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उत्तरप्रदेश के दिगम्बर जैन तीर्थं
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का सर्वेक्षण किया था । फलस्वरूप आपको इस क्षेत्र में महाभारतकालीन मिट्टीके बरतनोंके अवशेष प्राप्त हुए। ये टुकड़े चाक मिट्टीके बने हुए सिलेटी रंगके हलके और चिकने हैं । ये 'पेण्ड ग्रेवेयर' किस्म के हैं। 'कार्बन टेस्ट' द्वारा इनका काल महाभारत काल अर्थात् ई. पू. १००० अनुमानित किया गया है । बरतनोंके दूसरे अवशेष मौर्यकालीन हैं अर्थात् ६०० ई. पू. से २०० ई.पू. । इनपर सुनहरी पालिश है । पुरातत्त्व विशेषज्ञ इन्हें एन. बी. पी. किस्म के अन्तर्गत रखते हैं । इस प्रकार महाभारत कालसे मौर्य काल तककी कड़ीका पता इससे लग चुका है । इस कालमें यह नगर अत्यन्त समृद्ध था । किन्तु कालकी कराल गति से इसका अब केवल नाम शेष रह गया है । नगरका प्राचीन वैभव और उसकी सांस्कृतिक समृद्धि टीलोंके नीचे दबी पड़ी है । प्राचीन नगरके ध्वंसावशेष चारों ओर बिखरे पड़े हैं। एक बार क्षेत्र कमेटीने आदिमन्दिरके दक्षिणकी ओर एक टीकी खुदाई करायी थी । फलतः उसमें अनेक सांगोपांग तथा खण्डित जैन प्रतिमाएँ निकली थीं। इसी प्रकार एक बार आदिमन्दिरका जीर्णोद्धार करते समय किसी प्राचीन जैनमन्दिरका पलस्तरयुक्त नीचेका भाग मिला था । उसमें एक शिलालेख भी मिला था जिसमें वि. संवत् १२२४ में इस मन्दिर के जीर्णोद्धार होनेका उल्लेख है ।
प्रसिद्ध इतिहासविद् टाने एक लेख में लिखा है-
" एक बार मैं प्राचीन नगरोंके सम्बन्धमें ग्वालियर के एक प्रख्यात जैन भट्टारकके एक शिष्यसे बात कर रहा था, उन्होंने मुझे ३५ वर्ष पूर्वकी एक घटना सुनायी कि शौरीपुरमें एक व्यक्तिको अवशेषोंके बीचमें शीशेका एक टुकड़ा मिला। उसने ले जाकर उसे एक सुनारको दिखाया, जिसने एक रुपया देकर वह खरीद लिया । वास्तवमें यह हीरा था । सुनारने इसे आगरामें जाकर पाँच हजार रुपये में बेच दिया। उस गरीबको जब यह पता चला तो उसने सुनारसे उस राशि में से कुछ हिस्सा माँगा | सुनार साफ मुकर गया तो उस व्यक्तिने सुनारसे बहुत झगड़ा किया। इतना ही नहीं, उसने सुनारका खून कर दिया । बादमें उसके ऊपर मुकद्दमा चला ।"
"यह कहानी सुनकर मैंने अपने एक मुद्रासंग्राहकको शौरीपुर भेजा । कुछ समय पश्चात् उसने मुझे अपोलोडोटस और पार्थियन राजाओंके कई सिक्के लाकर दिये ।"
म. टाsके इस विवरणसे ज्ञात होता है कि शौरीपुर नगर ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में व्यापारिक केन्द्र था । वास्त्री वंशके यूनानी राजा अपोलोडोटस ( अपलदत्त ) और पार्थववंशी नरेशोंका काल ईसा पूर्व दूसरी-तीसरी शताब्दी माना जाता है । उनके सिक्के व्यापारिक उद्देश्यसे यहाँ लाये गये होंगे ।
सरकारकी ओरसे यहाँ सौ वर्ष पहले ए. सी. एल. कार्लाइल आये थे और उन्होंने कुछ खुदाई भी करायी थी। उसके सम्बन्धमें सरकार की ओर से रिपोर्ट' प्रकाशित हो चुकी है । उसमें कार्लाइलने यहाँके विस्तृत भग्नावशेषोंके सम्बन्ध में लिखा है
"आसपास में यहाँ लोगोंमें एक किंवदन्ती प्रचलित है कि एक बार प्राचीन कालमें एक रानी इधरसे जा रही थी । उसने सामने खड़े हुए भवनों के बारेमें पूछा कि ये भवन कैसे हैं । जब ये भवन जैनों के हैं तो उसने आज्ञा दे दी कि इन्हें नष्ट कर दिया जाये ।
से
उसकी आज्ञानुसार सारे भवन और मन्दिर नष्ट कर दिये गये ।”
१. Royal Asiatic Society. Vol I, p. 314.
२. Archeological Survey of India, Report for the year 1871-72, Vol. IV, by A. C. L. Carlleyle.