके अनुयायियोंकी भी संख्या विशाल रही होगी। शनैःशनैः प्रचार और सम्पर्ककी शिथिलता अथवा अन्य ऐतिहासिक कारणोंसे ये लोग जैनधर्मको छोड़कर हिन्दूधर्म पालने लगे। ऐसी एक जाति इस प्रदेशमें अब भी मिलती है जिसे डिमरी कहा जाता है। डिमरी शब्द सम्भवतः दिगम्बरीका पहाड़ी अपभ्रंश है। इनके जीवन-मरण आदि जातीय संस्कार यहाँके लोगोंसे पृथक् हैं तथा जैनोंसे बहुत मिलते-जुलते हैं। बदरीनाथका मन्दिर प्रारम्भसे डिमरी जातिके अधिकारमें रहा है। ऐसी भी किंवदन्ती है कि प्राचीन कालमें बदरीनाथ और केदारनाथ धामोंके पुजारी डिमरी ही थे। जबसे आद्य शंकराचार्यने इस मन्दिरपर अधिकार किया, तबसे इतना ही अन्तर पड़ा है कि वहाँ दो पुजारी रहने लगे हैं-एक डिमरी और दूसरा दाक्षिणात्य । शीतकालके प्रारम्भमें बदरीनाथ मन्दिरकी उत्सव मूर्तिको डिमरी जातिका पुजारी ही जोशी मठ ले जाता है। बदरीनाथके दर्शन बदरीनाथकी मूर्ति वस्तुतः भगवान् ऋषभदेवकी ध्यानमुद्रावाली पद्मासन मूर्ति है। यह वास्तवमें दो भुजावाली है, बाकी दो भुजाएँ नकली लगायी हुई हैं। न्हवन करते समय मन्दिरके पट बन्द रखे जाते हैं । न्हवनके पश्चात् इसे वस्त्रालंकारसे अलंकृत कर दिया जाता है । इसके पश्चात् पट खोले जाते हैं और तब 'निर्वाण-दर्शन' कराया जाता है। बोलियाँ लेनेपर कुछ लोगोंको न्हवनके समय दिगम्बर वीतराग रूपके दर्शन होते हैं। मार्ग कैलाश जानेके लिए निम्नलिखित सुविधाजनक मार्ग हैं.१-पूर्वोत्तर रेलवेके टनकपुर स्टेशनसे मोटर बस द्वारा पिथौरागढ़ (जिला अलमोड़ा) जाकर वहाँसे पैदल यात्रा द्वारा लीपू नामक दर्रा पार करके जानेवाला मार्ग। २-पूर्वोत्तर रेलवेके काठगोदाम स्टेशनसे मोटर बस द्वारा कपकोट ( अलमोड़ा ) जाकर पैदल यात्रा करते हुए ऊँटा, जयन्ती तथा कुंगरी-बिंगरी घाटियोंको पार करके जानेवाला मार्ग। ३-उत्तर रेलवेके ऋषिकेश स्टेशनसे मोटर बस द्वारा जोशीमठ जाकर वहाँसे पैदल यात्रा करते हुए नीती घाटीको पार करके जानेवाला मार्ग ।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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