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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ ८३ धार्मिक मेलोंमें अपना प्रमुख स्थान रखता है। सरकारकी ओरसे मेलेके लिए बहुत सी विशेष सुविधाएँ भी दी जाती हैं । इस भूमिपर शताब्दियोंसे जैनोंका अधिकार चला आ रहा है । सन् १९६८ में एक व्यक्तिने इस भूमिपर बलात् अधिकार करनेका प्रयत्न किया था। किन्तु जैनोंने अपने परम्परागत शान्तिपूर्ण और अहिंसात्मक ढंगसे इसका प्रतिरोध किया। मामला बढ़ता गया। फलतः अपने धार्मिक अधिकारोंकी रक्षाके लिए सैकड़ों जैन बन्धुओंने कारावास भी स्वीकार किया। दर्शनीय जिन-मन्दिर __ सन् १९५१ में यहाँके प्रसिद्ध उद्योगपति सेठ छदामीलालजीने एक पारमार्थिक ट्रस्टकी स्थापना की और वेदी-प्रतिष्ठाका आयोजन किया। उसके साथ औद्योगिक प्रदर्शनी और अन्य कई सांस्कृतिक आयोजन भी रखे गये। इस समय आचार्य सूर्यसागरजी तथा क्षुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णी भी पधारे थे। इस अवसरपर सेठ छदामीलाल जी ने बीस लाख रुपयोंसे 'श्री छदामीलाल जैन पार मार्थिक ट्रस्ट' नामसे एक ट्रस्टकी स्थापनाकी घोषणा भी की। इसी ट्रस्टकी ओरसे जैन नगरमें एक विशाल और कलापूर्ण जैन मन्दिरका निर्माण किया गया। सम्पूर्ण मन्दिर संगमरमरका बना हुआ है । इसमें खुली हुई वेदीमें भगवान् महावीरकी सात फुट अवगाहनावाली श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा कमलासनपर विराजमान है। यह मन्दिर मोती पार्क में बना हुआ है। मन्दिरके दोनों पार्यों में सरस्वती देवी जैन धर्मशाला, कानजी स्वामी पुस्तकालय, मोतीलाल जैन पारमार्थिक औषधालयके भवन बने हुए हैं। मन्दिरके पृष्ठ भागमें पुष्प-वाटिका और जैन म्यूजियम बना है। म्यूजियमके सामने तीस फुट ऊँची बाहुबली स्वामीकी संगमरमरकी प्रतिमा स्थापित करनेकी योजना है। यह प्रतिमा निर्माणाधीन है। ट्रस्टकी ओरसे छदामीलाल जैन डिग्री कॉलेज भी चल रहा है । मन्दिर दर्शनीय है। मरसलगंज अतिशय क्षेत्र श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र ऋषभनगर मरसलगंज उत्तर प्रदेशके आगरा जिले में फ़ीरोज़ाबादसे २२ किलोमीटर दूर है। यहाँ अब जैनोंका कोई घर नहीं है । किन्तु इसके पास ही, लगभग चार फलाँगपर फरिहा नामक एक कस्बा है, जहाँ जैनोंके ३५ घर हैं। कहा जाता है, पहले मरसलगंजमें जैनोंकी अच्छी आबादी थी, लगभग दो सौ जैन घर थे। उस समय यह नगर धन-धान्य पूर्ण था और यहाँ एक छोटा-सा जैन मन्दिर बना हआ था। पन्द्रहवीं शताब्दीमें बाबा ऋषभदास नामक एक क्षुल्लक यहाँ पधारे। ये दक्षिणके रहनेवाले ब्राह्मण थे, किन्तु जैन धर्मके कट्टर अनुयायी थे। ये मन्त्र-तन्त्रके भी अच्छे जानकार थे। उनकी प्रेरणा और प्रयत्नसे उस छोटे से मन्दिरके स्थानपर वर्तमान विशाल मन्दिरका निर्माण किया गया और बड़े समारोहपूर्वक उसकी प्रतिष्ठा भी उन्हीं बाबाजी द्वारा की गयी। बाबा ऋषभदासके सम्बन्धमें उस समयकी अनेक चामत्कारिक घटनाएँ अब तक आसपासमें प्रचलित हैं। उन्होंने स्वयं कहींसे भगवान् ऋषभदेवकी एक मनोज्ञ और सातिशय प्रतिमा लाकर मुख्य वेदीमें विराजमान करायी। उस प्रतिमाके दर्शनोंके लिए दूर-दूरसे लोग आने लगे। धीरे-धीरे उस प्रतिमाके चमत्कारों और
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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