SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ होती है। अजैन लोग भगवान् अजितनाथकी प्रतिमाको मणियादेव कहकर पूजते हैं। यह हिन्दुस्तानका सम्भवतः सबसे बड़ा और प्रसिद्ध मेला है । मार्ग आगरासे दक्षिण-पूर्व की ओर वाह तहसीलमें, ७० कि. मी. दूर वटेश्वर कस्बा है। यहाँसे ५ कि. मी. दूर यमुनाके खारोंमें शौरीपुर क्षेत्र है। आगरासे वटेश्वर तक पक्की सड़क है। सरकारी बसें जाती हैं। वाहके लिए भी आगरासे बसें जाती हैं। वाहसे यह स्थान ८ कि. मी. है। शिकोहाबादसे यह २५ कि. मी. है। सड़क पक्की है। मोटर व इक्का जाते हैं। वटेश्वरसे शौरीपुर तक मार्ग कच्चा है। किन्तु कार आदि जा सकती है। पैदल मार्गसे बहुत पास पड़ता है। चन्दवार इतिहास ____ यह फ़ीरोज़ाबादसे चार मील दूर दक्षिणमें यमुना नदीके बायें किनारेपर, आगरा जिलेमें अवस्थित है। यह एक ऐतिहासिक नगर रहा है। आज भी इसके चारों ओर मीलों तक खण्डहर दिखाई पड़ते हैं। यह एक अतिशय क्षेत्र है। वि. सं. १०५२ में यहाँका शासक चन्द्रपाल नामक दिगम्बर जैन पल्लीवाल राजा था। कहते हैं, उस राजाके नामपर ही इस स्थानका नाम चन्दवार या चन्द्रपाठ पड़ गया। इससे पहले इस स्थानका नाम असाईखेड़ा था। इस नरेशने अपने जीवन में कई प्रतिष्ठा करायीं । वि. सं. १०५३ में इसने एक फुट अवगाहनाकी भगवान् चन्द्रप्रभकी स्फटिक मणिकी पद्मासन प्रतिमाकी प्रतिष्ठा करायी। इस राजाके मन्त्रीका नाम रामसिंह हारूल था, जो लम्बकंचक था। इसने भी वि. सं. १०५३-१०५६ में कई प्रतिष्ठाएँ करायी थीं। इसके द्वारा प्रतिष्ठित कतिपय प्रतिमाएँ चन्दवारके मन्दिरमें अब भी विद्यमान हैं। ऐसे भी उल्लेख प्राप्त होते हैं कि चन्दवारमें ५१ प्रतिष्ठाएँ हुई थीं। इतिहास ग्रन्थोंसे ज्ञात होता है कि चन्दवारमें १०वीं शताब्दीसे लेकर लगभग १५-१६वीं शताब्दी तक जैन नरेशोंका ही शासन रहा है। इस कालमें पल्लीवाल और चौहान वंशका शासन रहा । इन राजाओंके मन्त्री प्रायः लम्बकंचुक ( लबेंचू ) या जैसवाल होते थे। इन मन्त्रियोंने भी अनेक मन्दिरोंका निर्माण और मूर्तियोंकी प्रतिष्ठाएँ करायीं। इन राजाओंके शासन कालमें यह नगर जन और धन-धान्यसे परिपूर्ण था। नगरमें अनेक जैनमन्दिर थे। राजा सम्भरीरायके समय यदुवंशी साहू जसरथ या दशरथ उनके मन्त्री थे जो जैनधर्मके प्रतिपालक थे। सम्भरीरायके पुत्र सारंग नरेन्द्रके समय दशरथके पुत्र गोकूल और कर्णदेव मन्त्री बने। बादमें वासाधर मन्त्री बनाये गये। कविवर धनपाल कृत बाहुबली चरित्र ( रचना काल वि. संवत् १४५४ ) में लिखा है कि उस समय चन्दवारमें चौहानवंशी सारंग नरेश राज्य कर रहे थे। संघाधिप साह वासाधर १. हिन्दी विश्वकोष ( डॉ. नगेन्द्रनाथ वसु ) भाग ७, पृष्ठ १७१ में लिखा है कि चन्द्रपाल इटावा अंचलके एक राजाका नाम था। कहा जाता है कि राजा चन्द्रपालने राज्य-प्राप्तिके बाद चन्द्रवाडमें संवत १०५३ में एक प्रतिष्ठा करायी थी। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित स्फटिक मणिकी एक मूर्ति, जो एक फुटकी अवगाहनावाली है, आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ की थी।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy