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________________ ८१ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ हुए लिखा है-'चन्द्रवाड़ पट्टन कालिन्दी ( यमुना ) नदीसे चारों तरफ घिरा हुआ है। फिर भी वह धन-कन-कंचन और श्रीसमृद्धिसे परिपूर्ण है।' इस समय यह नगर व्यापारिक केन्द्र बन गया था। यमुनासे घिरा होनेके कारण बाहरका व्यापार नावों द्वारा होता था। बाहरके अनेक व्यापारी यहाँ आकर व्यापार करते थे। अनेक व्यापारी तो यहींपर स्थायीरूपसे बस गये थे। इनमें से एक व्यापारी योगिनीपुर ( दिल्ली ) के निवासी साहू तोसउ अग्रवालके चार पुत्रोंमें ज्येष्ठ साहू नेमिदासने यहाँ आकर अतुल धन कमाया। इन्होंने विद्रुम, रत्न और पाषाणकी अनेक जिनमूर्तियाँ बनवायीं और यहाँ एक विशाल जिनमन्दिरका निर्माण करा कर उन्हें इसमें प्रतिष्ठित किया। कविवर रइधूने इस सम्बन्धमें उक्त ग्रन्थमें लिखा है कि "बहुविह धाउ-फलिह- विद्रुम-मउ कारावेप्पिणु अगणिय पडिमउ। पातिट्टाविवि सुहु आवज्जिउ सिरि तित्थेसर-गोत्तु समज्जिउ । जि णह-लग्ग सिहरु चेईहरु पूण णिम्माविय ससिकर-पह हरु । णेमिदास णामें संघाहिउ जि जिण, संघ, मार णिव्वाहिउ ॥" इन्हीं नेमिदास साहूकी प्रेरणासे कविने इस ग्रन्थकी रचना की थी। वि. संवत् १५११ में पण्डित धर्मधरने दत्तपल्लीनगरमें जो चन्द्रवाड़के निकट ही था, 'नाग कुमार चरिउ' नामक एक संस्कृत काव्य-ग्रन्थकी रचना की थी। उसमें लिखा है कि धनेश्वरके पुत्र साह नल्हने चन्द्रवाड़ नगरके जिनालयका जीर्णोद्धार कराया था। इससे ज्ञात होता है कि इस समय तक राजा रामचन्द्रके पुत्र प्रतापरुद्रके शासन-काल तक यह नगर सम्पन्न रहा। यद्यपि इससे पूर्व भी सन् ११९४ में मुहम्मद गोरीने यहाँ लूटमार की थी किन्तु तब वह नष्ट नहीं हुआ था। किन्तु फ़ीरोज़शाह तुगलक और उसके पोते तुगलकशाहने इस नगरको बुरी तरह नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। राजा चन्द्रसेनके पुत्र सावन्त सिंहने जब अपनेआपको घिरा हुआ देखा तो उन्होंने भगवान् चन्द्रप्रभकी विख्यात स्फटिक मूर्ति तथा अन्य मूर्तियोंको जमुनामें डाल दिया, जिससे वे नष्ट होनेसे बच जायें। राजा एक सुरंगसे जमुनाके मार्ग द्वारा निकलकर भाग गया। यह भी मान्यता है कि उसने उड़ीसामें जाकर अपना राज्य कायम कर लिया। अबसे लगभग चार सौ वर्ष पहले फ़ीरोज़शाह सूबेदारने चन्दवारका बुरी तरह विध्वंस किया। मन्दिरों और मूर्तियोंको तोड़ डाला, नगर बरबाद कर दिया, और वहाँसे तीन मील हटकर एक नया शहर बसाया, जिसका नाम फ़ीरोज़शाहके नामपर फ़ीरोज़ाबाद रखा गया। यह नगर आगरा जिलेमें आगरा-मैनपुरी रोडपर स्थित है। यह आगरासे ४५ कि. मी. दूर है। यह उत्तर रेलवेके दिल्ली-हावड़ा मुख्य लाइनपर प्रसिद्ध स्टेशन है। यहाँ जानेके लिए रेल और सड़क दोनोंसे ही सुविधा है। .. अब तो यह नगर काँचकी चूड़ीके व्यवसायके कारण सारे भारतमें प्रसिद्ध है। यहाँकी बनी हुई चूड़ियाँ न केवल देशमें, अपितु विदेशोंमें भी जाती हैं। यहाँके चूड़ीके व्यवसायने कला और परिमाण, गुण और विस्तार, सभी दृष्टियोंसे विकास किया है। .. ११
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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