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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
इस नगरमें कुल २१ दिगम्बर जैन मन्दिर और चैत्यालय हैं। मुहल्ला बड़ामें बड़ा मन्दिर है तथा मुहल्ला चन्द्रप्रभमें विख्यात चन्द्रप्रभ मन्दिर है। चन्द्रप्रभ भगवान्की मूर्ति स्फटिक की है। सिंहासन सहित इस मूर्तिकी अवगाहना डेढ़ फुट है। मूर्तिके पीछे दर्शनीय भामण्डल लगा हुआ है। स्फटिककी इतनी बड़ी मूर्ति अन्यत्र कहीं नहीं है।
___ छोटी छिपेटीके मन्दिरमें भी कुछ प्रतिमाएँ उल्लेख योग्य हैं। यहाँ कुछ ऐसी प्रतिमाएँ हैं जो चन्दवारसे लाकर यहाँ विराजमान की गयी हैं
यहाँकी मुख्य वेदीमें भगवान् ऋषभदेवकी मूलनायक प्रतिमा विराजमान है। यह सिंहासन समेत दो फुटकी है। यह कृष्ण पाषाणकी पद्मासन मूर्ति है । मूर्ति-लेखसे ज्ञात होता है कि यह वि० संवत् १४३८ में प्रतिष्ठित हुई थी। यह प्रतिमा चन्दवारसे लाकर यहाँ विराजमान की गयी है।
एक शिलाफलकमें १२० प्रतिमाएँ अंकित हैं, जो १५-१५ की आठ पंक्तियों में हैं । फलक लाल पाषाणका है। इसकी प्रतिष्ठा वि० संवत् १४६८ कार्तिक सुदी १४ को हुई थी। इस सम्बन्धमें मूर्तिपर लेख भी उत्कीर्ण है।
पीछेकी दो वेदियोंमें चन्दवारसे लायी हुई कुछ मूर्तियाँ विराजमान हैं। एक शिलाफलकमें पाँच बालयतिकी मूर्तियाँ हैं। इसके दोनों ओर दो पद्मासन प्रतिमाएँ हैं जो क्रमशः हलके कत्थई और हरे कत्थई वर्णकी हैं।
एक पाषाण खण्डमें सात प्रतिमाएँ हैं। मध्यमें एक पद्मासन प्रतिमा है। इसके दोनों ओर दो-दो पद्मासन और दो-दो खड्गासन प्रतिमाएँ विराजमान हैं। किंवदन्ती
भगवान् चन्द्रप्रभकी इस स्फटिक मूर्तिके बारेमें एक किंवदन्ती बहुप्रचलित है। लगभग दो सौ वर्ष पहले यमुनामें भीषण बाढ़ आनेके कारण चन्दवार-मन्दिरकी मूर्तियाँ बह गयीं। यह स्फटिक मूर्ति भी बह गयी थी। तभी फ़ीरोज़ाबादके पंचोंको रातमें इस सम्बन्धमें स्वप्न हुआ। प्रातःकाल होते ही पंचोंने अपने स्वप्नकी चर्चा की। सबको एक सा ही स्वप्न सुनकर सारे नगरमें सनसनी व्याप्त हो गयी। तब उत्सुक जनसमूहके साथ पंच लोग चन्दवार पहुँचे । स्वप्नके अनुसार उन्होंने सावन-भादोंकी घहराती हुई यमुनामें फूलोंकी एक टोकरी छोड़ी। वह टोकरी जहाँ रुक गयी, वहाँ धीरे-धीरे पानी उतरता गया। कुछ भक्तजन शुद्ध वस्त्र पहन और णमोकार मन्त्रका स्मरण कर जहाँ फूलोंकी टोकरी स्थिर हो गयी थी, वहाँ पानीके भीतर घुसे। पानीमें तलाश करनेपर मय सिंहासनके चन्द्रप्रभ भगवान्की मूर्ति मिली। मूर्ति प्राप्त होते ही जन-जनके मानसमें हर्षकी तरंग लहराने लगी। सभीने बड़े भक्तिभावसे भगवान्के दर्शन किये और मूर्तिको फ़ीरोज़ाबाद ले जाकर मन्दिरमें विराजमान किया। तभीसे यहाँ उस प्रतिमाकी बड़ी मान्यता है और उसके सम्बन्धमें जनतामें नाना भाँतिके चमत्कारोंकी किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं।
जनतामें इस मंतिके सम्बन्धमें यह भी धारणा व्याप्त है कि यह मूर्ति चतुर्थकालकी है। अर्थात् इस मूर्तिका निर्माण भगवान् महावीर या उनसे पूर्ववर्ती कालमें हुआ होगा।
जैन मेला-भूमि
यहाँ नगरके बाहर जैन नशियाके समीप ही एक विशाल भूमि-खण्ड है, जिसे जैन मेलाभूमि कहते हैं। यहाँ दिगम्बर जैन पंचायतकी ओरसे यह मेला भरता है । यह मेला आगरा जिलेके