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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
इस विवरणसे यह तो पता नहीं चलता कि इस किंवदन्तीमें कितना तथ्य है तथा यह रानी कौन थी और कब हई। किन्तु इससे यह अवश्य विश्वास होता है कि किसी समय शौरीपुर जैनोंका प्रसिद्ध केन्द्रीय नगर था और वह किसी कारण नष्ट किया गया।
कार्लाइलकी रिपोर्टसे ज्ञात होता है कि उन्हें शौरीपुरमें एक गड्ढे में एक पद्मासन जैन-प्रतिमा मिली थी। उसके दोनों ओर सेवक थे और शीर्षपर दोनों ओर गज थे। मूर्तिपर कोई लेख नहीं था। मूर्तिका आकार दो फुटका था। वह बलुआ पाषाणकी भूरे वर्णकी थी।
एक मन्दिरकी दीवार में उन्हें एक शिलालेख मिला था. जिसे वे पढ़ नहीं सके। मन्दिरके निचले भागमें उन्हें तीन विशाल पद्मासन जैन मूर्तियाँ मिलीं जो मिट्टीमें गरदन तक दबी हुई थीं। इनमें दो ठीक थीं किन्तु एकका सिर खण्डित था। ये मूर्तियाँ उन्होंने बाहर निकलवायीं। बड़ी मूर्तिपर वि. संवत् १०८२ या ९२ पढ़ा गया था। यह आदिनाथकी प्रतिमा थी। शेष दोनों प्रतिमाएँ भी इसीके समकालीन होंगी।
____ कहा जाता है कि यहाँ कोई तहखाना है जहाँ बड़ी संख्यामें प्राचीन मूर्तियों और पुरावशेष रखे हैं। उन्होंने यह स्थान खुदवाया तो असफल रहे। वहाँ कुदाली भी काम नहीं दे सकी।
नालेमें और उसके आसपास खदाई करनेपर उन्हें प्राचीन जैनमन्दिरोंके अवशेष प्राप्त हुए। मन्दिरोंके पीछे ४४ फुट लम्बी-चौड़ी पुरानी नींव भरी हुई है। सम्भवतः वह किसी निर्माणाधीन मन्दिरकी रही होगी। उसमें जिन ईंटोंका प्रयोग किया गया है, उनकी लम्बाई १४-१५ इंच तक है।
एक टीलेपर अनेक मतियों के भाग इधर-उधर पड़े या दबे मिले, जिनसे विश्वास होता है कि प्राचीन कालमें यहाँ कई मन्दिर रहे होंगे। इन टीलों और खाइयोंमें न जाने कितना पुरातन इतिहास और कला-सामग्री छिपी पड़ी है। वर्षा और बाढ़ोंसे यह सामग्री अधिकाधिक नीचे धसती गयी है।
कार्लाइलको पाँच फूट, चार इंच मोटी प्राचीन दीवार, सुरंग, गोदमें बच्चा लिये हुए पद्मावतीकी मूर्ति दो फुट, तीन इंच ऊँची बादामी रंगकी सर्वतोभद्रिका प्रतिमा भगवान् पार्श्वनाथकी प्रतिमाएँ, अकेले सर्प-फण-मण्डल तथा अनेक खण्डित-अखण्डित प्रतिमाएँ और अन्य सामग्री मिली, जो अधिकांशतः या सर्वांशतः जैन है। इससे यह प्रमाणित होता है कि यह स्थान अति प्राचीन कालसे जैनधर्मका प्रमुख केन्द्र रहा है।
व्यवस्था
पहले क्षेत्रका प्रबन्ध भट्टारक जिनेन्द्रभूषणकी परम्पराके शिष्य और पंचायत द्वारा होता था। यति रामपाल खरौआ इस परम्पराके अन्तिम शिष्य थे। किन्तु दिगम्बर-श्वेताम्बर-संघर्षके समय वि. संवत् १९८१ के श्रावण मासमें इनका कत्ल कर दिया गया। तबसे यहाँका प्रबन्ध निर्वाचित दिगम्बर जैनतीर्थक्षेत्र कमेटी द्वारा होता है।
वार्षिक मेला
___ वटेश्वर शौरीपुरके निकट यमुना नदीके किनारेपर अवस्थित है। यहाँ यमुनाके किनारे महाराज बदनसिंह द्वारा बनवाये हए चार मील लम्बे घाट हैं। यहाँ कातिक शक्ला ५ से मगसिर वदी २ तक जैन मेला भरता है। इन्हीं दिनों जैन रथोत्सव होता है। भगवान्की सवारी सम्पूर्ण मेलेके बाजारमें निकलती है। शामको कलशाभिषेक होते हैं। हजारोंकी भीड़